दिल्ली ब्लास्ट केस: जानिए अब तक की जांच में क्या-क्या सामने आया
दिल्ली ब्लास्ट केस में अब तक क्या सामने आया? टाइमलाइन, आरोपी डॉक्टर, यूनिवर्सिटी कनेक्शन और जांच एजेंसियों की कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट।
दिल्ली ब्लास्ट केस में दो बड़े मेडिकल डॉक्टर्स मॉड्यूल के मास्टरमाइंड के रूप में उभरे जांच एजेंसियों के मुताबिक, डॉ. गुलाम वारिस और डॉ. इमरान आशीफ. इस आतंकी मॉड्यूल के कोर ऑपरेटर हैं। दोनों मेडिकल डॉक्टर होकर भी लंबे समय से IED डिज़ाइन और हैंडलिंग में शामिल पाए गए हैं।
वारिस IED बनाने का अहम चेहरा
एजेंसियों की जांच में पता चला कि वारिस ब्लास्ट की लॉजिस्टिक चेन संभालता था डिवाइस बनाने में सक्रिय रूप से शामिल था और बायपास कनेक्शन, टाइमिंग सिस्टम और वायरिंग उसके जिम्मे थे उस पर "तकनीकी स्किल और मेडिकल बैकग्राउंड" का गलत इस्तेमाल करने का आरोप है।
पहस्ती ठिकानाः पूरी टीम यहां छिपी रहती थी
जांच में खुलासा हुआ है कि मॉड्यूल का पूरा नेटवर्क दिल्ली–हरियाणा सीमा के पास पहस्ती के एक किराए के घर को सेफ हाउस, मीटिंग पॉइंट, और IED असेंबली लोकेशन के तौर पर इस्तेमाल करता था। यही वह जगह है जहां वर्कशॉप सेटअप मिला।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी में छात्रों को शामिल करने की कोशिश
जांच अधिकारियों के अनुसार नेटवर्क ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों को प्रभावित/भर्ती करने की कोशिश की। परिसर का उपयोग मुलाकात और भर्तियों की शुरुआती बातचीत के लिए हुआ। कुछ छात्र एक्टिव सदस्य नहीं थे, लेकिन कई की विचारधारा की पुष्टि हुई है।
छापेमारी में विस्फोटक, उपकरण और डिजिटल क्लू बरामद
जांच एजेंसियों को पहस्ती और संबद्ध ठिकानों से वायरिंग, टाइमर्स केमिकल बेस्ड मटेरियल, बैटरी पैक्स, सर्किट पार्ट्स, नक्शे और रूट-स्केच मोबाइल चैट बैकअप और डिजिटल ड्राफ्ट मिले, जो IED मॉड्यूल की पुष्टि करते हैं।
मॉड्यूल की रणनीतिः छोटे लेकिन हाई-इम्पैक्ट हमले
पूछताछ से पता चला है कि इनके टार्गेट भीड़ वाले सार्वजनिक स्थान थे। हमले का तरीका था घना जनसमूह और लो-कॉस्ट IED था। जिम्मेदारी लेने से बचने के लिए नॉन-ट्रेसएबल डिजिटल नेटवर्क का उपयोग किया जा रहा था।
गिरफ्तारी की टाइमलाइन
एजेसिंयों ने पहले डॉ. वारिस को पकड़ा, उसकी पूछताछ ने डॉ. इमरान आशीफ तक रास्ता दिखाया। दोनों की आपसी चैट, कॉल और फील्ड लोकेशन मॉड्यूल की गतिविधि एक जैसी होने की पुष्टि करती है।
आतंकी लिंक फाइनल करने की प्रक्रिया जारी
एजेंसियों ने स्वीकार किया है कि इनको विदेशी संगठन सपोर्ट कर रहे थे। उनके फंडिंग चैनल और अंतिम निर्देश कहां से आते थे, इन पर डीप फॉरेंसिक ट्रैकिंग चल रही है।