शौक में पिता को खेलते देख शुरू की कुश्ती, अब इंटरनेशनल खेलने की हैं ख्वाहिश
ग्वालियर। पिता को बचपन से कुश्ती लड़ता देख कुश्ती का शौक लगा। शौक-शौक में अखाड़े में कुश्ती खेलने उतरा था। लेकिन अब देश के लिए इंटरनेशनल खेलकर गोल्ड जितने की इच्छा हैं। पिता को कुश्ती खेलते देख मैंने आठ साल पहले कुश्ती खेलना शुरू किया था। पैसो की तंगी के चलते पिता ने किसी ट्रेनर के पास न भेजकर घर पर ही ट्रेंड करना शुरू किया, यह कहना हैं कुअंरपुर के निवासी सायरूम खान का।
पिता ने दी ट्रेनिंग
सायरूम खान ने बताया की वह कुश्ती के साथ जीवाजी विश्विद्यालय से बी.कॉम. कर रहे हैं।पिछले साल इंदौर में हुई स्टेट लेवल कॉम्पिटिशन में जीवाजी की ओर से भाग लेकर 65 किग्रा वर्ग में गोल्ड मैडल जीता था। इससे पहले ओपन में भाग लेकर सिल्वर मैडल जीत चुके हैं।सायरूम ने बताया की पापा ही घर पर रोजाना प्रेक्टिस कराते हैं। कुश्ती के जो भी दांव सीखे हैं उन्होंने अपने पिता से सीखे हैं। घर में आर्थिक तंगी होने की वजह से वह किसी प्रोफेशनल रेसलर से ट्रेनिंग लेने में सक्षम नहीं हैं।सायरूम ने बताया की वह पढाई और कुश्ती के आलावा वह पिता के साथ मजदूरी करते हैं।मेले में कल हुई जिला स्तरीय प्रतियोगिता में भी 65 किग्रा भार में प्रथम पुरस्कार मिला हैं।आज बाऊट में संभाग स्तर पर खेलते हुए फ़ाइनल में पहुँच गए। इसके बाद स्टेट लेवल पर भी गोल्ड जीत कर नेशनल और इंटरनेशनल खेलने की इच्छा हैं।
मेट और गद्दे की कमी खलती हैं -
सायरूम ने बताया की उनके पास मेट और गद्दे नहीं हैं प्रेक्टिस के लिए। वह मिट्टी के बने अखाड़े पर ही प्रेक्टिस करते हैं। जिसके कारण गद्दों पर खेलने का अभ्यास ना होने की वजह से बड़े टूर्नामेंटो में थोड़ी दिक्कत होती हैं। उन्होंने बताया की मिट्टी में पैर जम जाते हैं और गद्दों पर पैर नहीं जमते इसलिए गद्दों पर खेलते समय हार का डर ज्यादा रहता हैं।
ऐसे होती हैं प्रेक्टिस :-
रोजाना सुबह 6 बजे उठकर 5 किलोमीटर दौड़ लगाना। इसके बाद एक्सरसाइज करना, दंड करना एवं प्रेक्टिस करना। सुबह -शाम मिलाकर दिन में चार घंटे नियमित प्रेक्टिस करते हैं।
ये हैं उपलब्धियां -
-2015 जूनियर वर्ग में जिला स्तर पर गोल्ड
- 2018 राज्य स्तर पर सिल्वर
-2019 राज्य स्तर पर गोल्ड
मेले में चार साल से संभाग स्तर पर फर्स्ट रहें।