उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान के बाद हलाल सर्टिफिकेट के मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस फिर से शुरू हो गई है। योगी सरकार ने 18 नवंबर 2023 को उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन पर रोक लगा दी थी। हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली दो संस्थाओं, जमियत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट और हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई थी। इन दोनों संस्थाओं को किसी सरकारी एजेंसी ने सर्टिफिकेट जारी करने के लिए अधिकृत नहीं किया था। जबकि हलाल का अर्थ कानूनन “जायज” होता है। कानून कहां लागू है और किसके लिए है, इसका कोई स्पष्ट विवरण नहीं है।
इन संस्थाओं ने उत्पादकों से फीस वसूल कर उन्हें हलाल सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया था। मुसलमान जब किसी पशु का वध करते हैं, तो वे अल्लाह के नाम पर एक विशेष प्रकार की इबादत करते हैं। लेकिन इन संस्थाओं ने पैसे लेकर सर्टिफिकेट जारी किया और इसे व्यवसायिक धंधे में बदल दिया। भारत में हलाल सर्टिफिकेट देने वाली इन स्वयंभू संस्थाओं ने सीमेंट, कपड़े, दवा, तेल, साबुन जैसे उत्पादों को भी हलाल सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया।
कांवड़ यात्रा के समय, जब योगी सरकार ने दुकानदारों और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए नाम पट्टिका लगाना जरूरी किया था, तब कुछ सेक्यूलर संगठनों और राजनीतिक दलों ने इसे मुसलमानों की आर्थिक बंदी बताया। लेकिन हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों के मामले में यही संस्थाएं इसे हिंदुओं की आर्थिक नाकेबंदी नहीं मानती। यह कदम मुसलमानों को यह संदेश देता है कि वे केवल हलाल प्रमाणित उत्पाद ही खरीदें।
हलाल सर्टिफिकेट देने वाली दोनों संस्थाओं का कारोबार हजारों करोड़ रुपये का हो गया है। ये संस्थाएं प्रति उत्पाद सालाना 21,000 रुपये फीस ले रही हैं, जबकि उन्हें किसी सरकारी एजेंसी ने अधिकृत नहीं किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस राशि को 25,000 करोड़ रुपये सालाना बताया है और कहा कि इसका इस्तेमाल धर्मांतरण, “लव जिहाद” और आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली दोनों संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट गईं। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि “इंडिया कनफर्मिटी असेसमेंट स्कीम (iCASS)” के तहत निर्यात किए जाने वाले मांस के सर्टिफिकेशन का ढांचा तैयार किया गया है, जिसे क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया नियंत्रित कर रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया है कि हलाल सर्टिफिकेट वाली वस्तुओं की बिक्री प्रतिबंधित रहेगी, लेकिन निर्यात के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों के हलाल सर्टिफिकेशन को इससे अलग रखा गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई हलाल सर्टिफिकेशन संस्थाएँ हैं, जो होटलों और आतिथ्य उद्योग को भी हलाल सर्टिफिकेट देती हैं। ये सर्टिफिकेट मुसलमान और गैर-मुस्लिम देशों के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
हलाल विवाद भारत तक सीमित नहीं है। कई देशों में हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं, और कई देशों में इस पर प्रतिबंध लगाया गया है। कनाडा में हिन्दू और सिख संगठनों ने उन रेस्तरां को नोटिस जारी किया है जो केवल हलाल मांस परोसते हैं। भारत में भी कई ऑनलाइन कंपनियाँ हलाल सर्टिफाइड मांस सप्लाई कर रही हैं।
इतिहास में भी हलाल का विरोध होता रहा है। मुगलों के समय से ही सिखों ने हलाल का विरोध किया। ब्रिटिश काल में भी सिखों ने हलाल के खिलाफ आवाज उठाई। 1938 में प्रताप सिंह कैरों ने पंजाब विधानसभा में केवल हलाल मांस की बिक्री पर रोक लगाने के लिए “झटका मीट बिल” पेश किया था।
राष्ट्रीय कानून भी पशु बलि को रोकते हैं। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 पशुओं के प्रति क्रूरता को प्रतिबंधित करते हैं। अदालतों ने भी अपने फैसलों में पशु बलि को अनुचित ठहराया है। हलाल न सिर्फ पशुओं के प्रति क्रूरता है, बल्कि इसका अर्थ ही अल्लाह के नाम पर बलि करना है।