बात 22 मई 2007 की है जब भाजपा के शिखर पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी, साहित्यकार और कवि रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के कहानी संग्रह ‘खड़े हुए प्रश्न’ का विमोचन कर रहे थे। बातों बातों में वाजपेयी जी ने देश में लेखकों को अपेक्षित सम्मान न मिलने की अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि अपने यहाँ लेखकों के लिए कोई एक ऐसा स्थल नहीं है जो लेखकों को समर्पित हो। वाजपेयी जी की यह बात निशंक जी के दिलं में घर कर गई। कुछ समय बाद 2009 में निशंक उत्तराखंड के पाँचवे और सबसे युवा मुख्यमंत्री बन गए। बाद में वह हरिद्वार के सांसद और केंद्र में मोदी सरकार में शिक्षा मंत्री भी बने। लेकिन उनके मस्तिक में बार बार वाजपेयी जी की लेखकों को लेकर कही बात गूँजती रही।
करीब तीन बरस पहले निशंक ने वाजपेयी जी के सपनों को साकार करने के लिए ‘स्पर्श हिमालय फाउंडेशन’ के अंतर्गत देहरादून में एक ‘लेखक गाँव’ बनाना शुरू किया। जहां प्रकृति की गोद में बैठ लेखक अपने विचारों को पंख दे सकें। परस्पर मिलकर एक दूसरे को अच्छे से जान सकें। अपनी बातें साझा कर सकें। अपनी रचनात्मकता का उत्सव मना सकें। देश के इस पहले और अनूठे ‘लेखक गाँव’ का 25 अक्टूबर 2024 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उद्घाटन किया तो निशंक जी परिकल्पना देख सभी मंत्रमुग्ध हो गए। तभी यहाँ प्रथम ‘अंतरराष्ट्रीय साहित्य, संस्कृति एवं कला समारोह’ का आयोजन भी किया गया। इधर अब 3 से 5 नवंबर को ‘लेखक गाँव’ में दूसरे ‘स्पर्श हिमालय महोत्सव’ का आयोजन हुआ तो मुझे भी इस अंतरराष्ट्रीय साहित्य और कला उत्सव में आमंत्रित किया गया। जहां मैंने ‘वर्तमान परिप्रेक्षय में मीडिया की जिम्मेदारी एवं चुनीतियों’ में अपना व्याख्यान भी दिया। साथ ही पूरे ‘लेखक गाँव’ के भ्रमण, अवलोकन के साथ विश्व भर से आए कई साहित्यकारों से मिलना जुलना तो सोने पर सुहागा रहा। मैं स्वयं यहाँ की अद्धभुत छटा देख अभिभूत हो गया। करीब 12 एकड़ में फैले इस ‘लेखक गाँव’ में लेखकों के रहने के लिए 12 कुटीर हैं तो अतिथि गृह में 15 कक्ष भी हैं। साथ ही कुछ टैंट कैंप और कुछ अन्य स्थल मिलाकर यहाँ एक साथ 100 लोग रह सकते हैं।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जो एक राजनेता होने के साथ प्रख्यात साहित्यकार और कवि भी हैं। जिनकी अब तक 100 विभिन्न पुस्तकें आ चुकी हैं। उनके रचनामक संसार की प्रशंसा देश के कई राष्ट्रपति तक कर चुके हैं। निशंक बताते हैं- ‘लेखक गाँव’ के संरक्षक के रूप में यह देख आज मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही कि आज 65 देशों के रचनाकार हमारे इस ‘लेखक गाँव’ से जुड़ चुके हैं। इस महोत्सव में जहां देश के लगभग सभी राज्यों से साहित्यकार आए हैं। वहाँ 20 से अधिक देशों के बहुत से साहित्यकार, कवि भी यहाँ पहुंचे हैं। जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, श्रीलंका, नीदरलैंड, सूरीनाम, सिंगापपुर, दुबई औरमॉरीशस जैसे देश भी हैं। यहाँ आकर लेखक अपनी पुस्तकें लिख रहे हैं, फिल्मों की पटकथा लिख रहे हैं, कविताएं लिख रहे हैं।‘’
मुझे निशंक जी की यह बात सुन अपने उन कई पुराने फिल्मकार मित्रों की याद हो आई जो फिल्म कि कहानी पटकथा लिखने के लिए किसी सुकून कि जगह की तलाश में रहते थे। एक समय मैं स्वयं अपनी कविताओं, कहानी और पटकथा लिखने के लिए दिल्ली इंडिया इन्टरनेशनल सेंटर और उसके आसपास के अन्य अतिथि ग्रहों में जाता रहा। देव आनंद अपनी फिल्मों को लिखने के लिए महाबलेश्वर के एक होटल में जाकर कई दिन ठहरते थे। मुंबई के कुछ गीतकार संगीतकार वहाँ के समुद्र किनारे बने ‘सन एण्ड सैंड’ होटल को अपना आशियाना बनाते रहे हैं। इसलिए अब निश्चय ही देवभूमि में प्रकृति के मनमोहक वातावरण में बना यह लेखक गाँव लेखकों, कलाकारों के लिए एक वरदान है।
‘लेखक गाँव’ में जहां कुटीर हैं वहाँ एक ऐसा नालंदा पुस्तकालय भी है जहां अभी तक विश्वभर की 40 हजार पुस्तकें उपलब्ध हो चुकी हैं। पुस्तकालय के साथ ऊपर एक आधुनिक ऑडीटोरियम भी है। जहां रंगमंच के साथ साहित्यिक- सांस्कृतिक कार्यक्रम देख सुखद अनुभूति हुई। इन सबके साथ यहाँ योग ध्यान एवं आरोग्य केंद्र है तो ग्रह, नक्षत्र स्थल भी। साथ ही संजीवनी वाटिका में अनेक जड़ी बूटियों के वृक्ष और पौधे हैं तो तीर्थंकर में जैन धर्म और मुनियों की गाथा भी। फिर खान पान के लिए बनी ‘हिमालयन संजीवनी रसोई’ तो पेट पूजा का सबसे बड़ा साधन है। साथ ही यहाँ एक भव्य मंदिर है तो अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा भी।
इस बार तो यहाँ भगवान धनवंतरी जी की साढ़े 13 फुट लंबी, 14 टन की विशाल प्रतिमा की भी स्थापना हो गई है। जिसे पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति और विख्यात आचार्य बालकृष्ण ने भेंट किया है। इस प्रतिमा के अनावरण के समय जूना पीठाधिश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी महाराज के साथ, आचार्य बालकृष्ण, मॉरिशस के पूर्व राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन और केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के साथ रमेश पोखरियाल भी मौजूद थे। यूं समारोह में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के साथ परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के स्वामी चिदानंद सरस्वती के सहित कई विश्वविद्यालयों के कुलपति और दिग्गज कलाकारों ने भी हिस्सा लिया। जिनमें जाने माने चित्रकार जतिन दास और कैलाश खेर भी थे तो कावी लक्ष्मी शंकर वाजपेयी भी।
महज ईंट पत्थर की संरचना नहीं
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तो यहाँ पहुंचकर कहा ‘लेखक गाँव’ महज ईंट पत्थर कि संरचना नहीं है, यह विचारों का प्रतिबिंब है। वाजपेयी जी कि प्रेरणा और निशंक जी कि परिकल्पना से बने इस लेखक गाँव से `समाज को नई दिशा मिलने के साथ आने वाली पीढ़ियाँ भविष्य का निर्माण करना भी सीखेंगी। आज वाजपेयी जी जीवित होते तो लेखक गाँव को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते।‘’ मेरा तो मानना है लेखकों के लिए ‘लेखक गाँव’ धरती पर नया स्वर्ग है। एक नया तीर्थ है।