संघ कार्य के 100 वर्ष: बचपन में शाखा गया, लेकिन अब लगता है कि सतत रूप से क्यों नहीं गया।

प्रशांत शर्मा

Update: 2025-11-23 06:02 GMT

संघ की शाखा से मिली प्रेरणा आज मेरे स्वभाव का हिस्सा बन गई है।ग्वालियर के प्रसिद्ध व्यवसायी डॉ. प्रवीण अग्रवाल कहते हैं कि मैं लगभग चार दशकों से संघ के बारे में सुनता आया हूं। हालांकि बचपन में कुछ समय तक शाखा में भी गया। मेरे कई सहपाठी बचपन से आज तक संघ की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। आज मैं सोचता हूं कि मुझे भी शाखा और अन्य संघ गतिविधियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर रहना चाहिए था। लेकिन मैं यह स्पष्ट रूप से कह सकता हूं कि भले ही नियमित रूप से संघ कार्य में प्रत्यक्ष रूप से जुड़ नहीं पाया, फिर भी बचपन में शाखा आकर जो संस्कार और आत्मबोध मेरे अंदर पैदा हुआ, वह आजीवन मेरे लिए एक विशेष प्रेरणा का स्रोत है। संघ की शाखा से सीखा आचरण और समाज के प्रति उसकी प्रतिबद्धता हमेशा मेरे लिए आदर का कारण रही है।

बचपन में शाखा गया, लेकिन अब लगता है कि सतत रूप से क्यों नहीं गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्ष की यात्रा केवल किसी संगठन का इतिहास नहीं, बल्कि संस्कृति, संस्कार और राष्ट्र निर्माण की एक निरंतर परंपरा है। चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष के रूप में मैंने अपने संगठनों को समझने और दीर्घकालीन कार्यशैली का अनुभव किया है। इसलिए जब संघ की शताब्दी की बात आती है, तो मुझे यह यात्रा और इसके मापदंड और भी गहराई से महसूस होते हैं।

डॉ. प्रवीण अग्रवाल कहते हैं कि संघ अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है। संघ एक विचार आधारित संगठन है

मेरी दृष्टि में संघ कोई शक्ति आधारित संस्था नहीं, बल्कि विचार आधारित संगठन है। इसमें सेवा, राष्ट्र, समाज और सनातन संस्कृति का साक्षात्कार है। आज के माहौल में जहां छोटे कामों को भी पुरस्कार और प्रशंसा से जोड़ा जाने लगा है, वहीं संघ निस्वार्थ सेवा की परंपरा का उदाहरण है। जब भी कोई आपदा आई-भूकंप, महामारी, या दुर्घटना-संघ के स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार या सम्मान की इच्छा के सबसे पहले और अंत तक प्रभावित लोगों के बीच मौजूद रहे। यही उसकी सबसे बड़ी पहचान है।

मोहल्ले से रोटियां एकत्रित करने का महत्व बाद में समझ आया

हम लोग समाज में समरसता की बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन ग्वालियर में संघ के सभी आयोजनों में किसी भी प्रकार का जाति भेद नहीं होता। मुझे संघ के शिविरों में यह वास्तविक रूप से महसूस हुआ। मुझे याद है कि कुछ समय पहले शिविरार्थियों के लिए मोहल्ले-मोहल्ले के घरों से रोटियां एकत्रित की जाती थीं। कोई घर नहीं छूटता था। यह समाज के उन लोगों के लिए बड़ा उदाहरण है, जो सामाजिक न्याय और जाति मुक्ति की बातें करते हैं। बचपन में यह सिर्फ एक कार्य लगता था, लेकिन आज इसका महत्व मुझे समझ में आता है।

100 साल की यात्रा का अर्थ

किसी भी संगठन के लिए सौ वर्ष पूरे करना आसान नहीं होता। मैं स्वयं उस संस्था (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) का प्रतिनिधित्व करता हूं, जिसने 120 वर्ष की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की है। इसलिए मैं अच्छी तरह समझता हूं कि कोई संगठन सौ वर्ष तक टिकना आसान नहीं होता। इसके पीछे असंख्य कार्यकर्ता, वर्षों का अनुशासन और स्पष्ट दृष्टिकोण होता है। संघ की यात्रा भी इसी अनुशासन और वर्षों की संस्कृति का परिणाम है। यदि कोई संगठन सौ वर्ष तक सुरक्षित रहा है, तो उसके अगले सौ वर्ष भी सुरक्षित होने की संभावना अधिक होती है।

कोरोना में केवल संघ ही ईमानदारी से खड़ा था

मैंने स्वयं देखा है कि कोरोना संकट के दौरान संघ के स्वयंसेवक भोजन, दवाइयां और मदद लेकर ग्वालियर महानगर में सबसे कमजोर और असहाय लोगों तक पहुंचे। यह सेवा सम्पूर्ण समाज के लिए थी। यही संघ का आदर्श है, जिसने मुझे हमेशा प्रभावित किया। मैं अक्सर अपने आसपास के लोगों को बताता हूं कि वे स्वयंसेवक, जिन्होंने कोरोना में सेवा की, किसी पुरस्कार या सम्मान के लिए ऐसा नहीं कर रहे थे। यह सेवा का संस्कार संघ की देन है।

मेरा परिवार संघ से जुड़ा है

मेरे परिवार के माध्यम से यह रिश्ता और गहरा हुआ है। मेरे ससुर डॉ. सुरेश बंसल भिंड में संघ से लंबे समय से जुड़े हैं और उनका पूरा परिवार संघ की गतिविधियों में सहभागी रहा है। स्वाभाविक है कि मेरी पत्नी के संस्कारों में भी वही आग्रह, अनुशासन और सामाजिक दृष्टि झलकती है, जिसने मुझे भी संघ के करीब लाकर खड़ा किया।

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