साल में एक बार संस्कृति विभाग को याद आती है तानसेन के जन्मस्थल की, समाधि पर घूमते हैं असमाजिक तत्व

Update: 2020-12-09 03:00 GMT

ग्वालियर/वेब डेस्क। संस्कृति विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से शहर से 46 किलोमीटर दूर स्थित तानसेन के जन्म स्थल बेहट अब अपनी पहचान खोता जा रहा है। यहां प्रतिवर्ष होने वाले तानसेन समारोह के अंतिम दिन जिस स्थान पर संगीत सभा का आयोजन किया जाता है, झिलमिल नदी के किनारे स्थित झिलमिलेश्वर महादेव मंदिर परिसर में उस स्थान पर जहां कभी संग्रीत सम्राट तानसेन सुरो का रियाज किया करते थे, आज वह स्थान विभिन्न समस्याओं से ग्रसित नजर आ रहा है। तानसेन की जन्म स्थली के पास बने साधना स्थल की सुध संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन साल में एक बार उसी दिन सुध लेता है। जिस दिन तानसेन समारोह की अंतिम सभा होती है। उसी दिन यहां रौनक नजर आती है। शेष पूरे वर्ष इस स्थान को देखने की सुध किसी को नहीं आती है। आज इस स्थान पर विभिन्न समस्याएं मुंह वाय खड़ी है।

साधना स्थल पर बने कुंड में जहां गंदा पानी भरा हुआ है वहीं किनारे पर कचरे के ढेर नजर आ रहे हैं। परिसर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चौपट नजर आ रही है। साफ सफाई के अभाव में यह ऐतिहासिक स्थल अपनी पहचान खोता जा रहा है। वहीं पानी न होने की वजह से संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाले भी बच्चे भी यहां आने से कतराते हैं। वहां मौजूद क्षेत्र के रहवासी ने बताया कि झिलमिलेश्वर महादेव मंदिर का नाम आला-ऊदल के गुरु झिलमिला ने शिव भगवान की प्रतिष्ठा के दौरान की थी। मंदिर परिसर में बने कुंड में पानी के लिए एक मोटर तो लगा रखी है, लेकिन तालाब में गंदगी व मंदिर में लाइट न होने के कारण मोटर नहीं चलती।

संस्कृति विभाग के अधिकारी एक बार आते हैं

तानसेन समारोह कराने की जिम्मेदारी संस्कृति विभाग की रहती है। लेकिन विभाग के अधिकारी सिर्फ समारोह से कुछ दिन पूर्व ही आते हैं और समारोह सम्पन्न होने के बाद वह अगले वर्ष ही आते हैं। हजीरा स्थित तानसेन मकबरा पर रात के समय असमाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नही जाता।

समारोह की घोषणा होते ही तैयारियां शुरू

बीते रोज तानसेन समारोह की तिथि घोषित होते ही अब संस्कृति विभाग के साथ जिला प्रशासन सक्रिय हो गया है। शायद यही कारण है कि मंगलवार को तानसेन मकबरे पर साफ-सफाई की शुरुआत कर दी गई है।

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