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सपा की निगाह में महिलाओं की पहचान पुरुषों से, भाजपा ने रखी लाज

उत्तर प्रदेश में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं की पहचान अभी भी पुरुषों से है. राजनीतिक दल भी महिलाओं को टिकट घोषित करते समय पत्नी, पुत्री के नाम से सूची जारी कर रहे हैं.

Update: 2021-04-07 11:23 GMT

अयोध्या (ओम प्रकाश सिंह): उत्तर प्रदेश में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं की पहचान अभी भी पुरुषों से है. राजनीतिक दल भी महिलाओं को टिकट घोषित करते समय पत्नी, पुत्री के नाम से सूची जारी कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में महिलाओं को सम्मान दिया है और सूची को महिलाओं के नाम से जारी किया है. समाजवादी पार्टी के लिए महिलाओं की पहचान अभी भी पुरुषों से है.

ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, प्रधान रह चुकी महिलाओं की भी पहचान पोस्टर, पंपलेट में पुरुषों से दर्शाई जा रही है. सपा ने जिला पंचायत सदस्यों की जो सूची जारी की उसमें इंदू सेन यादव पत्नी आनंद सेन यादव, प्रियंका सेन यादव पत्नी अरविंद सेन यादव के साथ सभी महिलाओं के आगे पुरुषों के नाम लिखे हैं. इनमें इंदू सेन यादव ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं, इनकी अपनी पहचान है.यह स्थिति पूरे प्रदेश में है.

हालांंकि वर्तमान समय में महिला आरक्षण को कई राज्यों ने तैंतीस से बढ़ाकर पचास प्रतिशत तक कर दिया है. जिससे ग्राम पंचायतों में महिलाओं की भूमिका और भागीदारी बढ़ी है. आदिकाल से ही भारत में महिलाओं का स्थान महत्वपूर्ण रहा है. आजादी के बाद भी महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. चाहे वो विज्ञान का क्षेत्र हो या कला, साहित्य, सुरक्षा, खेल इत्यादि सभी क्षेत्रों में महिलाएं आगे हैं. सरकारें भी उन्हें आगे बढ़ने के लिए कई कदम उठा रही हैं. जिससे वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें और समाज में बदलाव ला सकें.

केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार महिलाओं के लिए प्राथमिकता के आधार पर कार्य कर रही है. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पंचायती राज अधिनियम-1992 महिलाओं के लिए एक वरदान के रूप में उभरा है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में इस कानून के लागू होने से महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. एक ओर जहाँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाए घूंघट में रहने के लिए विवश थीं और उन्हें पंचायतों में बोलने का बहुत कम अधिकार था. उन्हें अपने पति, पिता या अन्य रिश्तेदारों पर निर्भर रहना पड़ता था. महिलाएं अपनी समस्याओं पर खुद नहीं बोल पाती थीं लेकिन आज का समाज भी बदल रहा है और उन्हें इसके लिए अधिकार भी मिल रहा है.

पंचायती राज में महिला आरक्षण से महिलाओं की स्थिति में निरन्तर बदलाव आ रहे है. इससे पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. आज देश में ढाई लाख पंचायतों में लगभग तीस लाख प्रतिनिधि चुन कर आ रहे हैं. इनमें से चौदह लाख से भी अधिक महिलाएं है जो कुल निर्वाचित सदस्यों का लगभग पैंतालीस प्रतिशत है. पंचायती राज के माध्यम से अब लाखों महिलाएं राजनीति में हिस्सा ले रही हैं. इसके बावजूद राजनीतिक दलों और पुरुषों की सोच में महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं है.

आरक्षण के कारण महिलाएं अपने अधिकारों व अवसरों का लाभ उठा रही हैंं. भारतीय समाज में महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक हालत में सुधार व बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. पुरूषों के साथ कदम के कदम मिलाकर विकास कार्यों में सहभागिता बढ़ रही है. महिलाओं में आत्मनिर्भरत और आत्म-सम्मान का विकास हुआ है. अनूसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण के कारण राजनैतिक क्षेत्रों में कदम रखने का अवसर प्राप्त हुआ है.आरक्षण की व्यवस्था के कारण पंचायती राज में ही नहीं बल्कि देश के सभी वर्गों की महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है. पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं का जीवन बहुत प्रभावित हुआ है. पंचायती राज ने महिलाओं को समाज का एक विशेष सदस्य बना दिया है.

भारतीय समाज में महिलाओं को अभी और आगे आने की जरूरत हैं. राजनीतिक दलों को खोखले नारों से निकलकर आगे आना होगा. विभिन्न अधिकार और आरक्षण प्राप्त होने के बावजूद, आज पंचायतों में महिलाओं की जगह उनके पति, पुत्र, पिता या रिश्तेदार उनकी भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं. अधिकतर निर्वाचित महिलाओं को निर्वाचक सदस्य होने के विषय में पूर्ण जानकारी भी नहीं है. ग्राम सभा की बैठकों में वे मूकदर्शक बनी रहती हैंं, और उनके रिश्तेदार ही पंचायत के कामों का संचालन करते हैं. महिलाऐं वही करती हैं जो उनके पति और रिश्तेदार कहते हैं अगर उनसे पंचायतों के बारे में कुछ पूछा जाता है तो वह एक ही वाक्य में अपनी बात समाप्त कर देती हैं. अब भी कुछ परिवार महिलाओं को पंचायतों में काम करने की स्वीकृति नहीं देते हैं.

भारत के कई राज्यों में अब भी महिला सरपंचों के पति ही उनके काम संभालते हैं. इस कारण उन्हें 'सरपंच पति' या 'प्रधान पति' जैसे शब्दों से नवाजा जाता है. यहाँ तक कि सभाओं में या अन्य जगहों पर अपने आपको प्रधान पति कहने में अपनी साख समझते हैं. पुरूष ही चुनावों में वोट माँग रहे हैं. चुनाव में एजेंट बनने से मतगणना तक की व्यवस्था अपनी निगरानी में करवा रहे हैं. चुनाव से पहले और जीतने के बाद महिला प्रतिनिधि केवल हस्ताक्षर करती हैं. शिक्षा और जन-जागरूकता के अभाव में महिला प्रतिनिधियों को ग्राम पंचायत पर सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी नहीं हो पाती है. इस प्रकार महिला प्रतिनिधि हस्ताक्षर करने वाली कठपुतली बन कर रह जाती हैं. इसके लिए महिलाओं को भी निडर होकर आगे आना होगा.

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