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संविधान को समझिए

रविन्द्र दीक्षित

Update: 2020-01-26 10:26 GMT

भारत का नागरिक होना गर्व की बात है गर्व इसलिए महसूस होता है क्योंकि हम इसे केवल भौगोलिक रूप से खींची हुई सीमाओं से रेखांकित देश ही नहीं मानते हैं वरन इसे अपनी मातृभूमि का दर्जा देते हंै। देश के वन उपवन नदियां झरने सागर और इस देश की विभिन्न संस्कृति बोलियां भाषाएं आचार - विचार इस देश को समूचे विश्व में एक विशिष्ट स्थान दिलाता है संपूर्ण देश विविधता में एकता का संदेश देता हुआ अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है इसलिए इस देश का नागरिक होना एक गर्व की अनुभूति कराता है। विगत कुछ माह से इस देश को प्रगति पथ से भटकाने का प्रयास इसी देश में रहने वाले कुछ लोग षड्यंत्र पूर्वक तरह - तरह का भ्रामक प्रचार कर देश की नौजवान पीढ़ी को बरगलाने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि वे लोग जानते हैं कि विश्व में सबसे ज्यादा तरुण शक्ति इसी देश में है और ऐसे भटकाने वाले लोग शातिर दिमाग का उपयोग करते हुए हमारे देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग कतई सफल नहीं हो पाएंगे क्योंकि हमारा देश लोकतंत्रात्मक संवैधानिक मूल्यों द्वारा स्थापित परंपरा को निर्वहन करते हुए प्रगति पथ पर निरंतर बढ़ रहा है।

हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ और संपूर्ण देश में 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। संविधान हमारे देश के विधि क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र लिखित ग्रंथ माना जाता है। जिसमें निहित उद्देशिका को संविधान की आत्मा बोला जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। संविधान की उद्देशिका जिसे सरल भाषा में प्रस्तावना भी कहा जाता है की शुरुआत हम भारत के लोग इन शब्दों से होती है क्योंकि संविधान निर्माण समिति (जिसके अध्यक्ष बाबा भीमराव अंबेडकर थे) ने इस देश के नागरिकों में ही भारत के लोकतंत्र की शक्ति को समाहित किया है। संविधान का निर्माण इस देश के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को संरक्षित करने के उद्देश्य से किया गया है। संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों का समावेश किया गया है। जिस की गारंटी इस देश के लोकतंत्र के द्वारा यहां निवास करने वाले लोगों को दी जाती है। लोगों के मौलिक अधिकारों की चिंता करना एवं उसको ध्यान में रखकर ही भारतीय संसद किसी भी कानून को पारित कर सकती है। भारतीय संसद के द्वारा बनाए गए कानून का पालन करना इस देश के नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है ताकि दूसरे के मौलिक अधिकारों का संरक्षण किया जा सके।

पर दुर्भाग्य यह है कि देश में मौलिक अधिकारों की चिंता तो होती है पर मौलिक कर्तव्यों को लेकर कोई भी बात करने के लिए गंभीर नहीं है ।आज तक किसी भी बुद्धिजीवी ने मौलिक कर्तव्य का पालन कराने के लिए लोगों को बाध्य करने के लिए कोई भी जन आंदोलन नहीं किया केवल अधिकारों के नाम पर भ्रमित कर देश में तोडफ़ोड़ आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाया है। हाल की घटनाएं जो नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन जिसमें उत्तर प्रदेश के लखनऊ कानपुर बरेली अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय एवं जामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और छात्राओं द्वारा की गई आगजनी तोडफ़ोड़ हिंसा एवं सार्वजनिक संपत्ति के हुए नुकसान इसका ताजा उदाहरण हंै।

इस देश के लोगों को यह जानना जरूरी है कि इस अराजकता के माहौल को पैदा करने वाले लोग वही हैं, जो कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त होने, राम मंदिर बनने का मार्ग सुगम होने एवं मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक की वेदना से बाहर आने से दुखी है और चिंतित भी हैं। ऐसे लोगों की कुंठा और विपक्ष अपने राजनैतिक लाभ के लिए देश के मुसलमानों को नागरिकता संशोधन कानून 2019 के नाम पर भटकाने एवं बरगलाने का प्रयास कर रहा है। जितने भी वामपंथी छात्र संगठन, राजनीतिक दल और पिछड़ी जातियों के उत्थान के नाम पर बाबा साहेब के चित्र और उनके नाम का दुरुपयोग कर लोगों को भड़काने का प्रयास कर रहे हंै, उन लोगों ने ना कभी जनता के आगे नागरिक संशोधन अधिनियम को पढ़ा और ना ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 10 तक पढ़कर समझाने का प्रयास किया, जो कि देश की नागरिकता से जुड़े हुए अनुच्छेद हंै।

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 एक संशोधन मात्र है जो कि मूल नागरिकता अधिनियम में 12 दिसंबर 2019 को भारतीय संसद द्वारा कानून पारित कर इस देश में लागू किया गया। यह केंद्रीय क़ानून है जो कि संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लेखित केंद्रीय सूची से संबंधित विषय है जो नागरिकता से जुड़ा हुआ है जिस पर केवल इस देश की केंद्र सरकार ही कानून बना सकती है । राज्य सरकारें अनुच्छेद 256 एवं 257 के अनुसार इसे लागू करने के लिए संवैधानिक बाध्यता के चलते विवश हैं। लेकिन फिर भी यदि कोई राज्य सरकार अपनी हठधर्मिता के चलते इसे लागू करने से इंकार करती है, तो भारत के राष्ट्रपति द्वारा उक्त सरकारों को भंग करके उनका नियंत्रण अपने पास लेने का अधिकार रखते हैं। वहीं दूसरी ओर जो कोई इस कानून को संविधान की परिधि से परे जाकर निर्मित होना मानता है वह व्यक्ति या संगठन सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 32 एवं 139 के तहत इस कानून को चुनौती दे सकते हंै। हमारे देश के संविधान में हर समस्या का हल मौजूद है, पर जानबूझकर लोग इसे ना तो समझना चाहते हैं और ना लोगों को जागरूक होने देना चाहते हैं। यह एक षड्यंत्र है जो देश को विकास के पथ पर चलने से रोकने के लिए रचा गया है।

दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में धरने के नाम पर आम रास्ते पर अवैध अतिक्रमण कर स्थानीय निवासियों के मौलिक अधिकारों का लगातार हनन किया जा रहा है।

भारत के कानून द्वारा संविधान में स्वयं के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए किसी दूसरे के मौलिक अधिकारों का हनन करने की इजाजत नहीं दी गई है मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो आपस में जुड़े हुए हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी विरुद्ध आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में संज्ञान लेते हुए सिद्धांत प्रतिपादित किया कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर आगजनी तोडफ़ोड़ और अराजकता फैलाने वालों के विरुद्ध राज्य सरकारों को कड़ा रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज करना चाहिए एवं आमजन को हुए नुकसान की वसूली भी तोडफ़ोड़ करने वालों से चाहिए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकारों का पालन मौलिक कर्तव्यों को तिलांजलि देकर नहीं कराया जा सकता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि धरना, प्रदर्शन कर रहे लोग भी जानते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम देश की नागरिकता देने का कानून है। किसी की भी नागरिकता छीनने का कानून नहीं है । देश के मुसलमानों या किसी भी अन्य मत संप्रदाय के व्यक्ति की नागरिकता इस कानून से खत्म नहीं होगी। फिर भी जानकर अनजान बनना षड्यंत्र की ओर इशारा करता है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के नाम पर इस देश में अराजकता फैलाने का प्रयास हो रहा है जबकि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 का आधार 12 दिसंबर 2003 को तत्कालीन वाजपेई सरकार के समय गृह मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी द्वारा राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट थी । उस कमेटी के चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी थे । जबकि सदस्यों में कांग्रेस के वरिष्ठ वकील व पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल, हंसराज भारद्वाज, मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी जैसे दिग्गज कांग्रेसी सांसद थे । पर अब उसी कांग्रेस के द्वारा देश के सामने मुसलमानों के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर उन्हें भड़काने का प्रयास किया जा रहा है और इसका एकमात्र उद्देश्य केवल मुसलमान वोट बैंक की राजनीति करना है इसलिए देश की नौजवान पीढ़ी को सत्य को खुद परखना पड़ेगा एवं कानून के प्रावधानों को स्वयं पढऩा समझना पड़ेगा। साथ ही साथ उन्हें राजनीतिक दलों के हाथों की कठपुतली बनने से बचना होगा। उन्हें खुद तय करना होगा कि इस देश का भविष्य कैसा होगा। यह देश केवल भारत की युवा पीढ़ी की सकारात्मक सोच विचार और श्रम के आधार पर ही सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंच सकता है।

(लेखक म.प्र. उच्च न्यायालय ग्वालियर खंडपीठ के अधिवक्ता हैं) 

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