SIR: बीएलओ और जनता दोनों परेशान, फिर भी लोकतंत्र के लिए जरूरी
बीएलओ भी परेशान, जनता भी असमंजस में लेकिन लोकतंत्र के लिए यह जमकर चल रही मेहनत बेहद जरूरी
बीएलओ की सुबह शुरू होती है संघर्ष से
मध्य प्रदेश में चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया इन दिनों पूरे जोर पर है। गांव से लेकर शहर तक बीएलओ सुबह-सुबह फॉर्म के बंडल लेकर निकल रहे हैं। समयसीमा कड़ी है, काम अनिवार्य है और जमीन पर हालात… थोड़े उलझे हुए। बीएलओ भी परेशान, जनता भी असमंजस में लेकिन लोकतंत्र के लिए यह जमकर चल रही मेहनत बेहद जरूरी है।
नेटवर्क की रफ्तार सबसे बड़ी रुकावट
भोपाल की बीएलओ सुषमा चौधरी फॉर्म तो एक-एक घर जाकर भरवा रही हैं, लेकिन मुश्किल सबमिट करने में आ रही है। नेटवर्क इतनी धीमी गति से चल रहा है कि 40–45% फॉर्म ही अब तक ऑनलाइन अपलोड हो पाए हैं। लोग सवाल पूछते हैं काम कब पूरा होगा? और बीएलओ बस एक ही जवाब दे पाती हैं नेट चले तो करा दें।
फॉर्म न मिलने से जनता में नाराज़गी
कई लोग ऐसे हैं जिनका नाम वार्ड की वोटर लिस्ट में है, वे नियमित वोटर हैं लेकिन नई प्रक्रिया में उनके फॉर्म या तो पहुंचे नहीं, या बीच में गायब हो गए। बीएलओ खुद मानते हैं सरकार की तरफ से इस स्थिति में क्या करना है, इसके स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं आए हैं। जनता सवाल करती है और बीएलओ सिर्फ आश्वासन देते रह जाते हैं।
2003 का रिकॉर्ड: सबसे बड़ी टेंशन
फॉर्म भरना है, तो 2003 के पुराने रिकॉर्ड चाहिए। अधूरा फॉर्म जमा करने को कोई तैयार नहीं, बीएलओ पर दबाव है, क्या करें रिकॉर्ड कहां से निकालें? इस द्वंद्व में कर्मचारी भी उलझे हुए हैं। हालांकि चुनाव आयोग की साइट पर 2003 की पूरी लिस्ट है, जानकारी वहां से मिल जाती है।
समयसीमा ने बीएलओ की बढ़ाई टेंशन
सुबह 9 बजे से अमला मैदान में, लेकिन काम पूरा नहीं हो रहा। लोग पर सहयोग नहीं करने का आरोप है, कई बार संपर्क करो फिर भी जानकारी नहीं मिलती। भोपाल के राम जीवन का कहना हैं, फॉर्म भरना मुश्किल है। सरकार अगर बीएलओ से फॉर्म भरवाने के निर्देश दे, तो दिक्कतें कम हो जाएंगी।
लोकतंत्र की मजबूती के लिए ये मेहनत जरी
बीएलओ, सरकारी कर्मचारी और आम लोग तीनों ही SIR प्रक्रिया में उलझन और दबाव महसूस कर रहे हैं। फिर भी यह व्यवस्था इसलिए जरूरी है ताकि वोटर लिस्ट साफ-सुथरी हो, लोकतंत्र की बुनियाद पक्की करने के लिए मेहनत जरूरी है।