पश्चिम बंगाल में गहन मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया शुरू होते ही असर दिखाई देने लगा है। भारत में अवैध रूप से अपनी पहचान छिपाकर रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों का झुंड अब वापस बांग्लादेश भागने को मजबूर हो रहा है। इसका कारण यह है कि भारत ने अपनी पहचान छिपाकर रहने वालों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इससे विपक्षी दलों, खासकर तृणमूल कांग्रेस, में चिंता बढ़ गई है।
पश्चिम बंगाल के स्वरूप नगर थाना क्षेत्र के हकीमपुर चेकपोस्ट पर सतखीरा और खुलना जिले के सैकड़ों घुसपैठिये भारी-भरकम सामान लेकर बांग्लादेश वापस लौटने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसके पीछे यह डर है कि कई राज्यों में नागरिकता सत्यापन अभियान या इसी तरह की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिससे अवैध रूप से भारत में बसे बांग्लादेशी अपने देश लौट रहे हैं।
स्थानीय चेकपोस्ट पर पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश की ओर जाने वाले लोगों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। यह स्पष्ट रूप से चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर के जरिए कराए जा रहे मतदाता की गहन पड़ताल का असर है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें यह सुनिश्चित करना होता है कि वास्तविक मतदाता का अधिकार सुरक्षित रहे और फर्जी मतदाता बाहर हों। चुनाव आयोग ने पूरी पारदर्शिता के साथ यह अभियान चलाया है। बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी होने के बाद चुनाव कराए गए थे, जो इस अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी गई।
अब देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का काम तेजी से चलाया जा रहा है। इससे यह सुनिश्चित हो रहा है कि कोई भी योग्य मतदाता नाम से छूट न जाए और किसी भी अयोग्य मतदाता का नाम मतदाता सूची में शामिल न हो। इस चरण में 51 करोड़ मतदाताओं की गणना प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हुई।पश्चिम बंगाल में प्रक्रिया शुरू होने पर प्रदेश की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आपत्तियां जताई हैं। उन्हें डर है कि इससे उनके वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
दूसरे चरण में छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में एसआईआर कराया जा रहा है। इनमें तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में 2026 में संभावित चुनाव हैं।
भारतीय नागरिकता कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ है, तो उसे भारत का नागरिक माना जाता है। ऐसे व्यक्ति की नागरिकता की पुष्टि के लिए सामान्यतः अतिरिक्त दस्तावेजों की आवश्यकता नहीं होती। जब इस जन्म वर्ष में 18 साल जोड़े जाते हैं, तो यह अवधि 2002–2004 के बीच आती है। यही कारण है कि 2003–04 की मतदाता सूची को नागरिकता सत्यापन का मानक दस्तावेज माना जा रहा है। जिनका नाम उस सूची में दर्ज है, उनकी नागरिकता की जांच की आवश्यकता नहीं मानी जा रही। पिछले एसआईआर से इसका मिलान किया जा रहा है।
बिहार में एसआईआर के बाद लगभग 47 लाख नाम हटाए गए और 21 लाख नए मतदाता जुड़े, जिससे मतदाताओं की संख्या घटकर 7.42 करोड़ रह गई। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस राज्य में भी यह अभियान चलेगा, वहां निष्पक्षता से मतदाता का नाम छंटाई के बाद ही मतदाता सूची में शामिल होगा।कायदे से इस अभियान को सभी दलों को सहयोग करना चाहिए, लेकिन विपक्ष इसे केवल नुकसान के नजरिए से देख रहा है और वोट चोरी का आरोप लगाने से बाज नहीं आ रहा।