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बस एक ही शब्द ! - विवेक शेजवलकर

सांसद विवेक शेजवलकर ने अमृत अटल ग्रन्थ में अटल जी के व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं का उल्लेख किया है।

Update: 2019-12-24 14:15 GMT

ग्वालियर के सांसद विवेक शेजवलकर के घर अटल जी का आना जाना रहा है। विवेक जी के पिता स्व. नारायण कृष्ण शेजवलकर अटल जी के साथी थी। सांसद विवेक शेजवलकर ने अमृत अटल  ग्रन्थ में अटल जी के व्यक्तित्व के अलगअलग पहलुओं का उल्लेख किया है। उन्होंने उल्लेख किया कि एक बार अटल जी जब मेरे घर आये तो उन्हें याद आया कि अभी अभी संक्रांति पर्व आया था , चौके के दरवाजे पर खड़े होकर उन्होंने मेरी माताजी से कहा - ' वहिनी तिलगुड़ दया'. उनके इस स्नेह और ममत्व की वर्षा रही है ये हमारा सौभाग्य है।

अपने संस्मरण में विवेक शेजवलकर लिखते हैं कि विदेश मंत्री बनने के बाद अटल जी पहली बार ग्वालियर आये थे। मैं उनको लेने अपनी फिएट गाडी से सर्किट हाउस लाया। ग्वालियर में उन्होंने सरकारी गाडी मंजूर नहीं की थी। सर्किट हाउस में प्रवेश करते ही उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। अटल जी कुछ मिनिट बाद जब अपने कमरे से बाहर आये तो उन्होंने वहां कुछ पुलिस सिपाहियों को लाइन में खड़ा देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने एक सिपाही से पूछा ' आज छुट्टी है तुम्हें अपने बीबी बच्चों के साथ छुट्टी नहीं मनानी क्या ? और कहा 'जाइये आपकी छुट्टी हो गई।' और जबरन वहां से फ़ोर्स हटा दिया। पुलिस वाले सोचते रह गए कि ऐसा मंत्री पहली बार देखा जो उनके बीबी बच्चों की चिंता कर रहा है।

विवेक जी ने अपने संस्मरण में उल्लेखित किया है कि किस तरह अटल जी एक कार्यकर्ता की चिंता करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके ग्वालियर प्रवास के दौरान प्रायः उन्हें स्टेशन छोड़ने मैं ही जाता था। एक बार स्टेशन पर कार में बैठे बैठे अटल जी एक अपरिचित युवक से आरक्षण पर चर्चा कर रहे थे। युवक थोड़ा गुस्से में था परन्तु अटल जी सहज भाव में शांतिपूर्वक बातें कर रहे थे। मुझे लगा कि युवक जिस बात को जोर दे देकर कह रहा है उसी बात को अटल जी दूसरे शब्दों में कह रहे हैं। मैंने बीच में बोलते हुए उस युवक से कहा कि " आप जो कह रहे हैं वही तो अटल जी कह रहे हैं। " मेरे मुंह से शब्द निकलते ही वो युवक टपक से मुझसे बपला ' आप चुप रहिये मैं आपसे रहा। ' मेरे उस समय आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि अब तक युवक की धृष्टता पर शांत रहने वाले अटल जी एक दम नाराज होकर बोले -' आप कैसा बोलते हैं ? यह तो कोई बात नहीं हुई। हम सब आपस में चर्चा कर रहे हैं। जाइए अब हमें कोई बात नहीं करनी है। और इसके बाद बातचीत समाप्त हो गई। मेरे जैसे साधारण से कार्यकर्ता का छोटा सा पमाण भी अटल जी सहन नहीं कर पाए। यह उनके बड़े होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।

विवेक जी आगे लिखते हैं कि मैंने चुनाव लड़ा था। अटल जी का भाषण फूलबाग मैदान में हुआ था। सब विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवार एक लाइन में खड़े थे , मैं भी खड़ा था। एक एक कर स्वागत कराते जब वे मेरे पास आये , मुझे देखकर एक क्षण रुके और अपनी चिर परिचित भाव भंगिमा से बोले " कैंडिडेट"? मैंने उन्हें माला पहनाई और वे आगे बढ़ गए. मुझे पहली बार उस रूप में देखकर उनके मुख से निकले इन शब्दों से बड़ा आशीर्वाद मेरे लिए और कोई नहीं हो सकता। कवि अटल जी अपने शब्दों और वाणी से अपनेपन की बात तो करोड़ों लोगों के सामने रखते ही हैं लेकिन बिना बोले किंचित स्पर्श से , भृकुटि विभ्रम से , कभी कभार एकाध शब्द से वे अपना ढेर सारा प्यार कैसे उड़ेलते हैं ये मेरे जैसे अनेक वे लोग जो उनके निकट रहे हैं अच्छे से जानते हैं।   

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