देवभूमि उत्तराखंड में डेढ़ से 18 फीसदी हुई मुस्लिम आबादी, तेजी से बदल रही है जनसंख्या
अवैध मजारों के निर्माण में बढ़ोतरी
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में मुसलमानों के बढ़ती आबादी के साथ जमीनों पर अवैध कब्जे, लव जिहाद के मामलों में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसे लेकर हिन्दू संगठन भले चिंता जता रहे हो लेकिन प्रशासन आंखें बंद कर गहरी नींद में सो रहा है।
मुस्लिम समुदाय यहां जमीनों पर कब्जा करने के लिए अवैध मजारों, दरगाहों -मस्जिदों का निर्माण कर रहा है। नदी के किनारे और रेलवे की खाली पड़ी जमीनों कब्जा कर अपनी पूरी बस्ती बसा ली है।पांचजन्य की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की राजधानी देहरादून के पछुवा क्षेत्र में ही 100 से ज्यादा मजारें और पौने दो सौ से अधिक मस्जिदें बन चुकी हैं। जिस उत्तराखंड में साल 2003 में गठन के समय में मुस्लिम समुदाय की आबादी डेढ़ फीसदी थी, वहां आज ये आंकड़ा 18 फीसदी के करीब पहुंच गया है। ऐसे में सवाल में उठता है की महज 20 सालों में इस समुदाय की आबादी में इतना बढ़ोत्तरी कैसे हुई।
कांग्रेस की सह से बढ़ी मजारों की संख्या -
इसका जवाब है पिछली कांग्रेस सरकारों का संरक्षण। कांग्रेस के कार्यकाल में यहां शुरू मजार जिहाद के तहत सिर्फ पछुवा जनपद में ही 900 से ज्यादा अवैध अतिक्रमण आसन बैराज से हिमाचल बॉर्डर तक सामने आए हैं। जिन्हें उत्तराखंड जल विद्युत परियोजना निगम द्वारा नोटिस दिए गए हैं, इनमें 714 मुस्लिम परिवार हैं।
यहां बनी अवैध मजारें -
- पछुवा में ढकरानी के बावड़ी आश्रम के पास भी मजार बना दी गई है।
- एक मजार शक्ति नहर के तिराहे किनारे पर बना दी गई है।
- एक मजार धर्मा वाला से पोंटा रोड पर मधुबन होटल के सामने बना दी गई है।
- कुंजा की दाएं सड़क पर भी एक मजार रातोंरात बना दी गई है।
धर्मा वाला से पोंटा रोड पर और शिमला बाईपास में दर्जनों मजारें सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करके बना दी गई हैं। ये मजारें पिछले 10-15 साल पुरानी हैं। कुछ तो पिछले दो-तीन सालों में बनी हैं। देवभूमि उत्तराखंड में मजार जिहाद इस कदर चल रहा है कि यहां सरकारी जमीनों पर करीब 1300 मजारें चिन्हित की गई हैं।इनमें से अधिकांश मजारें पिछली कांग्रेस सरकारों के समय में बनी है। जिसका खुलासा धामी सरकार में हुआ है। धामी सरकार द्वारा इन मज़ारों और अवैध बस्तियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने पर कांग्रेस नेता विरोध में उतर जाते है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना -
ख़ास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में आदेश दिया था कि बिना अनुमति के कोई भी नए धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं किया जा सकता। सरकार की जमीन पर तो बिलकुल भी नए निर्माण अथवा पुराने निर्माण के विस्तार की इजाजत नहीं दी जाएगी। बावजूद इसके मजार जिहाद ने उत्तराखंड देवभूमि को अपने षड्यंत्र का शिकार बना लिया है। देहरादून जिला प्रशासन इस मुद्दे पर खामोशी की चादर ओढ़े हुए है, जबकि ये सबकुछ राजधानी में उत्तराखंड शासन की नाक के नीचे होता रहा है।
दोबारा बनी मस्जिदें -
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले अवैध रूप से बनी मजारों को तुरंत हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद प्रशासन ने कुछ समय तक अभियान चलाया। कुछ समय बाद ये कार्रवाई बंद हो गई। जिसके चलते यहां यूपी, बिहार से आकर मुस्लिम अवैध रूप से बस भी रहे हैं और मजार जिहाद भी चला रहे हैं। जिसके कारण देवभूम में कई स्थानों पर जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है। सरकार ने अवैध कब्जे कर बनाई गई मजारों को हटवाया, लेकिन अब भी कई स्थानों पर मजारें यथावत हैं या फिर जहां तोड़ी गईं, वहां फिर से बना दी गई।