धूल फांक रहीं छह करोड़ की मशीनें, मरीज बेहाल: अयोध्या जिला अस्पताल में खुलने लगी उपकरण घोटाले की परतें….

सवालों के घेरे में जिला अस्पताल प्रशासन की ‘अदृश्य चिकित्सा नीति'

Update: 2025-06-16 12:23 GMT

समीर शाही, अयोध्या। श्रीराम की नगरी अयोध्या में मरीजों की सेवा के नाम पर करोड़ों की लूट का एक और मामला सामने आया है। जिला चिकित्सालय में 2023 में मरीजों को उन्नत सेवाएं देने के नाम पर 6 करोड़ 9 लाख 67 हजार 442 रुपये की लागत से उपकरण खरीदे गए, लेकिन वे आज भी गोदामों और वार्डों की अलमारियों में बंद धूल खा रहे हैं। न प्रयोग, न प्रशिक्षण, न देखरेख - सब कुछ ऐसे ही छोड़ दिया गया है जैसे इनका मकसद उपयोग नहीं, बल्कि कमीशन खाना हो।

चौंकाने वाली बात यह है कि जिन उपकरणों को स्वास्थ्य सुधार का जरिया माना गया, उन्हें इस्तेमाल करने के लिए स्टाफ को अब तक कोई प्रशिक्षण नहीं मिला। कई उपकरण ऐसे भी खरीदे गए जिनका अस्पताल में कोई उपयोग ही नहीं निकलता। मसलन, वेन फाइंडर, जो नसें खोजने वाला उपकरण है - उसकी खरीद तो हुई, लेकिन आज तक इस्तेमाल में नहीं लाया गया। इजी चेक हीमोग्लोबिन मीटर नाम की मशीन भी केवल शोपीस बनी हुई है। इसके लिए जरूरी स्ट्रिप्स तक नहीं मंगाई गईं।

जिला अस्पताल प्रशासन की इस ‘अदृश्य चिकित्सा नीति’ पर सवाल उठने लाजिमी हैं। जब उपकरणों का उपयोग नहीं होना था, तो उनकी खरीद क्यों की गई? क्या यह पूरा मामला सिर्फ कागजों पर खरीद दिखाकर करोड़ों की बंदरबांट करने का खेल था?

पुराने कार्यकाल तक फैलीं भ्रष्टाचार की जड़ें

यह पूरा घोटाला पूर्व प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बृज कुमार और तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विपिन वर्मा के कार्यकाल में हुआ। तभी 6 करोड़ से ज्यादा के उपकरण खरीदे गए। जांच की बात तो हुई, लेकिन सरकारी तंत्र की जानी-पहचानी शैली में मामला दबा दिया गया और डॉ. बृज कुमार को चुपचाप हटा दिया गया। अब एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं – क्या उस समय की खरीद सिर्फ बजट का दोहन थी?

जानकारी के अनुसार, तमाम ऐसे उपकरण भी हैं जो शुरू से ही खराब हैं या कुछ ही समय में खराब हो गए। सप्लाई देने वाली कंपनियों ने आज तक न उनकी मरम्मत की और न ही रिप्लेसमेंट दिया। इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब सवाल उठता है - क्या यह ‘सिस्टमेटिक लूट’ थी?

यदि सामान खरीदा गया तो उसका उपयोग होना चाहिए, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ए.के. सिन्हा ने कहा

यदि अस्पताल के लिए कोई सामान खरीदा गया तो उसका उपयोग भी होना चाहिए, अन्यथा उसके खरीदे जाने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी जरूरी है। यह खरीद मेरे कार्यकाल की नहीं है और न ही मेरे पास खरीदे गए सामानों की कोई सूची है। हो सकता है और भी ऐसे उपकरण हों जो उपयोग में नहीं लाए जा रहे हों।"

अयोध्या जिला चिकित्सालय का यह मामला न सिर्फ वित्तीय अनियमितता का सबूत है, बल्कि मरीजों की जान से किया गया क्रूर मज़ाक भी है। सवाल यह है कि क्या कोई ठोस कार्रवाई होगी, या यह मामला भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?

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