SwadeshSwadesh

किडनी रोग : रोकथाम से पहचान तक

विश्व किडनी दिवसः 2020: 12 मार्च पर विशेष

Update: 2020-03-12 07:15 GMT

बहुकोशीय विकसित जीवों में शारीरिक रचना एवं कार्य प्रक्रिया की दृष्टि से किडनी तंत्र जैविक शरीर का वह महत्वपूर्ण ''फिल्टर'' है जिसके माध्यम से शरीर का आंतरिक जैव रासायनिक (बायो-केमीकल) वातावरण सामान्य रूप से स्थिर रहता है। ज्ञातव्य है कि शरीर में जब तक ''किडनी फेल होने के लक्षण प्रकट होते हैं तब तक दोनों किडनी की कार्यक्षमता लगभग 50 प्रतिशत तक कम हो चुकी होती है। अतः शीघ्र पहचान - उचित समय पर उचित रोकथाम से इस जीवन घातक जटिल समस्या का समाधान सम्भव है।

इंटरनेशनल सोसाइटी आॅफ नेफ्रोलाॅजी तथा इंटरनेशनल फेडरेशन आॅफ किडनी फाउंडेशन के संयुक्त निर्देशन में विश्व विश्व वृक्क दिवस प्रतिवर्ष मार्च माह के दूसरे गुरूवार को आयोजित किया जाता है। इस वर्ष यह दिवस 12 मार्च 2020 को पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। इसका प्रथम आयोजन 2006 में 66 देशों में हुआ थौ अब विश्व के लगभग 200 देशों में, संबंधित नेफ्रोलाॅजी सोसाइटी तथा स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से इस दिवस का आयोजन किया जाता है।

आयोजन के उद्देश्य

* मानव शरीर में स्वस्थ गुर्दों (किडनी) की भूमिका तथा इससे संबंधित रोगों की रोकथाम के प्रति जन सामान्य में जागरूकता का प्रचार प्रसार करना।

* शासकीय एवं निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य नीतियों के माध्यम से किडनी रोग उपचार की सुविधाओं का विस्तार कराना।

* किडनी रोगों के निदान एवं उपचार की आधुनिक नवीनतम तकनीक (मार्डन मेथडोलोजी) से चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को अवगत कराना एवं प्रशिक्षित करना।

ज्भ्म्डम्. इस वर्ष 12 मार्च हेतु घोषित इस आयोजन का मुख्य विषय है

''किडनी रोग: रोकथाम से पहचान तक ज्ञपकदमल क्पेमंेम रू च्तमअमदजपवद जव क्मजमबजपवद

इस आयोजन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार है -

1. वर्तमान में विश्व के लगभग पिच्यासी करोड़ 850 मिलियन व्यक्ति विभिन्न प्रकार के किडनी रोगों से प्रभावित हैं।

2. दस में से एक वयस्क दीर्घकालीन ''क्रोनिक किडनी'' रोग से ग्रस्त हैं।

3. विभिन्न चिकित्सीय सर्वे अध्ययनों के अनुसार वर्ष 2015-16 में जनसंख्या के आधार पर किडनी रोगों का प्रतिशत विश्व में 10ः विकसित देशों में 19.50ः तथा एशिया में 17ः था।

4. रोग वृद्धि की वर्तमान दर के आधार पर वर्ष 2040 तक यह रोग विश्व का पांचवा मुख्य जीवन घातक रोग हो सकता है।

5. विश्व में लगभग 197 मिलियन (19.50 करोड़) महिलाएं क्रोनिक दीर्घकालिक किडनी रोगों से ग्रस्त हैं। महिला मृत्यु के दस प्रमुख कारणों में इस रोग का स्थान आठवां है। इस गम्भीर जटिल रोग के कारण विश्व में प्रतिवर्ष लगभग छः लाख महिलाओं की मृत्यु होती है। एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के अविकसित एवं विकासशील देशों में यह संख्या अत्यधिक होती है।

6. लेन्सेट ग्लोबल हेल्थ के जनवरी 2017 के अंक में प्रकाशित आलेख में उल्लेखित ''ग्लोबल बरडन आॅफ डिसीज स्टडी 2015'' के अनुसार विश्व में मृत्यु के प्रमुख कारणों में गुर्दा कार्य हीनता (किडनी फेल्युअयर) का सत्रहवां स्थान है, परन्तु भारत में इसकी मृत्यु कारक रेंक 8वीं हैं।

7. जनसंख्या की दृष्टि से भारत के वर्तमान कालखण्ड में लगभग 12 प्रतिशत पुरूष एवं 14 प्रतिशत महिलाऐं किसी ने किसी प्रकार के किडनी रोग से पीड़ित हैं जिनमें 6ः प्रतिशत स्टेज की जटिल अवस्था में है तथा प्रति दस लाख जनसंख्या पर लगभग 230 किडनी रोगी असाध्य अन्तिम अवस्था में है।

8. क्रोनिक किडनी फेल्युअर एक ''साइलेंट किलर'' के रूप में जाना जाता है। क्योंकि शरीर में जब तक इसके लक्षण प्रकट होते हैं तब तक दोनों किडनी की लगभग 50 प्रतिशत कार्य क्षमता नष्ट हो चुकी होती है।

9. विश्व में 2010 तक डायलिसिस उपचारित रोगियों की संख्या लगभग 2.6 मिलियन थी जो 2020 तक लगभग दुगनी हो जायेगी।

10. इन्डियन नेफ्रोलाॅजी सोसायटी के 2015-2016 के अध्ययन के अनुसार भारत में-

 नेफ्रोलाॅजिस्ट की संख्या लगभग 1400 है।

 नेफ्रोलाॅजी सुपर स्पेशलिटी में लगभग 120 सीट प्रतिवर्ष उपलब्ध हैं।

 प्रति 10000 (दस हजार) किडनी रोगियों पर केवल एक नेफ्रोलाॅजिस्ट (किडनी रोग विशेषज्ञ) उपलब्ध है।

 किडनी रोग से ग्रस्त लगभग 220000-275000 रोगियों को प्रतिवर्ष डायलिसिस अथवा गुर्दा प्रत्यारोपण हेतु रीनल रिप्लेसमेन्ट थिरेपी की आवश्यकता है।

 भारत में वर्तमान में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के अन्तर्गत लगभग 9000 रक्त शोधन केन्द्र (डायलिसिस सेन्टर) कार्यरत हैं। राष्ट्रीय डायलिसिस उपचार नीति के अन्तर्गत देश के लगभग सभी जिला मुख्यालयों में केनद्रीय अथवा राज्य शासन द्वारा ''डायलिसिस केन्द्र संचालित किये जा रहे हैं'' इसके अतिरिक्त सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी न्यूनतम व्यय पर यह जीवनदायी उपचार सुविधा अन्य नगरों/उपनगरों में प्रदान की जा रही है।

वृक्क कार्यहीनता (किडनी फेल्युअर) के मुख्य कारण

* उच्च रक्तचाप।

* मधुमेह

* किडनी स्टोन

* गर्भावास्थाजन्य उच्च रक्तचाप

* दर्द निवारक औषधियां (पेन किलर्स)

* रसायनिक विष (केमीकल टोक्सिनस- पेस्टीसाईट, इनसेक्टीसाईट)

* रोग प्रतिरोध क्षमता की कमी (प्उउनदपजल क्पेवतकमत)

* जीवाणु जन्य: यूनीनरी इन्फेक्शन, नेफ्राइटिस

* संक्रामक रोग (डेगू, स्वाईन फ्लू, मलेरिया)

* डी.वी.डी. (डायरिया, वोमिटिंग- डिहाईड्रेशन)

* जटिल हिपेटाईटिस: हिपेटोरीनल सिन्ड्रोम

* दुर्घटना जन्य: क्रश इंज्युरी, बुलेट इंज्युरी

* किडनी केंसर

* जन्मजात विकार: पोलीसिस्टिक किडनी, हार्सशू किडनी,

समस्या निराकरण हेतु विशेष उपाय :-

पारिवारिक, सामाजिक एवं शासकीय स्तर पर निम्नलिखित उपायों द्वारा किडनी रोगों की जटिलताओं को रोका जा सकता है:-

* स्वयंसेवी संघठनों के माध्यम से विशेष कर महिलाओं वृद्धजन को व्यक्तिगत स्वास्थ्य विशेषकर ''यूरिनरी हाईजीन'' के प्रति सचेत करना।

* क्रोनिक किडनी रोग के प्रति जन सामान्य में जागरूकता उत्पन्न करना।

* रोग की प्रारंभिक अवस्था में शीघ्र निदान एवं उचित समय पर उपचार की सुविधा उपलब्ध कराना।

* सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर संवर्ग महिलाओं हेतु विशेष शिक्षा एवं निदान तथा उपचार की व्यवस्था करना।

* 'प्राइमरी प्रिवेंशन 'द्वारा परिवर्तनीय ''रिस्क फेक्टर्स' को रोक कर रोग की जटिलता को रोकना या कम करना।

उपचार के विकल्प

''रोकथाम ही उत्तम उपचार है''।

* किडनी रोग की जटिलताओं के अनुसार उपचार हेतु निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं -

 औषधीय (मेडिकल कन्जरवेटिव)

 रक्त शोधन (डायलिसिस)

 सामान्य शल्य चिकित्सा (सर्जरी)

 रोबोटिक सर्जरी

 एण्डोस्कोपिक सर्जरी

 वृक्क प्रत्यारोपण (रीनल ट्रांसप्लांट)

स्वस्थ किडनी हेतु आठ स्वर्णिम सूत्र

* विश्व किडनी दिवस.2017.ओआरजी के अनुसार किडनी को स्वस्थ्य रखने हेतु निम्नलिखित आठ स्वर्णिम सूत्रों (गोल्डन रूल्स) का पालन आवश्यक है:-

 शारीरिक सक्रियता एवं नियमित व्यायाम

 रक्तचाप नियंत्रण।

 मधुमेह नियंत्रण

 शारीरिक भार नियंत्रण एवं संतुलित स्वस्थ आहार।

 पर्याप्त मात्रा में पानी पियें।

 अनावश्यक (ओवर द काउंटर), विशेषकर दर्द निवारक औषधियों का उपयोग न करें।

 धूम्रपान एवं तम्बाकु सेवन न करें।

 यदि परिवार के किसी सदस्य को उच्च रक्त चाप, मधुमेह अथवा किडनी रोग है तो अन्य युवा सदस्यों को समय समय पर किडनी फंक्शन टेस्ट कराने चाहिये। मूत्र विसर्जन संबंधी कोई समस्या एवं शरीरी में सूजन के प्रारम्भिक लक्षण प्रकट होते ही तुरन्त चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।

संकलन एवं प्रस्तुति

डाॅ. सुखदेव माखीजा

पूर्व वरिष्ठ डायलिसिस चिकित्सा अधिकारी

फेलो सदस्य इंडियन एसोसियेशन आॅफ क्लीनिकल मेडिसिन

गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय,

ग्वालियर (म.प्र.)  

Tags:    

Similar News