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मनभेद बढ़ाते राजनीतिक दल

Update: 2018-09-08 08:56 GMT

वर्तमान में विरोधी राजनीतिक दलों के नेता जिस तरह से बयान दे रहे हैं, उसे राजनीतिक भ्रष्टाचार फैलाने वाला निरुपित किया जाए तो ज्यादा ठीक ही होगा। राजनीति में मतभेद होना कोई नहीं बात नहीं है, लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं के अंतर्गत मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जो मत प्रस्तुत किया जा रहा है, उसकी प्रामाणिकता भी होना चाहिए, इसी से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है। अगर तथ्यहीन मत प्रस्तुत किया जाता है तो वह बहुत बड़े भेद का कारण बनता है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि अब मतभेद ही नहीं, बल्कि मनभेद की राजनीति मुखर होती जा रही है। जहां तक मतभेद की बात है तो मतभेद तो परिवार में भी हो सकते हैं, लेकिन वहां मनभेद को कोई स्थान नहीं होता। अगर मनभेद हुआ तो पूरा परिवार बिखर जाता है। इसी प्रकार राष्ट्र के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। मतभेद अवश्य हों, लेकिन मनों में भेद नहीं होना चाहिए। देश की राजनीति भी कुछ ऐसे ही रास्ते पर अपने कदम बढ़ाती हुई दिखाई दे रही है। नए-नए शब्दों को परोसने का खेल खेला जा रहा है, उसके कारण देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भारत की छवि बिगड़ रही है। भारत देश के नागरिक होने के नाते हमें कम से कम इस बात का तो ध्यान रखना ही होगा कि हम अपने देश को मजबूती के साथ विदेशों के सामने लाएं। अगर हम खुद ही अपनी कमजोरियां बताने लगेंगे तो फिर देश को बचाने की कवायद कौन करेगा, यह सोचने का विषय है। आज देश में जो राजनीति का स्वरुप दिखाई दे रहा है, वह अपने मूल उद्देश्य से भटकाव की कहानी प्रदर्शित कर रहा है। विरोधी राजनीतिक दल केवल आरोप लगाने वाली राजनीति करने तक ही सीमित रह गए हैं।

भारत के सभी नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सबसे पहले भारत के नागरिक हैं, इस नाते उन्हें विदेशों में जाकर कोई भी ऐसी बात नहीं करना चाहिए, जिससे भारत का सिर झुक जाए। वर्तमान में विपक्षी राजनीतिक दल ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कि देश में सारी समस्याओं की जड़ वर्तमान केन्द्र सरकार है। जबकि सच तो यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ईमानदार और भ्रष्टाचार रहित सरकार दी है। केन्द्र में मोदी सरकार के विरोध में अभी और भी प्रयोग किए जा सकते हैं, जिसके लिए हो सकता है कि देश में वामपंथी विचारक और नए शब्द गढ़ने का प्रयास करें। ऐसे सभी प्रयास देश में राजनीतिक अस्थिरता का कारण तो बनेंगे ही साथ ही जनता को गुमराह करने का काम भी करेंगे, इसलिए भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखने वाले चिंतक और विचारकों को अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है। ऐसे वातावरण में हमारी निष्क्रियता देश की बर्बादी का कारण भी बन सकती है। कहा जाता है कि देश की समस्याओं को बढ़ाने में जितना योगदान नकारात्मक सक्रियता का है, उससे कहीं ज्यादा सकारात्मक निष्क्रियता भी है। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले विचारकों को देश के अच्छे भविष्य के लिए बहुत ज्यादा सक्रियता दिखाने की आवश्यकता है। इसके प्रयास आज और अभी से करने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए।

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