अंग्रेजों ने भी माना वीरांगना लक्ष्मीबाई का लोहा, आजादी की रखी थी नीव

महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर ऑनलाइन व्याख्यान

Update: 2020-06-19 01:00 GMT

भोपाल। वीरांगना लक्ष्मीबाई दिवस पर गुरुवार को विश्व संवाद केन्द्र भोपाल द्वारा विशेष रूप से ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। वीएसके के फेसबुक पेज पर व्याख्यान का सीधा प्रसारण हुआ। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित वरिष्ठ स्तम्भकार व समाजसेविका डॉ. नीलम महेन्द्र ने वीरांगना लक्ष्मीबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लक्ष्मीबाई बचपन से ही वीर योद्धा थीं। घुड़सवारी, तलवारबाजी में वह इतनी पारंगत थी कि उनके आगे अच्छे-अच्छे योद्धा व वीर नहीं टिक पाते थे। उन्होंने उस समय अंग्रेजों के दांत खट्टे किए, जब अंग्रेजों के अत्याचार की पराकाष्टा चरम पर थी और उनसे कोई बोलने वाला तक नहीं था। जनता पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई और स्वयं मोर्चा संभाल लिया। 1857 की क्रांति की वह नायिका थीं और उनके आवाज उठाने का ही नतीजा था कि बच्चा-बच्चा अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तैयार हो गया। अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त होने की ज्वाला यहीं नहीं रुकी और पूरे देशभर में फैल गई, जो 1947 में देश को आजादी दिलाने के बाद ही रुकी। वह अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लेते हुए वीर गति को प्राप्त जरूर हो गईं लेकिन उन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर भी देश की आजादी की नीव रख गईं।

डॉ. महेन्द्र ने कहा कि 1857 की क्रांति में अंग्रेज जीतकर भी हार गए थे। क्योंकि वीरांगना लक्ष्मीबाई के अदम्य साहस ने देशभर में आजादी का एक बिगुल बजा दिया था। उनके इस अदम्य साहस और वीरता को देखकर अंग्रेजों के भी पसीने छूट गए। उस समय अंग्रेजी अधिकारियों ने कहा था कि यदि देश की एक प्रतिशत नारी भी हमसे लोहा लेने के लिए खड़ी हो गईं तो हमें भारत छोड़कर जाना पड़ेेगा। लक्ष्मीबाई द्वारा रखी गई नीव का ही परिणाम है कि लक्ष्मीबाई के बाद देश की झलकारी बाई सहित अनेक वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया। उन्होंने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई भारतीयों के दिलों में नहीं बल्कि दुश्मनों के दिलों में भी जिंदा हैं। उनके अदम्य साहस की दुनियाभर में चर्चा होती है। नके जीवन पर आधारित हॉलीवुड में एक फिल्म भी बन रही है। मुख्य वक्ता ने कहा कि वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन में आत्म सम्मान की रक्षा, आत्मविश्वास, लक्ष्य के प्रति दृढ़ता, अधिकारों के लिए लडऩा, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना, अपने ज्ञान व तर्कबुद्धि का उपयोग करना आदि से कभी समझौता नहीं किया। यही वजह है कि आज वह वीरों में गिनी जाती हैं। आज के युवाओं को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं इतिहास विषय की सहायक प्राध्यापक एवं राष्ट्रसेविका समिति डबरा की नगर कार्यवाहिका डॉ. अंजलि भार्गव ने कहा कि वीरांगना नाम सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में रानी लक्ष्मीबाई की छवि उभरने लगती है। भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में वीरांगना ही थीं। वे भारतीय महिलाओं के समक्ष अपने जीवन काल में ही ऐसा आदर्श स्थापित करके विदा हुईं, जिससे हर कोई प्रेरणा ले सकता है। उन्होंने कहा कि उसके मन में अपने राज्य और राष्ट्र से एकात्म स्थापित करने वाली भक्ति हमेशा विद्यमान रही। वीरांगना के मन में हमेशा यह बात कचोटती रही कि देश के दुश्मन अंग्रेजों को सबक सिखाया जाए। इसी कारण उन्होंने यह घोषणा की कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। इतिहास बताता है कि इस घोषणा के बाद रानी ने अंग्रेजों से युद्ध किया और उनके दांत खट्टे कर दिए। वीरांगना लक्ष्मीबाई के मन में अंग्रेजों के प्रति किस कदर घृणा थी, वह इस बात से पता चल जाता है कि जब रानी का अंतिम समय आया, तब ग्वालियर की भूमि पर स्थित गंगादास की बड़ी शाला में रानी ने संतों से कहा कि कुछ ऐसा करो कि मेरा शरीर अंग्रेज न छू पाएं। इसके बाद रानी स्वर्ग सिधार गईं और बड़ी शाला में स्थित एक झोंपड़ी को चिता का रूप देकर रानी का अंतिम संस्कार कर दिया और अंग्रेज देखते ही रह गए। हालांकि इससे पूर्व रानी के समर्थन में बड़ी शाला के संतों ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया, जिसमें 745 संतों का बलिदान भी हुआ।

डॉ. भार्गव ने कहा कि एक समय ऐसा भी आया जब अंग्रेजों से लडऩे के लिए हथियार, गोला-बारूद नहीं थे, तब उन्होंने महल के जेवरात, आभूषण को गला कर तोप के गोले बनवा दिए थे। इन्हीं तोप के गोलों की मदद से झांसी की सेना ने अंग्रेजों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। उन्होंने कहा कि वीरांगना लक्ष्मीबाई का पूरा जीवन प्रेरणास्रोत है। आज मैं इस मंच से आपसे आग्रह करना चाहती हूं कि कोरोनाकाल में स्वयं, परिवार के साथ-साथ राष्ट्र को संभालने का प्रयास भी करें। चिंतन-मनन करें। संचालन भोपाल विभाग के विभाग प्रचार प्रमुख भावेश श्रीवास्तव ने किया एवं आभार ग्वालियर जिले के सहकार्यवाह मुनेन्द्र सिंह ने व्यक्त किया। व्याख्यान के दौरान चीन के हमले में शहीद हुए वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 

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