"मराठी नहीं सीखूंगा” बोले कारोबारी: मराठी से इनकार करने पर सज़ा? सुशील केडिया के ऑफिस में तोड़फोड़...

Update: 2025-07-05 07:26 GMT

मुंबई। मुंबई में लगातार भाषा की राजनीति देखने को मिल रही है, हाल ही में जाने-माने निवेशक सुशील केडिया के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने महाराष्ट्र की सियासत और सड़क दोनों को गरमा दिया है।

सोशल मीडिया पर सुशील केडिया ने पोस्‍ट करते हुए लिखा कि "मैं मराठी नहीं सीखूंगा" केडिया की यही टिप्पणी मनसे कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरी और शनिवार को उन्होंने उनके ऑफिस में जमकर तोड़फोड़ कर डाली।

क्या है पूरा मामला?

शुक्रवार को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर सुशील केडिया ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे को टैग करते हुए लिखा,

"मैं मुंबई में 30 साल रहने के बाद भी मराठी ठीक से नहीं जानता और आपके घोर दुर्व्यवहार के कारण मैंने यह संकल्प लिया है कि जब तक आप जैसे लोग मराठी मानुस की देखभाल करने का दिखावा करते रहेंगे तब तक मैं मराठी नहीं सीखूंगा। क्या करना है बोल?"

इस पोस्ट के बाद माहौल गर्म हो गया। MNS नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं दीं। मनसे नेता संदीप देशपांडे ने तो यहां तक कह दिया,

"अगर आप व्यवसायी हैं तो व्यवसाय करें; हमारे पिता की तरह व्यवहार न करें। अगर महाराष्ट्र में मराठी का अपमान किया, तो आपके मुंह पर तमाचा पड़ेगा।"

तोड़फोड़ और पुलिस की एंट्री

शनिवार को मनसे कार्यकर्ता अचानक केडिया के ऑफिस में घुस गए और जमकर तोड़फोड़ की। कुर्सियाँ, टेबल और डेकोरेशन तक नहीं छोड़ा। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और हालात को नियंत्रित किया। इसके बाद केडिया ने पुलिस से संपर्क कर सुरक्षा की गुहार लगाई।

माफी का वीडियो भी आया सामने

ऑफिस में हुई इस हिंसक घटना के कुछ देर बाद ही सुशील केडिया ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था, लेकिन डर और धमकियों के चलते उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।

बड़ा सवाल: भाषा पर जोर या जबरदस्ती?

यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है क्या किसी राज्य में स्थानीय भाषा का सम्मान ज़रूरी है, या उसकी जबरन थोपने की कोशिश लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है? केडिया के समर्थन में कई लोग सामने आए हैं जो मानते हैं कि "प्यार और सहमति से भाषा अपनाई जा सकती है, धमकी से नहीं।"

"मराठी नहीं सीखूंगा" का बयान एक व्यक्ति का व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन मनसे की प्रतिक्रिया ने इसे एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बना दिया है। यह मामला अब सिर्फ एक पोस्ट या भाषा तक सीमित नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय असहिष्णुता की बहस बन गया है। 

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