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ऐसे 'विद्वानों' को कोई सफाई न दे संघ

प्रसंगवश - अतुल तारे

Update: 2023-02-07 00:45 GMT

मराठी चैनल एबीपी माझा पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत का संपूर्ण वीडियो है। इस वीडियो में 12:46 मिनट पर मोहन भागवतजी कहते हैं,

सत्य हाच ईश्वर आहे। ते सत्य असं सांगतं कि मी सर्वाभूती आहे। आणि त्याच्या मुळे रूप नाम काहीही असलं तरी योग्यता एक आहे। मान सन्मान एक आहे। आपलेपणा सर्वांविषयी आहे। कोणी ही उच्च, नीच नाही। शास्त्रांचा आधार घेऊन पंडित लोक जे सांगत असतात ते खोटे आहे। जाति-जाति च्या श्रेष्ठत्वा च्या कल्पने मध्ये उच्च नीचतेच्या भोवऱ्यात अड़कून आपण भ्रमिष्ट झालो आहोत। हा भ्रम दूर करायचा आहे।

इसका हिंदी अनुवाद है, सत्य ईश्वर है। वह सत्य कहता है कि मैं सर्वज्ञ हूँ और उसके कारण रूप कोई भी हो, गुण एक ही होता है। सम्मान एक है। आत्मीयता हर एक के साथ है। कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। शास्त्रों के आधार पर पंडित जो कह रहे हैं, वह झूठ है। जातिगत श्रेष्ठता के विचार में ऊंच-नीच के भंवर में फंसकर हम दिग्भ्रमित हो गए हैं। इस भ्रम को दूर करना होगा।

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क्या गलत कहा है? कौन मूर्ख कह रहा है कि श्री भागवत ने यह कहा कि जाति पंडितों ने बनाई? जाति किसने बनाई यह उन्होंने कहा ही नहीं। वह यह कह रहे हैं कि जाति में श्रेष्ठता की तलाश यह पंडितों ने की। पंडित से उनका आशय ज्ञानी, विद्वान से था। पर इस बयान पर जहर वो कथित पंडित उगल रहे हैं, जिनकी पोथी अब कोई पढ़ नहीं रहा। ये वो पंडित हैं जिनकी कलई खुलती जा रही है। ये वो पंडित हैं जिनका काम शब्दों को तोड़ना ही नहीं है, ये वो पंडित हैं जो देश को तोड़ने का काम लगातार कर रहे हैं।

संदर्भ से हटकर, मूल प्रसंग को पार्श्व में इरादतन रख कर देश में वैमनस्यता का जहर घोलना इन पंडितों का आज पेशा बन गया है। मानस की चौपाइयों की शूद्र व्याख्या इन्हीं पंडितों की कारगुजारी है। कारण वह देख रहे हैं कि देश की चेतना जाग्रत हो रही है। अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर नहीं बन रहा एक राष्ट्र मन्दिर आकार ले रहा है। वह देख रहे हैं कि देश के दूरस्थ दुर्गम क्षेत्रों में वीर शिवाजी की मूर्ति का अनावरण हो गया है। वह देख रहे हैं कि पूर्वांचल के महान वीर उधो पासी से लेकर महाराजा सुहेलदेव इतिहास के स्वयंभू पंडितों की कैद से निकलकर आज सामाजिक न्याय और समता की वास्तविक इबारत तो लिख ही रहे हैं, साथ ही भारत के स्वत्व को भी साकार करने लगे हैं।


वह देख रहे हैं दक्षिण में रामानुजाचार्य की मूर्ति आज सम्पूर्ण देश की आस्था का केंद्र बन रही है। इस्लामिक बर्बरता के सदियों से हरे बने घाव, काशी विश्वनाथ के कॉरिडोर में अब करोड़ों हिंदुओं को दर्द की जगह एक सांस्कृतिक गौरवभाव से प्रतिष्ठित कर रहे हैं। उज्जैन का महाकाल लोक या राम वन गमन पथ के विकास से लेकर चार धाम प्रोजेक्ट तक भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जागरण के इन सुगठित और दीर्धकालीन प्रयासों से इन कथित पंडितों की नींद उड़ गई है। यह नींद इसलिए भी उड़ गई है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आज स्वीकार्यता सर्वस्पर्शी है। संघ को चितपावन ब्राह्मण और मुनवादियों का संगठन कह कर कठघरे में खड़ा करने वालों के पेट मे क्यों दर्द हो रहा है? ब्राह्मणों को गोस्वामी जी ने क्या-क्या नहीं कहा है, उत्तरकाण्ड में वे लिखते हैं -

बिप्र निरच्छर लोलुप कामी।

निराचार सठ बृषली स्वामी॥ (उत्तरकाण्ड 99/8)

अर्थात कलियुग में ब्राह्मण अपढ़, लोभी, कामी, आचारहीन, मूर्ख और व्यभिचारिणी स्त्रियों के स्वामी होते हैं। इस विषय पर ब्राह्मण समाज गोस्वामी तुलसीदास जी से नाराज नहीं होता अपितु एक अभिभावक के रूप में इसे कठोरता से दी गई शिक्षा के रूप में ग्रहण करता है। जाहिर है वह पूरा वीडियो सुन लें, तब भी वह जो कर रहे हैं सोच समझ कर योजनाबद्ध कर रहे हैं और देश का विधर्मी तत्व एक वायु मण्डल बनाने का षडयंत्र कर रहा है। वरना क्या ये पंडित नहीं जानते कि पंडित शब्द का अर्थ हिंदी शब्द कोष में विद्वान है।

श्री भागवत ने यह बिल्कुल नहीं कहा कि जाति किसने बनाई। उन्होंने यह कहा कि जाति में ऊँच नीच का भाव पंडितों ने पैदा किया। ईश्वर के यहाँ सब एक हैं। उत्तर रामायण में यह चौपाई श्री भागवत के बयान पर और मुहर ही लगाती है-

राजघाट सब विधि सुंदर बर।

मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।।

तीर तीर देवन्ह के मंदिर।

चहुँ दिसि तिन्ह के उपवन सुंदर।।

अर्थात राजघाट सब प्रकार से सुंदर और श्रेष्ठ है। जहाँ चारों वर्णों के पुरुष स्नान करते हैं। सरयू के किनारे किनारे देवताओँ के मंदिर हैं जिनके चारों ओर सुंदर उपवन हैं। लिखने की आवश्यकता नहीं कि श्री भागवत का संकेत यही था कि सब एक समान हैं। यह भेद बाद में समाज में आया।



यद्यपि बयान से उभर कर सामने आए दुर्भाग्यपूर्ण विवाद पर संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आम्बेकर ने स्पष्टीकरण जारी कर दिया है।

उन्होंने स्पष्ट किया है कि पंडित से आशय जाति नहीं है। लेकिन विगत का अनुभव बताता है कि ये ताकतें वही करेंगी जो ये तय कर चुकी हैं। कारण यह उनका एजेंडा है। यह उनका नैरेटिव है। और वह हर वो काम करेंगे जो देश में विभेद पैदा करे।

आवश्यकता इस बात की है कि इन मूर्ख पंडितों की बातों का उत्तर न देते हुए उन्हें उनकी कारगुजारियों पर जवाब देने के लिए बाध्य किया जाए। श्री भागवत जी ने जो कहा है वह अपना असर छोड़ रहा है। बौखलाहट यह प्रमाणित कर रही है। इसलिए ऐसे मूर्ख पंडितों को कोई सफाई नहीं।


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