भोपाल: 'उधार' के इंजीनियरों के भरोसे करोड़ों की परियोजनाओं वाले कार्यालय...
लोक निर्माण, जल संसाधन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर जो एक बार गया, वापस लौटा ही नहीं
विशेष संवाददाता, भोपाल। मप्र सरकार के निर्माण विभागों के अधीनस्त निर्माण कार्यों से जुड़े निगम, मंडल और प्राधिकरण 'प्रतिनियुक्ति' के भरोसे चल रहे हैं। मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण से लेकर मप्र सड़क विकास निगम, ग्रामीण यांत्रिकीय सेवा, नगरी निकायों, मप्र गृह निर्माण मंडल में ज्यादातर इंजीनियर प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हैं।
खास बात यह है कि इन कार्यालयों में इंजीनियर 5 से लेकर 25 सालों से प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। कुछ की सेवाएं संबंधित कार्यालयों में मर्ज भी हो गईं। जबकि प्रतिनियुक्ति की अवधि 5 साल होती है। मजेदार बात यह है कि सालों से प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों को वापस बुलाने की मूल विभागों ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई है।
प्रदेश सरकार के जल संसाधन, लोक निर्माण विभाग के पास इंजीनियरों की अच्छी खासी संख्या होती थी। इन विभागों से सालों पहले बड़ी संख्या में इंजीनियर निर्माण कार्यों से जुड़े निगम, मंडल और प्राधिकरणों में प्रतिनियुक्ति पर चले गए। नियमानुसार प्रतिनियुक्ति अवधि पूरा होने पर उन्हें वापस मूल विभागों में लौटना था, लेकिन नहीं लौटे। खास बात यह है कि संबंधित कार्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर तैनात अधिकारी एक ही सीट पर सालों से जमे हैं।
जबकि मौजूदा स्थिति में लोक निर्माण विभाग और जल संसाधन विभाग खुद अधिकारियों की कमी से जूझ रहे हैं। नियमित भर्ती और पदोन्नति नहीं होने से निर्माण विभागों का कैडर बिगड़ गया है। ऐसे में ये विभाग सेवानिवृत्त अधिकारी को संविदा पर रखकर काम चला रहे हैं।
निर्माण विभागों में लंबी अवधि से प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ अधिकारियों के संबंध में मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि समय-समय पर शासन को इसकी समीक्षा करनी चाहिए। कुछ हद तक प्रतिनियुक्ति का दुरुपयोग हो रहा है। संबंधित विभागों को इस मसले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाने हर साल बनती हैं सूची
जल संसाधन विभाग, लोक निर्माण विभाग अपने इंजीनियरों को प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाने के लिए हर साल सूची बनाते हैं। वर्तमान में तबादला प्रक्रिया चल रही हैं, दोनों विभागों ने प्रतिनियुक्ति वालों की भी सूची बनाई हैं, लेकिन जब तक कोई विशेष वजह न हो, तब तक वापस किसी को नहीं बुलाया जाएगा। हालांकि प्रतिनियुक्ति पर जमे अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते हैं।
कई मामलों में निलंबन, नोटिस जैसी कार्रवाई भी हुई हैं, लेकिन न तो सेवा लेने वाले कार्यालय और न ही सेवाएं देने वाले विभाग ने प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाया है। नगरीय निकायों में सीवेज, आवास, सड़क जैसे कार्य प्रतिनियुक्ति पर तैनात इंजीनियर ही देखते हैं। घोटाले भी इन्हीं के रहते होते हैं।
खुद के इंजीनियर नहीं, लेकिन काम अरबों के
मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण, मप्र सड़क विकास निगम, मप्र ग्रामीण यांत्रिकीय विभाग, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, मप्र गृह निर्माण मंडल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, नगरीय निकाय, भवन विकास निगम, पुलिस गृह निर्माण मंडल समेत अन्य कार्यालयों के पास खुद के अुनभवी इंजीनियर नहीं है। लेकिन इन संस्थाओं के पास जल संसाधन और लोक निर्माण विभाग से ज्यादा बजट वाले काम हैं।
मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण प्रदेश भर में ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाता है। मप्र सड़क विकास निगम स्टेट हाईवे समेत अन्य प्रमुख सड़के बनाता है। यांत्रिकीय विभाग सुदूर ग्रामीण अंचल में सड़क एवं अन्य कार्य देखता है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण नर्मदा नदी पर बांध से लेकर नहरों का काम देखता है। मप्र गृह निर्माण मंडल शहरों में गृह निमाण परियोजनाएं विकसित करता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन प्रदेश के अलग-अलग हिस्से में चिकित्सीय भवन एवं अन्य निर्माण कार्य कराता है।
नगरीय निकाय शहरों में सीवेज, पानी, सड़कों का काम देखता है। भवन विकास निगम राज्य के भीतर बड़े सरकारी भवन बनाता है। पुलिस गृह निर्माण मंडल पुलिस आवास एवं कार्यालय बनाता है। इनके पास ज्यादातर इंजीनियर प्रतिनियुक्ति या संविदा पर तैनात हैं।