राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के दूसरे दिन, शुक्रवार को विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई। बैठक में श्री गुरु तेगबहादुर जी के 350वें बलिदान वर्ष और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में वक्तव्य जारी किए गए।
भारत में अनेक विभूतियों ने जन्म लिया
संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि भारत के गौरवशाली इतिहास में अनेक विभूतियों ने जन्म लिया है, जिनके आदर्श आज भी समाज को दिशा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन महापुरुषों ने धर्म, आस्था और स्वाभिमान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। बैठक 1 नवंबर, शनिवार तक चलेगी।
औरंगज़ेब की सत्ता को चुनौती दी
होसबाले ने कहा कि गुरु तेगबहादुर जी के आत्मोत्सर्ग का महत्व जन-जन तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने बताया कि सन् 1675 में जब मुगल शासक औरंगज़ेब के अत्याचार चरम पर थे और बलपूर्वक मतांतरण किया जा रहा था, तब कश्मीर घाटी से पंडित कृपाराम दत्त के नेतृत्व में लोग गुरु तेगबहादुर जी के पास पहुँचे। गुरुजी ने समाज की चेतना जगाने हेतु अपने देहोत्सर्ग का संकल्प लिया और औरंगज़ेब की सत्ता को चुनौती दी। दिल्ली के चांदनी चौक में 24 नवंबर 1675 को उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया। उनके शहादत ने समाज में त्या गुरु तेगबहादुर जी के जीवन से प्रेरणा
समाज गुरु तेगबहादुर के जीवन से प्रेरणा ले
सरकार्यवाह ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों और समाज से आह्वान करता है कि वे गुरु तेगबहादुर जी के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन का निर्माण करें तथा उनके बलिदान वर्ष से जुड़े आयोजनों में श्रद्धापूर्वक भाग लें।
भगवान बिरसा मुंडा के जीवन पर प्रकाश
होसबाले ने भगवान बिरसा मुंडा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय नायक थे। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातु गाँव में हुआ था। अंग्रेज़ी शासन और मिशनरियों द्वारा जनजातियों पर हो रहे अत्याचारों से त्रस्त होकर उन्होंने कम उम्र में ही समाज जागरण का बीड़ा उठाया। 15 वर्ष की आयु में उन्होंने ईसाई मिशनरियों के मतांतरण प्रयासों का विरोध करते हुए जनजातीय अस्मिता की रक्षा का संकल्प लिया।
ब्रिटिश शासन द्वारा वन अधिग्रहण और भूमि छीनने की नीतियों के विरुद्ध उन्होंने व्यापक जनआंदोलन प्रारंभ किया। उनका नारा — “अबुआ दिशुम, अबुआ राज” (हमारा देश, हमारा राज) — जनजातीय युवाओं के लिए प्रेरणामंत्र बन गया। केवल 25 वर्ष की आयु में उन्होंने कारागार में संदेहास्पद परिस्थितियों में अपने प्राणों का बलिदान दिया।
होसबाले ने कहा कि वर्तमान में कुछ विभाजनकारी विचारधाराएँ जनजाति समुदाय को लेकर भ्रम फैलाने का प्रयास कर रही हैं। ऐसे समय में भगवान बिरसा मुंडा की गाथाएँ समाज में आत्मबोध, आत्मविश्वास और एकात्मता को सुदृढ़ करने में सहायक होंगी। उनके जीवन संदेश आज भी राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी हैं।