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राफेल पर राहुल का दुष्प्रचार फुस

जितेन्द्र चतुर्वेदी

Update: 2018-12-17 12:03 GMT

राहुल गांधी का राफेल दुष्प्रचार फुस हो गया है। इसकी हवा और किसी ने नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने निकाली है। उसने कहा है कि राफेल सौदा निष्कलंक है। उस पर संदेह नहीं किया जा सकता। उसमें नियम का पालन किया गया। खरीद तय प्रक्रिया के तहत हुई है। ऑफसेट का चुनाव भी उसी का हिस्सा है। वह एक व्यासायिक निर्णय है, उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। रही बात दाम की, तो संसद में उसका वास्तविक मूल्य बताया जा चुका है। उससे अधिक विवरण देना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं है। इसलिए कोर्ट किसी के 'परसेप्सन' के आधार पर राफेल मामले की जांच करने नहीं जा रहा है। यह कहते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे से जुड़ी सारी याचिकाएं खारिज कर दी। इससे दस जनपथ से संचालित होने वाला राफेल मामला औंधे मुंह गिर पड़ा है। राहुल गांधी खासा मायूस है। उनकी मां और सलाहकारों ने उन्हें सीखा-पढ़ा कर राफेल को बोफोर्स बनाने की राय दी थी। उस राय पर वे काम कर रहे थे। इसी आधार पर उन्होंने दुष्प्रचार का तानाबना बुना। बताया कि राफेल सौदे में घोटाला हुआ। अपने कहे को प्रमाणिक बनाने के लिए अखबारों की करतन जुटाई। उस कतरन में उन खबरों को छोड़ दिया जो उनके राजनीतिक अभियान में सही नहीं बैठती थी। उसे लेकर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करने लगे। कहने लगे कि रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार ने हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड को राफेल सौदे से बाहर कर दिया है। वे यहीं नहीं रुके। सरकार पर आरोप लगाया कि 36 राफेल ज्यादा दाम पर खरीदे गए हैं। इस खरीद में किसी नियम कानून का पालन नहीं किया गया है। इस बाबत राहुल गांधी और कांग्रेस के पास कोई पुख्ता प्रमाण नहीं थे। बावजूद इसके उन्होंने सरकार को आड़े हाथ लिया। इसको लेकर बकायदा अभियान चलाया गया। इस तरह के बेबुनियाद अभियान चलाने और राजनीतिक लाभ के लिए जनता को गुमराह करने का लंबा कांग्रेसी इतिहास रहा है।

तहलका टेप सबको याद ही होगा। अगर नहीं याद है तो स्मृतियों को खंगालिए और याद करिए, इसे लेकर कांग्रेस ने कितना तूफान खड़ा किया था। वह बंवडर वैसा ही था, जैसा आज राफेल को लेकर है। तब भी एनडीए सरकार पर रक्षा सौदे में रिश्वत लेने का आरोप लगा था। आधार वह टेप था जिसमें रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीज कही नहीं थे। फिर भी वह कांग्रेस के निशाने पर थे। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तत्कालीन एनडीए सरकार ने उसकी जांच के लिए आयोग बनाया। आयोग में साफ हो गया था कि रक्षा सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ था। तहलका टेप तत्कालीन एनडीए सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक षडयंत्र था। वह यह रिपोर्ट दे पाता, उससे पहले दस जनपथ से चलने वाली यूपीए सरकार ने फुकन आयोग को बंद कर दिया। उसके लिए आदेश दस जनपथ से आया था। दस जनपथ नहीं चाहता था कि तहलका टेप की जांच करने वाला आयोग अपना काम पूरा करे। वजह साफ थी, कांग्रेस का राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध हो चुका था। उसके रचे दुष्प्रचार के तानेबाने में जनता फंस चुकी थी। उसने तत्कालीन एनडीए सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तथाकथित त्याग की मूर्ति सोनिया गांधी के हाथों में सत्ता का ताज था। इसलिए यह जरूरी था कि तहलका टेप की जांच को बंद कर दिया जाए। अन्यथा आयोग की पड़ताल सबको पता चल जाती और जनता समझ जाती कि कांग्रेस ने उसे ठगा है।

ठगी बस तहलता टेप तक सीमित नहीं थी। ताबूत घोटाला भी उस फेहरिस्त में शामिल है। इसे लेकर भी कांग्रेस ने खूब दुष्प्रचार किया था। कहा गया कि सरकार लाशों का सौदा कर रही है। यह बात जनमानस में गहरे बैठ गई थी। कांग्रेस ने इसे खूब भुनाया। लेकिन 2015 में साबित हो गया कि कांग्रेस जनता को गुमराह कर रही थी। खुद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ताबूत घोटाले में एक भी आरोपी को दोषी नहीं पाया गया। लिहाजा कोर्ट ने सबको बरी कर दिया। कांग्रेस ने कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती नहीं दी। कायदे से उसे लाशों के सौदागरों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए था। पर वह हुई नहीं, क्योंकि उसे भी पता था कि घोटाला हुआ नहीं है। उसने महज जनता को गुमराह करने के लिए इसे मुद्दा बनाया था। इसी से सीख लेते हुए, कांग्रेस ने राफेल को भी मुद्दा बनाया। उसे लगा कि वह एक बार फिर जनता को गुमराह करेगी। पर कोर्ट ने कांग्रेस की इस मुहिम को विफल कर दिया और देश की जनता को कांग्रेसी ठगों से बचा लिया। (हिंस)

(लेखक पाक्षिक 'यथावत' के विशेष संवाददाता हैं)

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