देव आनंद को रोमांटिक प्रेमी बनाने वाले विजय आनंद

देव को देव आनंद बनाने में चार लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सबसे पहले चेतन आनंद फिर गुरुदत्त और राज घोसला और उसके बाद उनके छोटे भाई विजय आनंद यानी गोल्डी।

Update: 2023-10-07 10:17 GMT

बॉलीवुड के अनकहे किस्से - देव आनंद के गोल्डी

देव आनंद का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। पूरे देश को अपने खास अंदाज से मोहित कर देने वाले देव आनंद सच में एक ऐसे प्रेम पुजारी थे जिन्होंने भारतीय सिनेमा में प्यार को रूमानियत के साथ-साथ शोखपन और असीम ऊर्जा प्रदान की। देव को देव आनंद बनाने में चार लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सबसे पहले चेतन आनंद फिर गुरुदत्त और राज घोसला और उसके बाद उनके छोटे भाई विजय आनंद यानी गोल्डी। जिद्दी (1948) देव की पहली सुपरहिट फfल्म थी जिसे बॉम्बे टॉकीज के लिए शाहिद लतीफ ने निर्देशित किया था के बाद 1949 में देव आनंद ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ नवकेतन फिल्म्स नामक फिल्म कंपनी की स्थापना की। अफसर (1950) इस बैनर की पहली फिल्म थी जिसे चेतन आनंद ने निर्देशित किया था। नवकेतन की अगली फिल्म बाजी थी जिसे उनके मित्र गुरुदत्त ने निर्देशित किया।

दरअसल गुरुदत्त, देव आनंद की पहली फिल्म हम एक हैं (1946) के सहायक निर्देशक और हमउम्र थे। इसलिए शीघ्र ही दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई । दोनों ने आपस में यह वादा भी किया कि जब भी वे अपनी पहली फिल्म बनाएंगे तो एक-दूसरे को मौका अवश्य देंगे। आंधियां ( 1952), टैक्सी ड्राइवर (1954) और फंटूश (1956) के निर्देशन के बाद चेतन आनंद नवकेतन से अलग हो गए और उन्होंने अपनी निर्माण कंपनी हिमालय फिल्म के नाम से बना ली। इस दौरान राज घोसला ने और लोगों के लिए उनकी कुछ हिट फिल्में निर्देशित की। काला पानी (1958) का निर्देशन उन्होंने नवकेतन के लिए किया फिर वे गुरुदत्त के साथ व्यस्त हो गए। ऐसे में विजय आनंद की एंट्री नवकेतन में हुई ।

हालांकि टैक्सी ड्राइवर के निर्माण के समय विजय आनंद पहली बार नवकेतन से जुड़े। इस फिल्म के लिए उन्होंने संवाद लेखन का कार्य किया। विजय आनंद की पटकथा नौ दो ग्यारह (1957) से प्रभावित होकर देव आनंद ने उसके निर्देशन की जिम्मेवारी भी उनको सौंप दी। फिल्म बेहद सफल रही और उसके बाद तो नवकेतन की फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी विजय आनंद को मिल गई जिसे उन्होंने लंबे समय तक निभाया। विजय आनंद ने उनके लिए 10 फिल्मों का निर्देशन किया जिसमें चार फिल्में काला बाजार (1960 ), तेरे घर के सामने (1963), गाइड (1965) और ज्वैल थीफ (1967) का निर्देशन उन्होंने नवकेतन फिल्म्स के लिए किया और बाद में अपने बनाए बैनर नवकेतन इंटरप्राइजेज के लिए तेरे मेरे सपने (1971), छुपे रुस्तम (1973) और बुलेट (1976) का निर्माण किया। बीच में एक सुपरहिट फिल्म त्रिमूर्ति फिल्म के लिए थी जॉनी मेरा नाम (1970)। यह वह फिल्में हैं जिनसे संपूर्ण देव आनंद की छवि निर्मित होती हैं।

देव आनंद को हंसते-गाते रोमांटिक प्रेमी बनाने में विजय आनंद की फिल्मों की विशेष भूमिका रही। उनके द्वारा गीतों को फिल्माए जाने का हुनर सबसे अलग और सबसे निराला था। यह शैली उन्होंने गुरुदत्त से सीखी थी। यह कुछ विशेष गीत हैं ... खोया खोया चांद..., रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात...(काला बाजार) या फिर तेरे घर के सामने.... का गीत जो कुतुब मीनार पर फिल्माया गया था। वह दर्शकों का आज तक याद है। यह नवकेतन फिल्म्स की आखिरी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी।

इसके बाद नकेतन की पहली रंगीन और ऑफबीट फिल्म गाइड का जिम्मा विजय आनंद को मिला। पहले देव आनंद यह फिल्म अंग्रेजी और हिंदी में साथ-साथ बनाना चाहते थे। हिंदी फिल्म का निर्देशन चेतन आनंद कर रहे थे लेकिन विदेशी निर्देशक के साथ बात न बनने के कारण यह फिल्म बंद हो गई । अंग्रेजी फ़िल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई। आखिरकार देव आनंद ने गोल्डी से बात की तब गोल्डी ने निर्देशन के साथ-साथ इसकी पटकथा व संवाद भी बदलने की बात कही। फिर तो यह ऐसी कालजयी फिल्म बनी जिसने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाई प्रदान की । ज्वैल थीफ की सफलता के बाद आगे से प्रेम पुजारी (1970) के बाद नवकेतन की फिल्मों के निर्देशन का काम देव आनंद ने स्वयं संभाल लिया।

चलते-चलते

नवकेतन की 1961 में आई फिल्म हम दोनों में निर्देशक के रूप में अमरजीत का नाम गया है लेकिन यह सब जानते हैं कि यह फिल्म विजय आनंद ने ही निर्देशित की थी। अमरजीत नवकेतन के पब्लिसिटी प्रमुख थे और गोल्डी के सहायक निर्देशक भी। एक बार गोल्डी के किडनी के ऑपरेशन के समय अमरजीत ने बेंगलुरु में उनकी दिन रात बहुत सेवा की थी। इस दौरान वह विजय आनंद के काफी नजदीक आ गए थे और तब उन्होंने स्वयं निर्देशक बनने की तमन्ना जाहिर की । तब विजय आनंद ने उनसे वादा किया कि नवकेतन की अगली फिल्म में निर्देशन के रूप में वही रहेंगे। हालांकि देव आनंद को यह बात मंजूर नहीं थी लेकिन उनके इस आश्वासन के बाद कि मैं उनके साथ सेट पर हमेशा रहूंगा वे मान गए थे।

(लेखक : अजय कुमार शर्मा, वरिष्ठ कला-साहित्य समीक्षक हैं।)

Tags:    

Similar News