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सुधारवादी पहल : जबरन सेवानिवृत्ति, "भ्रष्टाचार मुक्ति" की तरफ बढ़ते कदम

Update: 2019-07-10 10:01 GMT

शरीर का कोई अंग अगर कैंसरग्रस्त हो जाए और उसका ठीक होना नामुमकिन है तो उसे शरीर से अलग कर देने में ही भलाई है। ऐसा न करने पर उसका जहर पूरे शरीर में फैलने का भय रहता है। नीति शास्त्र भी कहते हैं कि 'सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पंडिता:।' मूल नष्ट हो जाए, उससे तो अच्छा है कि आधा बचा लिया जाए। भ्रष्टाचारी व्यक्ति व्यवस्था का वह दीमक है जो व्यवस्था को ध्वस्त करता रहता है। ऐसे लोगों को जिम्मेदारी के पदों से दूर कर देने में ही राष्ट्र की भलाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार से निपटने की अलग रणनीति बनाई है। अधिकारी बहुत चतुर होते हैं। 'खत का मजमून भांप लेते हैं लिफाफा देखकर।' लेकिन इस बार उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है? ऐसा तो कभी नहीं हुआ है। अधिकारियों के बड़े से बड़े गुनाह माफ हो जाया करते थे। लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्ति दी जा रही है। उन्हें घर भेजा जा रहा है। यह काम आजादी के कुछ साल बाद ही शुरू कर दिया गया होता तो देश में भ्रष्टाचार का दीमक मोटा नहीं होता। अगर ऐसा हुआ होता तो अधिकारियों में कार्रवाई का भय रहता।

नरेंद्र मोदी से इस देश को बहुत उम्मीदें हैं। उन उम्मीदों पर यकीन किया जा सकता है। उनके अब तक के काम और सुधारवादी दृष्टिकोण से तो ऐसा ही लगता है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के नियम 56 के तहत हाल ही में कुछ अफसरों को समय से पहले ही सेवानिवृत्ति प्रदान कर दी। नियम 56 के तहत सेवानिवृत्त किए गए ये सभी अधिकारी आयकर विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। इनमें से कई अधिकारियों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार,आय से ज्यादा संपत्ति रखने के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। दागी और भ्रष्ट अधिकारी जो शासन पर बोझ बन जाएं, उन्हें सिस्टम से अलग करने का यही एक तरीका भी है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेंशन नियम 56 (जे) के तहत दी जाती है। नरेंद्र मोदी समस्याओं के समाधान के जो तरीके सुझाते हैं, अगर राज्य सरकारें उन सुझावों पर गौर करें तो देश का कायाकल्प होते देर नहीं लगेगी। उन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्ति देकर घर बैठाने की जो रणनीति अख्तियार की है, उसका असर अन्य भाजपा शासित राज्यों में दिखने भी लगा है। उत्तर प्रदेश वह राज्य है जो केंद्र सरकार की रीति-नीति पर अमल करने के मामले में सबसे आगे रहता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों की नाक में दम कर रखा है। सख्त फैसले लेने की उनकी छवि तो पहले से रही है। वे अधिकारियों को चेताते भी रहे हैं कि गड़बड़ी की तो नपने और जेल जाने से कोई रोक नहीं सकता। अपनी इस छवि को और भी मजबूत करते हुए उन्होंने एक साथ 600 से अधिक भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर जो सख्त कार्रवाई की, उससे अधिकारियों और कर्मचारियों में हड़कंप के हालात हैं। योगी आदित्यनाथ ने न केवल जबरन सेवानिवृत्ति जैसे बड़े और कड़े निर्णय लिए हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की धरती पर एक नया इतिहास रच दिया है। उन्होंने वह कर दिखाया है जो यूपी के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ। अधिकारियों को लग रहा था कि उन्हें बंदरघुड़की दी जा रही है। यह कभी मूर्त रूप ले ही नहीं सकती लेकिन जब उन्होंने मुख्यमंत्री की कार्रवाई का डंडा चलते देखा तो उनके हाथ-पांव फूल गए। जिन 600 अफसरों व कर्मचारियों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार के आरोप में गाज गिराई है, उनमें पिछली सरकारों के कार्यकाल के दौरान के एक से बढ़कर एक दागी शामिल थे। इनमें से 200 से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों को योगी सरकार ने जबरन रिटायर कर दिया है। अपने संगीन भ्रष्टाचार की बदौलत वे एक दिन भी अपनी कुर्सी पर बने रहने के योग्य नहीं थे। लेकिन पिछली सरकारों में जोड़तोड़ के जरिये उन्होंने अपना पद और रुतबा दोनों बचाए रखा। 400 से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों को योगी सरकार ने बृहद दंड दिया है। यह दंड उनकी सेवा पुस्तिका में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज कर दिया गया है। ऐसा होने से वे भविष्य में कोई प्रोन्नति नहीं पा सकेंगे। मुख्यमंत्री की मंशा बेहद साफ है। जो भी अफसर या कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त मिलेंगे, उन्हें ऐसी सजा दी जाएगी जो दूसरों के लिए नजीर बन सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तो सूत्र वाक्य ही रहा है कि न खायेंगे, न खाने देंगे। उसी संकल्प और भावबोध के साथ योगी आदित्यनाथ भी काम कर रहे हैं। योगी यहीं नहीं रुके हैं। उनकी मुहिम लगातार जारी है। इस कार्यवाही के अलावा डेढ़ सौ से अधिक अधिकारी अभी भी सरकार के रडार पर हैं जिनके खिलाफ कार्रवाई होनी तय है। योगी की इस निडर, निष्पक्ष और ईमानदार मुहिम ने यूपी के भ्रष्ट तबकों को बहुत सीधा-सा संदेश दे दिया है। उन्हें ईमानदारी से काम करना होगा, अन्यथा बर्खास्तगी के लिए तैयार रहना होगा।

योगी आदित्यनाथ की इस पहल का दूसरे राज्यों में भी अच्छा संदेश गया है। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दागी अधिकारियों को लेकर बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने दिल्ली के मुख्य सचिव, डीडीए के उपाध्यक्ष, पुलिस आयुक्त और नगर निगम के आयुक्तों को दागी अधिकारियों की पहचान करने और अनिवार्य रूप से उन्हें सेवानिवृत्त करने के निर्देश दिए हैं। अगर अन्य मुख्यमंत्रियों ने भी योगी आदित्यनाथ जैसी ही सख्ती बरती और कार्रवाई में पारदर्शिता का भाव रखा तो यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार बहुत हद तक कम हो जाएगा। भ्रष्टाचार न हो, इसके लिए आम जन को भी सतर्क रहना पड़ेगा। संघावृत्ति का खेल अब बहुत चलने वाला नहीं है।

मोदी और योगी ने इसकी पहल कर दी है। बस इस अभियान की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। कार्रवाई में ढील नहीं बरती जानी चाहिए। प्रत्यंचा तनी रहे तो गलत करने वालों का दिल हिलता है। कुछ राजनीतिक दलों को इस पर ऐतराज हो सकता है। कुछ भ्रष्ट अधिकारी अपने को दूध का धुला साबित करने के लिए कोर्ट भी जा सकते हैं। मानवाधिकार आयोग से भी गुहार लगा सकते हैं लेकिन इन तमाम झंझावातों और चुनौतियों के बीच इस जन हितकारी पहल को बनाए रखना देशहित में है।

(लेखक : सियाराम पांडेय 'शांत')

 

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