SwadeshSwadesh

यात्रा संस्मरण - हमारी महाराष्ट्र की देव दर्शन यात्रा

लेखिका - लक्ष्मी खंडेलवाल, समाजसेवी

Update: 2022-11-19 09:36 GMT

यात्रा मानव जीवन का एक रोचक और कौतूहल से भरा महत्वपूर्ण हिस्सा है। यात्रा हमें जीवंत, तनाव से दूर स्थिर एवं सामाजिक आश्वस्तता प्रदान करता है। रिश्तों की सूची बढ़ता एवं बड़ी करता है। यात्रा में कई बार वो सब मिल जाता है , जिसके बारे में आपने सोचा नहीं होता है। जिसके लिए आपने कुछ प्लान नहीं किया होता है । जो आपकी उम्मीदों से परे होता है । आपका संपर्क  कॉलोनी या नगर से निकल सुदूर शहर अथवा देश भर में हो जाता है। भक्त बिना भगवान नहीं, भगवान बिना भक्त नहीं और इन दोनों के बिना तीर्थ नहीं। दिनांक 4-11-2022, शुक्रवार को जयपुर से भक्तों की एक बड़ी कुटुम्ब टोली महाराष्ट्र स्थित ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए निकलती है।

परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥

वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।

हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥

युवा पुरूष महिलाओं के साथ बच्चों की किलकारियों से मनमोहित हमारी टोली रेल का सफर तय करते हुए  5-11-2022, शनिवार को सुबह हम बोरिवली पहुँच गए। बोरिवली से हमने बस द्वारा लोधा धाम ,जैन मंदिर के लिए प्रस्थान किया। वहीं सामुहिक स्नान और अल्पाहार के पश्चात जैन मंदिर के दर्शन किए। तत्पश्चात हम निकलें नासिक पंचवटी के लिए , रास्ते में हम ने माता गोदावरी के पवित्र जल में स्नान, पूर्वजों की सदकीर्ति को स्मर्णजली देते हुए मध्याहन के भगवान भास्कर को अर्ग समर्पित किये।

गोदावरी नदी जो भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिम घाट के त्रयंबक पहाडी से हुई । गोदावरी नदी मे स्नान के पश्चात हमने कपालेश्वर मंदिर के दर्शन किए। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें शिवजी के प्रिय वाहन नन्दी उनके साथ नही है। कपालेश्वर मंदिर के पश्चात हमने कालेराम मंदिर के दर्शन किए। ये मंदिर बहुत बड़ा है। इस मंदिर की विशेषता रही कि इसमें भगवान राम की मूर्ति काले पाषाण से बनी हुई है। कालाराम मंदिर के पश्चात हमने दर्शन किए गोराराम मंदिर के। गोराराम मंदिर कालाराम मंदिर की अपेक्षा छोटा है। गोराराम मंदिर के बाद हमने सीतागुफा के दर्शन किए। गुफा के अंदर प्रवेश करते ही एक अलग तरह की ऊर्जा महसूस हो रही थी।बहुत ही आनंद आ रहा था। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां सीता मैया ने वनवास के समय तपस्या और आराधना की थी। गुफा के बाहर 5 बहुत पुराने बरगद के पेड़ों का उपवन है , जिसके कारण वह क्षेत्र पंचवटी कहलाता है।

 सीता गुफा के पश्चात हमने लक्ष्मण मंदिर के दर्शन किए। यह एकमात्र मंदिर है लक्ष्मण जी का । यह वह स्थान है जहां लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी । लक्ष्मण मंदिर के पश्चात हमने तपोवन के दर्शन किए। यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने 14 वर्षों के वनवास का अधिकांश समय यहीं बिताया था। इन सभी के दर्शनों  पश्चात मन जिस भगवान महादेव के दर्शनाभिलाषी था उनके दर्शन हेतु निकल पड़े। रात्रि में हमने त्रयम्बकेश्वर से पहले मार्ग में स्थित मारवाड़ की एक दिव्य चेतना सम्पन्न साधिका जी द्वारा संचालित आश्रम में विश्राम किया। वहीं रात्रि का भोजन भी था। रात्रि मे सभी एक साथ बैठे। सभी ने दिन भर के अपने अनुभव सुनाए और अगले दिन के लिए सुझाव दिए। मंदिर की अभाव और व्यवस्था ऐसी थी जैसे घर मे ही ठहरे हुए हैं।

अगले दिन 6-11-2022, रविवार को सभी देवाधिदेव महादेव के दर्शन हेतु रात्रि में 2 बजे से ही जागरण शुरू हो गया। इतनी जल्दी उठने का अनुभव  बहुतों के लिए पहली बार था। सभी ने त्रयम्बकेश्वर कुशव्रत घाट पर स्नान किया और भगवान त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन किए। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता रही कि मंदिर के भीतर गड्ढे मे छोटे- छोटे तीन लिंग है जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक है । इसीलिए यह स्थल त्रयम्बकेश्वर के नाम से जाना जाता है।

 हम सभी को दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो चुका था। दर्शन के बाद अल्पाहार हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। हमने अल्पाहार किया और निकले आगे की यात्रा के लिए। बस मे बहुत आनंद बरस रहा था। छोटे,बड़े-बुड्ढे सभी एक समान नजर आ रहे थे। बच्चों की अटखेलियां सभी को एक कड़ी से जोड़कर रखा था। सभी के चेहरे प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे। 274 किलोमीटर की यात्रा तय करके हम पहुंच गए एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं को देखने, जिनको बचपन से सुनते आये थे।

 एलोरा में 34 गुफाएं है। इनमे 12 बौद्ध गुफा, 17 हिन्दु गुफा, और 5 जैन गुफा है। समयाभाव के कारण हमने 2 ही गुफा देखने को मिली। हमने गुफा नंबर 16 देखी। इसकी विशेषता है कि यह कैलाश मंदिर, शिव को समर्पित एक रथ के आकार के स्मारक के लिए जानी जाती है। हमने देखा कि इस गुफा में पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियां स्थापित थी।

                   एलोरा की गुफाएं देखने के बाद हमारा समूह निकल पड़ा अपने अगले लक्ष्य की ओर, और लक्ष्य था द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक और दर्शन का। रातमें घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसे घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। इससे सम्बन्धित एक कथा आती है। एक समय दक्षिण देश मे देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी का नाम सुदेहा था। उनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन सुदेहा ने अपने पति से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया और अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति से करवा दिया। घुश्मा भगवान शिव की उपासना करती थी। वह प्रतिदिन 101 शिवलिंग  बनाकर उनकी विधिवत पूजा करती थी। कुछ समय बाद घुश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया। सुदेहा के मन मे धीरे - धीरे ईर्ष्या ने घर कर लिया। उसने घुश्मा के पुत्र को मार डाला और उसी सरोवर मे डाल दिया जिसमे घुश्मा

पार्थिव शिवलिंग छोडती थी। प्रातःकाल जब घुश्मा शिवलिंग छोड़कर लौट रही थी तो उसका पुत्र जीवित होकर उसके समक्ष आ गया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब घुश्मा ने भगवान शिव से वही स्थित होने की प्रार्थना की । तभी  से उस जगह का नाम घुश्मेश्वर हो गया। वहां से हमने  रात्रि विश्राम हेतु धर्मशाला की ओर प्रस्थान किया।

अगले दिन 7-11-2022 , सोमवार को प्रातः जागरण के पश्चात हमने प्रतिदिन के कार्यों से निवृत्त होकर बस में आ बैठे। बस में आनंद से गाते बजाते हम पहुंच गए शनि-शिंगणापुर। शनि शिंगणापुर शनि देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि शनि शिंगणापुर गाँव में कभी चोरी नहीं होती और किसी भी मकान में खिड़की, दरवाजा और ताले नहीं लगते।गाँव वालों की मान्यता है कि यदि कोई वहां चोरी करता है तो वह अंधा हो जाता है।

 शनि शिंगणापुर के दर्शन के पश्चात हमने अपने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में हमने गन्ने  खेतों के समीप जूस पिया। जो अत्यन्त स्वादिष्ट था। यह जूस आधुनिक मशीन द्वारा नहीं, अपितु ग्रामीण तरीकों से बैलों के माध्यम से निकाला जा रहा था। वहीं हमने झूले का भी आनंद लिया। इन सबके पश्चात पहाड़ियों, पथरीली तथा ग्रामीण मार्गों से होते हुए हम पहुँच गए अपने तीसरे ज्योतिर्लिंग भगवान भीमाशंकर के दरबार में।

 भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिव महापुराण में आता है।कुम्भकर्ण के पुत्र का नाम भीमा था ।भीमा का जन्म उसके पिता की मृत्यु के पश्चात हुआ था। जब भीमा थोडा बड़ा हुआ तो उसे पता चला कि उसके पिता की मृत्यु भगवान राम के हाथों से हुई है, वह उनकी हत्या के लिए आतुर हो गया। इसके लिए उसने कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया। वरदान पाकर वह सभी देवी-देवताओं को डराने लगा। सभी देवगण भगवान शिव की शरण में गए। शिवजी ने भीमा से युद्ध कर उसे हरा दिया। सभी देवताओं के आग्रह पर शिव जी वहां विराजित हो गए और उस पवित्र स्थान का नाम भीमाशंकर पड़ गया।

भीमाशंकर के दर्शन के पश्चात हमने रात्रि में विश्राम पुणे में किया। अपने यात्रा के आखिरी दिन 8-11-2022,मंगलवार को प्रातः परिचयात्मक सत्र हुआ। सभी ने अपना अपना परिचय दिया।अल्पाहार करके हम सभी बस द्वारा लोनावला के लिए रवाना हो गए। वहां हमने टाइगर प्वाइंट देखा साथ मे बहुत सारी छायाचित्र भी लिए। इसके बाद हम गेटवे ऑफ इण्डिया पहुंचे। जो मुम्बई के दक्षिण में समुद्र तट पर स्थित है। हमने वहां स्टीमर का आनंद लिया। मुम्बई के प्रसिद्ध बड़ा पाव तो बनता ही था। फिर हम सभी पहुँच गए मुंबई रेलवे स्टेशन। रेल में हँसते, गाते, नाचते हमने यह सफर पूरा किया, दिनांक 9-11-2022 , बुधवार को लगभग 11:30 बजे हम जयपुर पहुंच गए। यह यात्रा अनेकों संस्मरणों, रोचक कथाओं और आनंदमयी स्वजनों के वार्तालापों से अविस्मरणीय बन गई थी।


Tags:    

Similar News