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औपनिवेशिक और वामपंथी सोच ने शिक्षा को गर्त में डाल दिया: गोविंद शर्मा

  • - ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला का समापन

Update: 2020-10-12 09:09 GMT

ग्वालियर/वेब डेस्क। शिक्षा राष्ट्रीय होती है, जबकि ज्ञान वैश्विक होता है। जिस शिक्षा में राष्ट्रभाव नहीं, वो शिक्षा नहीं। शिक्षा की जड़ें देश की संस्कृति में होना चाहिए और उसका लक्ष्य उस समाज की उन्नति करना होना चाहिए। जहां तक भारतीय शिक्षा व संस्कृति का सवाल है तो भारतीय होने का गर्व न केवल विचारों में अपितु व्यवहार, बुद्धि व कार्य सबमें होना चाहिए। शिक्षा के दृष्टिकोण में इससे आगे और कुछ नहीं हो सकता। उक्त विचार 'पुस्तक न्यासÓ के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने राष्ट्रोत्थान न्यास, ग्वालियर द्वारा आयोजित ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला के समापन पर 'भारतीय शिक्षा नीति-2020 : दिशा व दृष्टि' विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए।


श्री शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारतीय समाज ब्रिटिश औपनिवेशिक सोच के मकडज़ाल से बाहर नहीं निकल पा रहा था लेकिन राष्ट्रवादी सरकार का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साहस दिखाया है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति द्वारा भारत को ब्रिटिश आभामंडल से बाहर निकालने का यथेष्ट प्रयास है। श्री शर्मा ने कहा कि आजादी के लिए हुए आंदोलनों में औपनिवेशिक शिक्षा नीति की आलोचना आंदोलन का केंद्र रही है। आलोचना मुद्दा ही बनी रही, इसमें मौलिक परिवर्तन नहीं हो पाया। इसका कारण पूर्ववर्ती सरकारों में दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव और वैचारिक पंगुपन का होना है। औपनिवेशिक शिक्षा नीति पिछले 74 वर्षों से भारतीय समाज के समक्ष संकट उत्पन्न करती रही है, जिसमें वामपंथी सोच ने आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने सुनियोजित तरीके से भारतीय विद्या विषयक प्रणाली में भ्रम पैदा कर दिया। वामपंथियों के जो भी मूल्य हैं, उनका उद्देश्य राष्ट्रवादी मूल्यों को निस्तेज करना है।

औपनिवेशिक और वामपंथी सोच के चलते वर्तमान शिक्षा त्रस्त है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इस विसंगति को समझते हुए इसे दूर करने के लिए कस्तूरीरंगन आयोग की सिफारिशों को लागू किया है। यह नीति है, कानून नहीं। बाध्यता नहीं। लेकिन सरकार के लिए दिशा-निर्देश हंै, संकल्प पत्र है। सरकार ने स्वीकार किया है कि शिक्षा के द्वारा ही देश को विकास के उच्च पायदान पर ले जाया सकता है। नई शिक्षा नीति में नए भारत की अवधारणा की अवधारणा देखने को मिलती है। जिसके चलते समृद्ध, सशक्त व ज्ञानव नीति युक्त भारत होगा। आज की यही मांग है। 'पुस्तक न्यासÓ के अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि यद्यपि 1986 में शिक्षा नीति बनी तब भी विचार हुआ था लेकिन वह इतना व्यापक नहीं था। नई शिक्षा नीति को व्यापक बनाने के लिए सरकार ने व्यापक स्तर पर सुझाव मांगे हैं। इसके लिए दो लाख पचास हजार पंचायतों, 6600 ब्लॉक, 676 जिलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप पर विचार हुआ। इस यज्ञ में शिक्षाविदों, गणमान्य विद्वानों व गैर सरकारी संगठनों ने भी अपने सुझावों की आहुतियां डाली। 29 जुलाई 2020 को सरकार ने कस्तूरीरंगन आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर इस ेलागू कर दिया।

शिक्षा के माध्यम से भारत बनेगा विश्वगुरु

कोठारी आयोग की 10+2+3 प्रणाली की बजाय अब 5+3+3+4 प्रणाली नए भारत की अवधारणा को पूर्ण कराने में सहायक साबित होगी। शर्मा ने कहा कि भारत विश्वगुरु है, इस नीति में इसी दृष्टिकोण को लेकर भारत को शिक्षा के माध्यम से विश्वगुरु बनेगा। इसके लिए वर्ष 2030 तक समावेशी गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने का सरकार ने लक्ष्य रखा है। शिक्षण प्रक्रिया छात्र केंद्रित आधारित रहेगी, जिसके तहत विद्यार्थियों में खोज, जिजीविशा, जिज्ञासा, संवाद, जैसे गुणों को विकसति किया जाएगा। 2040 तक हम ऐसी शिक्षा देने में समर्थ होंगे कि भारत वैश्विक प्रतियोगिता में अग्रणी बने। नई शिक्षा नीति ने शोध व नवाचार पर बहुत अधिक जोर दिया है। इसके लिए सरकार ने सकल घरेलू आय का कुल छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है। 

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