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जीवाजी विवि में परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था फेल, कम्पनियों ने साख को लगाया बट्टा

जब से विवि में परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था लागू हुई तभी से छात्रों की हो रही फजीहत, स्थाई परीक्षा नियंत्रक नियुक्त करने से व्यवस्था में हो सकता है सुधार

Update: 2019-11-22 08:50 GMT

ग्वालियर, न.सं. परीक्षा और परीक्षा परिणाम में देरी तथा गलतियों व गड़बडिय़ों को लेकर इस समय जीवाजी विश्वविद्यालय की जितनी फजीहत हो रही है, उतनी पहले कभी नहीं हुई। शायद ही ऐसा कोई दिन हो, जब छात्र अपनी समस्याएं लेकर विश्वविद्यालय में न पहुंच रहे हों। वैसे तो परीक्षा में देरी और गलतियों के लिए परीक्षा परिणाम तैयार करने वाली नागपुर माइक्रो प्रो. सॉल्यूशन प्रा.लि. कंपनी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और यह काफी हद तक सही भी है, लेकिन वास्तव में जीवाजी विश्वविद्यालय की परीक्षा व्यवस्था चरमराने की शुरूआत विवि में परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था लागू होने से ही शुरू हो गई थी। जब तक जीवाजी विश्वविद्यालय की परीक्षा की कमान कुलसचिव व उप कुलसचिव जैसे अधिकारियों के अधीन रही, तब तक स्थिति इतनी खराब कभी भी देखने में नहीं आई, लेकिन अब स्थिति बहुत ही भयावह हो गई है और छात्रों को परीक्षा परिणाम व अंकसूचियों के लिए महीनों तक भटकना पड़ रहा है, उसके बाद भी अधिकारियों को इन परेशान छात्रों पर रहम नहीं आ रहा है।

जीवाजी विश्वविद्यालय में सात साल पहले वर्ष 2012 में परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था लागू हुई थी। तब रसायन शास्त्र के प्राध्यापक डॉ. सी.पी. शिन्दे विवि के पहले परीक्षा नियंत्रक बने।

इससे पहले कुलसचिव एवं उप कुलसचिव इस कार्य को देखते थे और व्यवस्था पटरी पर थी। व्यवस्था बदलने के साथ ही परीक्षा संबंधी कार्य बेपटरी होने शुरू हो गए। रही सही कसर विवि के अधिकारियों ने पूरी कर दी, जिन्होंने निजी स्वार्थ व लालच के चलते परीक्षा व गोपनीय संबंधी काम निजी हाथों को सौंप दिया। धीरे-धीरे यह व्यवस्था पूरी तरह से गड़बड़ा गई। अब आलम यह है कि अधिकारियों की भारी लापरवाही की वजह से छात्रों को आत्महत्या जैसे कदम उठाना पड़ रहे हैं। व्यवस्था बिगडऩे के बीच शासन की भी कम गलती व लापरवाही नहीं है। परीक्षा नियंत्रक जैसे महत्वपूर्ण पद पर एक साल या दो साल के लिए नियुक्ति करने से अधिकारियों को व्यवस्था को समझने में ही इतना समय निकल जाता है, इसलिए अब विवि में स्थाई परीक्षा नियंत्रक की मांग उठने लगी है।

देश के कई विश्वविद्यालयों में है स्थाई व्यवस्था

म.प्र. के विश्वविद्यालयों में कुलपति का कार्यकाल चार साल है, जबकि परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति एक साल के लिए हो रही है और जरूरी नहीं है कि उसे आगे बढ़ाया जाए। कई बार तो यह भी देखने में आता है कि महाविद्यालय से पदस्थ होने वाले परीक्षा नियंत्रक के आदेशों को विवि के कर्मचारी व अधिकारी उतना महत्व नहीं देते हैं, जितन कि दिया जाना चाहिए। देश में ऐसे कई विवि हैं, जहां पर परीक्षा नियंत्रक की स्थाई व्यवस्था है। प्रदेश सरकार को भी परीक्षा नियंत्रक जैसे महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील कार्य के लिए स्थाई परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था पर विचार करना चाहिए।

समझने में ही निकल जाता है एक साल का कार्यकाल

जीवाजी विवि में परीक्षा नियंत्रक व्यवस्था फेल होने में विवि की कार्यप्रणाली के साथ-साथ शासन की नीतियां भी कटघरे में हैंं क्योंकि जिस विवि का कार्यक्षेत्र दो संभाग एवं आठ जिले हों, वहां पर परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य में लगातार प्रयोग शासन की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मार्च 2015 से मार्च 2016 के बीच विवि में परीक्षा नियंत्रक का नियुक्त होना है। अप्रैल 2015 में प्रो. अविनाश तिवारी को नियुक्त किया गया। उनका एक वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही उन्हें हटाकर 31 मार्च 2016 को प्रो. ए.के. श्रीवास्तव को नया परीक्षा नियंत्रक बना दिया गया। विवि के पहले परीक्षा नियंत्रक प्रो. शिन्दे की नियुक्ति पत्र में अवधि का उल्लेख नहीं किया गया, उसके बाद सभी की नियुक्तियां एक वर्ष के लिए ही गई हैं। एक वर्ष में दो संभाग एवं आठ जिले में होने वाली परीक्षा व्यवस्था को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है और यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि भोपाल में बैठे अधिकारी इस महत्वपूर्ण तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं।

विवि को सात साल में मिले छह परीक्षा नियंत्रक


इनका कहना है

पहले परीक्षा नियंत्रक का काम उप कुलसचिव देखते थे, लेकिन अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने व्यवस्था बदल दी है, इसलिए शासन द्वारा तीन वर्ष के लिए परीक्षा नियंत्रक की स्थाई नियुक्ति की जाती है। विवि एवं महाविद्यालय के प्राध्यापक स्तर के व्यक्ति को यह जिम्मेदारी मिलती है। कार्यकाल पूरा होने के बाद शासन नई नियुक्ति करता है।

डॉ. संदीप सिंह चौहान

पूर्व कुलसचिव, कोटा विश्वविद्यालय, राजस्थान 

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