आइए, पहले थोड़ा इतिहास में चले। कांग्रेस की मध्य प्रदेश की राजनीति में जय विलास पैलेस और राघौगढ़ किला हमेशा शक्ति केन्द्र रहे । हैं । इतिहास के पन्ने यह भी बताते हैं कि राजपूत एवं मराठाओं में भी संघर्ष रहा है। कांग्रेस में जयविलास सिंधिया घराने का और राघौगढ़ किला दिग्विजय सिंह का प्रतिनिधित्व करता है। ग्वालियर रियासत, विदिशा, उज्जैन तक रही है पर राघौगढ़ तब भी एक स्वतंत्र रियासत रही। कांग्रेस में दिग्विजय सिंह प्रारंभ से हैं और स्व. माधवराव सिंधिया चरणबद्ध तरीके से कांग्रेस से जुड़े 177 में निर्दलीय चुनाव कांग्रेस के समर्थन से लड़ा और 1980 में शामिल हो गए। स्व. माधवराव सिंधिया, म.प्र. विकास कांग्रेस का अंतराल छोड़ दें तो जीवन पर्यन्त कांग्रेसी ही रहे। वह कांग्रेस एक बड़े ऊर्जावान एवं संभावना से भरे राजनेता थे पर जैसा कि कांग्रेस में परम्परा है, योग्यता वहां पिछड़ती है। राजनीति दांव पेंच में स्व. सिंधिया ने बार-बार मात खाई और एक दुर्घटना में दुर्भाग्यवश चल बसे। फिर उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिता की विरासत संभाली। श्री सिंधिया ने श्री सिंह को उनकी ही शैली में उत्तर देने का प्रयास पार्टी में रहते हुए किया । पर श्री सिंह के दांव पेंच भारी रहे और सिंधिया ने कांग्रेस को अलविदा कहा। अब बात आज की: श्री सिंह अपने ताजा पॉडकास्ट में कहते हैं कि उनकी स्व. माधवराव सिंधिया से उनके बेहद अच्छे माधवराव सिंधिया से उनके बेहद अच्छे संबंध रहे। वह परिपक्व थे।
हमारी आपसी समझ थी कि वह दिल्ली देखेंगे और मैं मध्य प्रदेश । यह अर्ध सत्य है। श्री सिंह कहते हैं कि personality clash हमारे बीच होने की आशंका अधिक थी, पर हम एक ही क्षेत्र के थे। एक अलिखित शिवप्रताप सिंह को विधायक का टिकिट दिलाने में पसीने आ जाते थे। यही नहीं प्रशासन भी श्री सिंह के इशारे पर ही काम करता था । राजनीति के जानकार इसको लेकर कई उदाहरण देते हैं। पूर्व । मंत्री एवं श्री सिंधिया के विश्वसनीय महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने कहा कि हमारे लिए कांग्रेस अब अतीत है । हम भाजपा के कार्यकर्ता हैं । अत: श्री सिंह की इन बातों का कोई अर्थ नहीं है। पर सच यह है कि श्री दिग्विजय सिंह जब मुख्यमंत्री तब भी सिंधिया समर्थक मंत्रियों के कांग्रेस घमासान - अंतिम थे, समझौता था हमारे बीच। माधवराव सिंधिया गुना से चुनाव लड़ते थे तो राघौगढ़ (श्री सिंह का गृह क्षेत्र) गुना में होने के बावजूद गुना के सारे राजनीतिक, प्रशासनिक निर्णय श्री सिंधिया की सहमति से होते थे। पर तथ्य इसके विपरीत हैं । स्वर्गीय माधवराव सिंधिया को गुना से स्वर्गीय साथ सौतेला व्यवहार हुआ और जब कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो हम लोगों के लिए दरवाजे ही बंद थे । श्री सिसौदिया ने कहा कि शिवपुरी में प्रकाश शर्मा और गुना में कैलाश शर्मा जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे। स्व. माधवराव। सिंधिया के जीवनकाल में इनकी पहली निष्ठा किधर थी, सब जानते हैं। यही नहीं स्व. शिवप्रताप सिंह स्व. महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा और बालेन्द्र शुक्ला भी सिंह कालूखेड़ा और बालेन्द्र शुक्ला भी दिग्जिवय मंत्री मंडल में उपेक्षित ही थे। यही बात प्रशासनिक अधिकारियों के साथ थी। यही व्यवहार श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी हुआ।
अलबत्ता श्री सिसौदिया ने फिर कहा कि अब इन बातों का कोई अर्थ नहीं, हम भाजपा के कार्यकर्ता हैं और उसे मजबूती देना हमार कार्य । श्री सिसौदिया के तर्कों में दम है। पर श्री दिग्विजय सिंह ने एक साथ सिंधिया और कमलनाथ को निशाने पर लेकर कांग्रेस की राजनीति में तूफान के संकेत दे दिए हैं। स्वयं श्री सिंधिया खामोश हैं। पर कमलनाथ ने यह उत्तर दे दिया है कि सिंधिया को लगता था कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं । श्री कमलनाथ एक अनुभवी राजनेता हैं। उन्हें यह भी जवाब देना चाहिए कि आखिर क्यों ऐसा लग रहा था कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। और अब एक बार फिर जब चुनाव लगभग तीन साल की दूरी पर हैं, क्या वे (दिग्विजय सिंह) प्रदेश कांग्रेस को फिर चलाना चाहते हैं, यह कांग्रेस के क्षत्रपों को समझना होगा। यह बात सही है कि पार्टी के अंदर श्री सिंह का आज भी सर्वाधिक जनाधार है। नर्मदा यात्रा और भारत जोडो यात्रा में उनकी सक्रियता युवा नेताओं को भी शर्मिंदा कर सकती है । राजनीतिक समीकरण में भी उनका कोई सानी नहीं । यह उन्होंने ठीक कहा कि नर्मदा यात्रा का कांग्रेस को चुनाव में लाभ मिला। कांग्रेस नेतृत्व की परेशानी यही है कि इतना जमीनी नेता उनके पास नहीं और पार्टी के बाहर इतना विरोध भी किसी का नहीं। स्वयं वह कहते हैं कि उनको देख कर जनता वोट नहीं देती। श्री सिंह काम भी करें और इसकी राजनीतिक कीमत भी न वसूले, यह अपेक्षा उनसे करना गलत होगा ।