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जाति भेदभाव को किसी ने भी नहीं स्वीकारा: हिरेमठ

संगठित समाज से ही आ सकती है समरसता

Update: 2019-10-04 10:04 GMT

 ज्ञान प्रबोधनी व्याख्यानमाला का समापन

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं प्रख्यात चिंतक सुहासराव हिरेमठ ने आज कहा कि समरसता लाने के लिए शक्तिशाली समाज की जरूरत है, यदि समाज शक्तिशाली होगा तो उसे कोई परास्त नहीं कर पाएगा। इससे हमें जगतगुरु बनने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि जातिभेद और अस्पर्शता को न तो भगवान ने माना और न किसी धर्म-ग्रंथ और महापुरुष ने। इसीलिए आज भी अपने समाज में अस्पर्शता है तो उसके लिए सरकार, समाज और संस्थान को आगे आना होगा।

श्री हिरेमठ जी ने गुरुवार को राष्ट्रोत्थान न्यास के तराणेकर सभागार में आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान प्रबोधनी व्याख्यानमाला के अंतिम दिन 'समरस समाजÓ विषय पर अपने विचार रखते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि जाति-पाति, अस्पर्शता से दूर रहने वाला समाज ही समरस समाज है। हमने अपने पराक्रम से भारत माता का अभिषेक किया है, वह तभी संभव हुआ है, जब हम सब एक हैं। श्री हिरेमठ ने कहा कि प्राचीन काल में कभी जाति-पाति का भेदभाव नहीं था। मुगलों के आगमन और अंग्रेजी राज्य व्यवस्था में जाति-पाति का भेद उत्पन्न हुआ। इसके पीछे कारण यह था कि प्राचीन समय में लोग ज्यादातर घरों से बाहर ही रहते थे और जंगल आदि में शौच करते थे, किंतु अंग्रेजों के समय में घर में शौचालय बनना शुरू हुए तो मैला ढोने की प्रथा भी आरंभ हो गई। ऐसे में एक वर्ग विशेष पर घोर अन्याय होता रहा, जिससे शेष समाज भी सशक्त नहीं हो सकते। शरीर का एक अंग दुर्बल होने पर शरीर जिस तरह का हो जाता है, समाज भी एक वर्ग के दुर्बल होने पर उसी दशा का शिकार हो जाता है। उन्होंने कहा कि सभी जातियों में संत पैदा हुए हैं, किंतु उन्होंने कभी सिर्फ अपनी जाति के लिए नहीं, बल्कि सर्व समाज की बात की। इसके लिए उन्होंने गुरु गोविंद सिंह, विवेकानंद जी, महात्मा गांधी आदि के उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि सभी समाजों के संगठन से ही समरस समाज बनता है। जिस तरह सर्वत्र परमेश्वर व्याप्त है, उनकी नजर में कोई जाति नहीं, उसी तरह हमें जातिवाद, छुआछूत से दूर रहना होगा। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती के छाया चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित किया। मुख्य अतिथि हिरेमठजी का स्वागत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह यशवंत इंदापुरकर ने किया। प्रस्तावना मंचासीन डॉ. जे.एस. नामधारी ने प्रस्तुत की। संचालन डॉ. कुमार संजीव ने एवं आभार न्यास के सचिव विजय गुप्ता ने व्यक्त किया। वंदे मातरम का गायन माधुरी गोलवलकर ने किया।

हेडगेवार जैसे देशभक्त अंबेडकर भी थे

उन्होंने कहा कि पूज्य हेडगेवार की तरह डॉ. भीमराव अंबेडकर भी देशभक्त थे। उन्होंने पढ़ाई के दौरान और बाद में अपनी जाति के कारण कई बार अपमान का सामना किया। हमें उनकी जीवनी पढ़कर जीवन दर्शन का अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को बार-बार अपमानित होने, जहां तक कि मुस्लिम एवं ईसाई धर्म अपनाने के प्रलोभन के बावजूद हिंदू धर्म को ही सर्वोपरि माना। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने देश का कानून मंत्री रहते कश्मीर में धारा 370 लगाए जाने के प्रस्ताव का पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने विरोध किया था।

भगत सिंह की अंतिम इच्छा, सफाईकर्मी महिला के हाथों बना खाना मांगा

श्री हिरेमठ ने कहा कि शहीद होने से पूर्व जब भगत सिंह से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई, तब उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की कि जेल की सफाईकर्मी महिला के हाथों बना भोजन खाना है। यह सुन उस महिला के आंसू निकल आए। इससे माना जा सकता है कि देश के महापुरुषों में भी जातिवाद को लेकर कोई भेदभाव नहीं था।

आरक्षण भी जरूरी

श्री हिरेमठ ने कहा कि जिस वर्ग पर हजारों वर्ष से अन्याय हुआ हो, उसे यदि आरक्षण दिया जा रहा है तो कोई गलत बात नहीं है। क्योंकि देखा जाए तो पढ़ाई में वे भी आगे हैं, कुछ अंक आगे-पीछे हो सकते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए डोनेशन देकर बड़े-बड़े लोग अपने बच्चों का प्रवेश कराते हैं, उनके अंक भी कम होते हैं। इसलिए हम सब की बड़ी जिम्मेदारी है कि सर्व समाज को एकजुट कर समरस भारत बनाएं।

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