भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी भाभा

Update: 2025-10-30 06:15 GMT


होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ। उनके पिता जहांगीर भाभा एक जाने-माने वकील थे। होमी भाभा की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैथेड्रल स्कूल से हुई और आगे की शिक्षा जॉन केनन स्कूल में हुई। भाभा शुरू से ही भौतिक विज्ञान और गणित में विशेष रुचि रखते थे।

भारतीय परमाणु कार्यक्रम को विश्व के उन्नत और सफल परमाणु कार्यक्रमों में गिना जाता है। आज भारत सैन्य और असैन्य परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्रों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। यह उस सपने का परिणाम है, जिसे भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी भाभा ने संजोया था।

डॉ. होमी भाभा परमाणु भौतिकी के ऐसे चमकते सितारे थे, जिनका नाम सुनते ही हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की और देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त किया।

मुठ्ठीभर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू करने वाले डॉ. भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और उसके विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग की संभावनाओं की परिकल्पना कर ली थी। उस समय नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। यही वजह है कि उन्हें 'भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का जनक' कहा जाता है।

होमी भाभा ने 12वीं की पढ़ाई एल्फिस्टन कॉलेज, मुंबई से पूरी की और रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। साल 1927 में उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड का रुख किया और केंब्रिज विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।

साल 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भाभा ने जर्मनी में कॉस्मिक किरणों का अध्ययन किया और उनके ऊपर कई प्रयोग किए। वर्ष 1933 में डॉक्टरेट की उपाधि मिलने से पहले उन्होंने अपना शोध पत्र "The Absorption of Cosmic Radiation" शीर्षक से जमा किया। इस शोध में उन्होंने कॉस्मिक किरणों की अवशोषक और इलेक्ट्रॉन उत्पन्न करने की क्षमताओं को प्रदर्शित किया। इस शोध के लिए उन्हें 1934 में 'आइजैक न्यूटन स्टूडेंटशिप' भी मिली।

डॉ. भाभा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1939 में भारत लौट आए। भारत आने के बाद वे बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से जुड़े और 1940 में रीडर के पद पर नियुक्त हुए।

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