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अपने ही व्यूह में उलझते दिग्विजय सिंह

Update: 2018-07-24 10:12 GMT

कांग्रेस के बड़े मंच से गायब हो चुके मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सांप निकल जाने के बाद अब लाठी पीट रहे हैं। कह रहे हैं अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पार्टी को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर हमला करना चाहिए था। उनका मानना है कि रक्षा मंत्री को राफेल सौदेबाजी पर देश को गुमराह करने की बजाए सीधे तौर पर बताना चाहिए कि आखिर मसला क्या है? उनका गोलमाल रवैया ही इस्तीफे का बड़ा कारण बनता है। एक वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में सिंह ने यह ताजा बयान दिया है। जाहिर है, रविवार को दिल्ली में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक थी और दिग्विजय सिंह दिल्ली से दूर भोपाल में अपनी मांद में बैठे थे। न्यौता दिग्विजय सिंह और जनार्दन द्विवेदी को समिति की बैठक में आने का था लेकिन दोनों ही बैठक से नदारद थे। पता नहीं, पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को उनका संदेश मिला या नहीं, पर कूटनीतिक तौर पर उनकी सलाह बाजिव तो लगती है कि राहुल को मूल जड़ गिराने के लिए पहले टहनियां नीचे गिरानी चाहिए थीं लेकिन राहुल उनकी सोच पर अब इत्तिफाक नहीं रखते। वे लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं। अगर वाकई रक्षा मंत्री के इस्तीफे की मांग कांग्रेस के लिए ब्रह्मास्त्र बन सकता था? तब फिर क्यों उन्होंने आलाकमान को भरोसे में नहीं लिया? क्या उनका दिल्ली से दानापानी उठ गया है?

दिल्ली की राजनीति से किनारे लग चुके दिग्विजय सिंह अब अपना वजूद प्रदेश में तलाश रहे हैं। इसके लिए उन्होंने हाल ही में नर्मदा की लंबी यात्रा की है। इस यात्रा के बहाने उन्होंने खोऐ हुए जनाधार को तलाशा है और जनता के मर्म को जाना है। कांग्रेस के पतन में दिग्विजय सिंह की वही भूमिका है जिस तरह महाभारत काल के कौरव वंश के पतन में शकुनि की भूमिका थी। अपने स्वार्थसिद्धि के लिए शकुनि जीवन भर बहन-बहनोई के इर्दगिर्द घूमकर परिवार की पूजा करके परिवार के ही पतन का षडय़ंत्र रचता रहा। दिग्विजय सिंह गांधी परिवार के वफादार बनकर कांग्रेस को पैदें में ले जाते रहे। एक दशक मध्य प्रदेश में फिर एक दशक दिल्ली में उनका इतिहास काले अक्षरों में लिखने के काबिल है। यही कारण है कि पर कतरने के बावजूद वे परिवार भक्ति का राग नहीं छोड़ पा रहे। क्या कसीदे पढ़े हैं उन्होंने राहुल गांधी के बारे में। पंचतंत्र के पात्र कौवा और लोमड़ी भी मात खा जाएं। लोमड़ी ने कौवे के कसीदे पढ़कर उसे कैसे मूर्ख बनाया सभी जानते हैं। टीम राहुल से बाहर होने के बाद आलाकमान के निर्णय को दिग्गी राजा शत-प्रतिशत ठीक बता रहे हैं तो उनके हम उम्र नेता फिर क्यों टीम का हिस्सा बन गए? क्या उन्हें इसका अहसास 2011 के अधिवेशन में ही हो गया था कि वे हाशिए पर लगने वाले हैं? अब वे गुलामनबी आजाद, अहमद पटेल जैसे नेताओं को रिटायर करावाने की सलाह दे रहे हैं। उनकी इस अंतिम सलाह पर अगर राहुल गांधी ध्यान दें तो वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस राजनीतिक निर्वात में गोते खाती नजर आएगी। बहरहाल, कार्यसमिति में अंदर-बाहर होने वाले नेताओं की बात भूलकर दिग्विजय सिंह अब भाजपा से लड़ाई और उस पर जीत का रास्ता तलाश रहे हैं। पता नहीं दिग्विजय सिंह अपने राजनीतिक यात्रा के इस पड़ाव पर राहुल गांधी से क्या हासिल कर लेना चाहते हैं? उनका पड़ाव टर्निंग प्वाइंट बनेगा या कदम अस्ताचल की ओर बढ़ते चले जाएंगे? यह भविष्य के गर्त में हैं फिलहाल अभी तो वे सांप की लकीर पर लाठी पीटते नजर आ रहे हैं।

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