प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के हाल बेहाल!: वर्ल्ड-क्लास दावों के बीच मरीजों की हालत बद से बदतर
राजधानी रायपुर के अंबेडकर जिला अस्पताल और अन्य सरकारी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन वास्तविकता इन दावों के बिल्कुल विपरीत है। अस्पतालों के विस्तार में लापरवाही, निर्माण कार्यों में देरी और संसाधनों की भारी कमी ने गंभीर मरीजों को सबसे ज्यादा परेशान किया है।
स्थिति यह है कि न सामान्य वार्डों में पर्याप्त बेड उपलब्ध हैं, न आईसीयू में समय पर प्रवेश। आपातकालीन स्थिति में आने वाले मरीजों का उपचार स्ट्रेचर या व्हीलचेयर पर ही शुरू करना पड़ता है। अस्पताल स्टाफ भी स्वीकार करता है कि बेड न होने के कारण मरीजों को कई-कई घंटे इंतजार करना पड़ता है। वहीं, सिफारिश लगने पर बेड तुरंत मिलने की व्यवस्था मरीजों के बीच पक्षपात को उजागर करती है।
2023 की घोषणा आज भी अधूरी
अंबेडकर अस्पताल में बेड संकट दूर करने के लिए वर्ष 2023 में 700 बिस्तरों वाले नए भवन का भूमिपूजन किया गया था। यह घोषणा की गई थी कि इससे मरीजों की भीड़ कम होगी, उपचार का दबाव घटेगा और मातृ-शिशु सेवाएं सुदृढ़ होंगी। बावजूद इसके, शासन द्वारा बजट स्वीकृत होने, जमीन उपलब्ध होने और तकनीकी योजना तैयार होने के दो वर्ष बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका। प्रस्तावित स्थल पर आज भी पुराना बॉयज हॉस्टल जस का तस खड़ा है।
रेड-यलो-ग्रीन प्रणाली फेल, इमरजेंसी में पर्ची अनिवार्य
ट्रॉमा मरीजों के लिए बनाई गई रेड-यलो-ग्रीन व्यवस्था पूरी तरह असफल साबित हो रही है। नेशनल मेडिकल कमीशन के निर्देश हैं कि इमरजेंसी में आए मरीज को बिना पर्ची और पहचान पूछे तुरंत प्राथमिक उपचार मिलना चाहिए। लेकिन अंबेडकर अस्पताल में गंभीर मरीजों को भी पहले पर्ची बनवाने काउंटर पर भेजा जाता है, जिससे कई बार मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है।
दवाओं की कमी और आर्थिक बोझ
अंबेडकर अस्पताल की ओपीडी में रोजाना लगभग 2500 मरीज पहुंचते हैं, लेकिन निःशुल्क दवाओं की भारी किल्लत के कारण कई मरीजों को लौटना पड़ता है। मजबूरी में मरीजों को 900 रुपए से लेकर 15,000 रुपए तक की दवाएं बाजार से खरीदनी पड़ती हैं। दवाओं की कमी, स्टाफ की बेरुखी और लंबी कतारों की वजह से ओपीडी में रोजाना तनाव, नोकझोंक और हंगामे तक की स्थिति बन रही है।
"कोई जिला अस्पताल सहित सभी पीएचसी और सीएचसी में दवाओं की कमी को लेकर अब तक मरीजों या परिजनों से शिकायत नहीं मिली है। यदि किसी अस्पताल में जीवन-रक्षक दवाओं की कमी पाई जाती है, तो उन्हें तुरंत उपलब्ध कराया जाएगा।"
- डॉ. मिथिलेश चौधरी, सीएमएचओ, रायपुर
फैक्ट फाइल
1. प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल – 1240 बिस्तर
2. स्त्रीरोग विभाग में कुल 6 यूनिट
3. 700 बिस्तरों वाले नए भवन की घोषणा – दो साल से फाइलों में अटका निर्माण
4. दवाओं की कमी और आधे से ज्यादा जांच मशीनें खराब
"700 बिस्तरों वाले नए अस्पताल का डिजाइन तैयार है और टेंडर अंतिम चरण में है। प्रक्रिया पूरी होते ही निर्माण तेज गति से शुरू कराया जाएगा। ताकि लोगों को जल्द आधुनिक अस्पताल की सुविधा मिल सके।"
- रितेश अग्रवाल, एमडी, सीजीएमसी