समीर शाही, अयोध्या। जहां कभी प्रेम, शांति और राम के नाम की गूंज सुनाई देती थी, वहां अब चीखें, मातम और हत्या की कहानियां हैं। रामनगरी अयोध्या इन दिनों हथियारों के साए में है। बीते सिर्फ दो महीनों में 12 अलग-अलग घटनाओं में 14 लोगों की हत्या ने शहर को दहला दिया है। मंदिरों के बीच अब अपराध की परछाईं गहरी हो चुकी है।
हत्याओं की भयावह फेहरिस्त
9 मई – रुदौली में खून की पहली छींट।
11 मई – खंडासा में चली मौत की दूसरी गूंज।
14 मई – निर्मोचन घाट पर बहा लहू।
18 मई – रामपुर हलवारा में टूटी सांसें।
19 मई – तारुन में रिश्तों की लाश मिली।
24-25 मई – बारा गांव दो रातों में दो हत्याएं।
2 जून – बीकापुर में फिर हुई हत्या।
5 जून – खंडासा की जमीन लहूलुहान।
10 जून – नुवांवा बैदरा गांव की भयावह वारदात।
14 जून – रौनाही के जगनपुर में खून की कहानी।
18 जून – बाबा बाजार के कलाफरपुर में टूटा कहर।
24 जून – पूराकलंदर के पलिया गोवा में फिर चली मौत।
हत्या के पीछे क्या है वजह?
कहीं दो गज ज़मीन के लिए भाई ने भाई का गला रेता, तो कहीं रिश्तेदार ही खूनी निकले। प्रेम संबंध, घरेलू कलह, ज़मीन विवाद, और आपसी रंजिश अब अयोध्या की सड़कों पर लाश बनकर गिर रही हैं।
पुलिस एक्शन तेज, पर सवाल और भी तेज
अयोध्या पुलिस ने सभी मामलों में त्वरित कार्रवाई की, गिरफ्तारी से लेकर चार्जशीट तक की प्रक्रिया में तेजी लाई। लेकिन सवाल अब कार्रवाई नहीं, अपराध के तेजी से बढ़ते ग्राफ का है।
- क्या अयोध्या अब भी शांति, भक्ति और भाईचारे का प्रतीक है?
- या फिर वह राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता की कीमत चुका रही है?
राम की धरती पर खून की इबारत!
इस रामनगरी में अब श्रद्धा से पहले डर आता है। राम के आदर्शों वाली भूमि, क्या अब खून से रंगती जाएगी?
समाज, प्रशासन और राजनीति, तीनों को आत्मचिंतन की आवश्यकता है। क्योंकि अगर अयोध्या की आत्मा खामोश हो गई, तो पूरा देश सुन्न पड़ जाएगा। राम के नाम पर सियासत सबने की,
पर राम की धरती को बचाने कोई नहीं आया।