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देश का मंत्र मजबूत और स्थिर लोकतंत्र

- डॉ. नन्द किशोर गर्ग, चेयरमैन महाराजा अग्रसेन यूनिवर्सिटी एवं मेडिकल कॉलेज

Update: 2021-08-05 15:44 GMT

संसद के कामकाज में बाधा पहुँचाने की विपक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद संसद में बिल पास होना, इस बात का सबूत है कि केंद्र में स्थिर और बहुमत की सरकार ही देश को आगे ले जा सकती है। इस देश ने आज़ादी के ७४ वर्षों में राजनीतिक रूप से अनेक उथल - पुथल देखे। एक दल से ले कर, अनेक दलों की साझा सरकारें देखीं, कुछ - कुछ समय पर बदलते प्रधानमंत्री देखे और आपातकाल का यातनाओं से भरा दौर देखा । एक लाख से ज्यादा लोग जेलों में डाल दिए गए थे। जबरदस्ती परिवार नियोजन के नाम पर नसबंदी और सरकार के हिंसक तौर तरीकों के कारण लोगों का नाराज होना स्वाभाविक था। और मैंने तो आपातकाल को न केवल देखा , बल्कि उस दौर में जेल की यातनाएं भी झेलीं। फिर पहली बार देश ने गैर कोंग्रेसी सरकारों का सिलसिला देखा और की देश की उठान भी देखी।

आपातकाल काल के बाद के दौर को एक तरह से देश के लिए नयी अंगड़ाई का दौर कहा जा सकता है। वह दौर आज भी मानस पटल पर अंकित है। तिहाड़ जेल से आने के बाद जब घर पहुंचा तो पता चला की इनकम टैक्स की एसेसमेंट इत्यादि होनी थी, और भी कई मसले थे। हमने डीडीए से पश्चिम विहार में 300 गज का एक प्लॉट ऑक्शन में खरीदा था, जिसके भुगतान में देर हो रही थी। डीडीए ने उस प्लॉट को कैंसिल करके हमारी 25% रकम जब्त कर ली थी । इसी सिलसिले में तब मैं श्री जगमोहन जी से मिला और अपनी स्थिति बतायी। उन्होंने तुरंत वह प्लॉट मुझे देने के आदेश अधिकारियों को दिए । फिर ब्याज सहित पूरा भुगतान जमा कराने के बाद वह प्लॉट हमारा हो गय। जगमोहन जी का यह मानवीय रूप देखकर अच्छा लगा और मैं उनका प्रशंसक हो गया। मुझे तीन लोक सभा चुनाव में दिल्ली के चुनाव प्रभारी के नाते उनके लिए काम करने का अवसर मिला। इस प्रकार संगठन का काम करते हुए समय बीत रहा था। देश का माहौल तनावपूर्ण था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लग रहा था कि देश में पूर्ण शांति है। यह उनका भ्रम था। यही सोचकर उन्होंने २१ जनवरी, १९७७ को मार्च में लोकसभा चुनाव करवाने का फैसला किया । १८ मार्च, १९७७ को चुनाव करवाने की घोषणा हुई । सभी बड़े नेता जेल में थे। इंदिरा गाँधी को लगता था किअब कौन चुनाव लड़ेगा। यह भी उनका भ्रम था। चुनाव के सिलसिले में दिल्ली के सदर जिले के कार्यकर्ताओं पहली बैठक कँवर लाल गुप्ता जी ने बुलाई। बैठक में बताया गया कि ३० जनवरी , १९७७ को रामलीला मैदान में एक सभा करने का निश्चय हुआ है। उस समय की परिस्थितियां भयपूर्ण थीं। चुनाव लड़ने के लिए धन का अभाव था। पोस्टर आदि लगाने की अनुमति नहीं थी। फिर भी लक्ष्य रखा गया कि कोशिश करके २००० लोग इकट्ठा हो जाएँ। जोर - शोर से चुनाव की तैयारी प्रारंभ हुई। ३० जनवरी की सभा सफल रही। इससे हमारा हौसला बढ़ा।

६ फरवरी, 1977 को रामलीला मैदान में एक ऐतिहासिक रैली हुई, लगभग दो लाख लोग अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए आए थे। यह उस समय तक की सबसे बड़ी रैली थी। उस रैली में जयप्रकाश नारायण , अटल बिहारी वाजपेयी नेताओं को तो आना ही था परंतु बाबू जगजीवन राम , नंदनी सत्पथी, हेमवती नंदन बहुगुणा आदि का कांग्रेस छोड़कर सीधे मंच पर आना एक बड़ी बात थी। हम सब कार्यकर्ता असीम उत्साह से भरे हुए थे। सरकार ने रैली को निष्प्रभावी बनाने के लिए उस समय की सबसे पॉपुलार फिल्म 'बॉबी' को दूरदर्शन पर चलाया, डीटीसी की बसें बंद की गयीं। इस सबके के बावजूद दिल्ली में सबसे बड़ी रैली हुई । उसी रैली में जनता से अपील की गई कि हमारे पास पैसा नहीं है, जनता पार्टी अब बन ही रही है और हम सबको मिलकर चुनाव लड़ना है। यही नहीं , चुनाव लड़ने के लिए आवश्यक धन भी आपको ही देना है । लोगों ने गेट पर खड़े हम कार्यकर्ताओं को ५० - ५० , १०० -१०० के नोट दिए। जहां मेरा दायित्व था, वहां मैंने लोगों को सोना चढ़ाते हुए देखा। लोग बिना गिने रुपये -पैसे दे रहे थे। ५ से लेकर लेकर 100 ₹ तक के नोट थे । जब हमने उस सब राशियों को सरदार पटेल भवन, जंतर - मंतर पर जमा कराया तब तक रात के 11 बज गए थे । घरवाले प्रतीक्षा कर रहे थे।

उसके बाद तो चुनाव का जोश बढ़ता गया ,साथ ही प्रचार की गति भी। दरअसल आम लोग चुनाव लड़ रहे थे, प्रत्याशी की शक्ल दिख जाए तो ठीक, न दिखे तो भी ठीक। पूरे उत्तर भारत से कोलकाता तक केवल एक सीट राजस्थान और केवल एक सीट मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने जीती थी। अन्यथा सब जगह कांग्रेस पूरी तरह हारी । दक्षिण भारत में कांग्रेस फिर भी जीती थी। महाराष्ट्र में भी जनता पार्टी आगे रही, गुजरात में पहले ही 1975 में जनता मोर्चा के बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री बन गए थे। तमिलनाडु में करुणानिधि मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार को भी गिराया गया था। परंतु कांग्रेस का प्रदर्शन आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु कर्नाटक में अच्छा रहा । मोरारजी जी भाई देसाई प्रधानमंत्री बने। २१ मार्च से आपातकाल का अँधेरा पूरी तरह छंट गया था । स्वयं इंदिरा गाँधी , संजय गांधी अपना चुनाव हार गए थे। मुझे आज भी वह दिन याद है, जब राजघाट पर सभी नवनिर्वाचित सांसद पहुंचे थे। गजब का जोश था देश में। आजादी की इस दूसरी लड़ाई में हम यशस्वी हुए थे।

तीन - चार महीने में विधानसभा के चुनाव करवाए गए उनमें भी जनता पार्टी विजय हुई। मुझे भी दिल्ली के कर्मपुरा क्षेत्र से दिल्ली नगर निगम का प्रत्याशी बनाया गया। मैंने नामांकन पत्र भी भरा परंतु उस समय मुझे लगा कि आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी हो कर ही चुनाव मैदान में उतरना चाहिए। अन्यथा चुनाव लड़ कर भ्रष्टाचार की दलदल में घुसना ही पड़ेगा। क्योंकि उस समय दिल्ली नगर निगम में निगम पार्षद को केवल ₹30 प्रत्येक बैठक मिलता था। कोई टेलीफोन नहीं , न ही यातायात का साधन और न कोई अन्य सुविधा। उस पर भी केवल 10 बैठकों का पैसा मिलेगा, ऐसा प्रावधान था । जब यह सब मैंने जाना तो मैं कँवर लाल गुप्ता जी को अपने मन की बात बताई कि मैं अभी चुनाव नहीं लड़ना चाहता। तब तत्कालीन जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर जी के भतीजे को मेरी जगह चुनाव लड़ाया गया। हमारे क्षेत्र से समाजवादी नेता और जॉर्ज फर्नांडिस के मित्र बृजमोहन तूफान को दिल्ली महानगर परिषद का चुनाव लड़वाया गया।उन चुनावों में केवल 14 निगम पार्षद दिल्ली में जीते थे। कर्मपुरा क्षेत्र में भी कांग्रेस जीत गई। उस सीट पर 1983 में फिर से भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मैंने विजय प्राप्त की।

दिल्ली नगर निगम में मेरा कार्यकाल बहुत ही उत्तम रहा और मैंने श्री शांति देसाई जी के नेतृत्व में साहिब सिंह वर्मा के साथ मिलकर एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई । 4 साल का नगर निगम का कार्यकाल कांग्रेस ने बढ़ाकर 8 साल कर दिया। जब भाजपा की सरकार बनी तो दिल्ली के लोगों को दिल्ली नगर निगम दिल्ली महानगर परिषद में कांग्रेस से मुक्ति मिली।

जनता पार्टी सत्ता में आई, लोगों ने उम्मीदें लगायीं। परंतु 3 साल में ही पार्टी बिखर गई और इस देश की जनता ने ही एक बार फिर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया। वह सब बार बार देखते हुए अब मुझे यह लगता है कि इस देश की जनता मजबूत केंद्र सरकार को पसंद करती है। वस्तुतः भारत की जनता ने लगभग 1000 साल की गुलामी को सहा है और महसूस किया है कि जब जब केंद्र कमजोर हुआ है तब तब देश कमजोर हुआ है। मोरारजी भाई की सरकार को अस्थिर करके चरण सिंह जी प्रधानमंत्री बन गए परंतु लोकसभा में 1 दिन भी प्रधानमंत्री के रूप में नहीं बैठे । इसी प्रकार से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने परंतु सरकार डांवाडोल रही । फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और 4 महीने में ही फिर से चुनाव घोषित हुए । इन चुनावों में कांग्रेस जीती और प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव ने एक स्थिर सरकार दी। उसके बाद फिर सरकार आई अटल बिहारी बाजपेयी जी की। जब 1996 में वे प्रधानमंत्री बने तो बहुत उम्मीदें थी। लेकिन वह सरकार सिर्फ तेरह दिन चली। चूंकि अटल जी जोड़-तोड़ मैं बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए सदन में एक वोट से सरकार गिर गई।

कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार की कमान प्रधानमंत्री के रूप में एच डी देवगौड़ा ने संभाली, उनके बाद इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। बार बार सरकार का बदलना लोगों को पसंद नहीं आया। देश एक स्थिर सरकार की बाट जोह रहा था। 1998 में देश ने अटल जी को पूर्ण बहुमत से सहयोगियों के साथ एक स्थिर सरकार एक मजबूत सरकार बनाने का अवसर दिया। अटल जी ने देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया। ११ और १३ मई १९९८ को पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण कर दुनिया में भारत की धाक जमाई। इस सरकार को लगातार चुनौतियाँ मिलती रहीं। १९९९ में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की। 1999 में फिर चुनाव हुए और इस बार भी जनता ने देश की बागडोर अटल जी हाथों में सौंपी। उन्होंने पूरे 5 साल तक सरकार चलाई। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक प्रतिबद्ध स्वयंसेवक थे। देश ने उनके नेतृत्व में देश को ऊंचाइयों तक पहुँचते देखा।

सच तो यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जान भावनाओं पूरी तरह समझता है । २०१४ में प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर भारतीय जनता पार्टी चुनाव में उतरी और सफलता प्राप्त की। नरेंद्र मोदी ने देश की आशाओं को और आकांक्षाओं को पूरा करते हुए सबका साथ सबका विश्वास प्राप्त किया। 2019 में उन्हें पहले से भी अधिक बहुमत प्राप्त हुआ। जनता का विश्वास हासिल कर उन्होंने फिर सरकार बनाई और देश के सपनों को पूरा किया। कश्मीर से धारा 370 हटाना और राम मंदिर का निर्माण, दोनों ही सपने पूरे हुए । उनके कुशल नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है । 2024 तक हर व्यक्ति के सर छत होगी। हर घर में पानी, बिजली, शौचालयों की व्यवस्था होगी। सड़कों, राजमार्गों का निर्माण जारी है। बुलेट ट्रेन का सपना पूरा होने जा रहा है। आधुनिक सुविधाओं वाले एयरपोर्ट्स बन रहे हैं। तमाम ऐसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिनकी कल्पना भी नहीं थी। यही नहीं देश ने कोरोना जैसी महामारी का डट कर सामना किया। इस वैश्विक कोरोना महामारी में भी 130 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए बड़े विकसित देशों के सामने मृत्यु दर बहुत कम रखते हुए अपनी वैक्सीन बनाकर दिसंबर तक वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा। जल्दी ही वह काम पूरा हो जाएगा।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत विश्व के सबसे अग्रणी देशों में है । भारत के प्रधानमंत्री की रेटिंग पूरे विश्व में सबसे ऊंची है । ईश्वर से प्रार्थना है कि १९७५ में हमने जिस लोकतंत्र बचाने की जो प्रतिज्ञा की थी, और जिसे पूरा भी किया है ,वह लोकतंत्र और मजबूत हो, भारतवासी अच्छे और बुरे में पहचान करें। भारत माता को ऊंचे सिंहासन पर बैठे हुए देखने की करोड़ों लोगों की आशाओं को पूरा होता हुआ देखने का परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार और गुरु गोलवलकर जी का सपना साकार हो। डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बलिदान देकर कश्मीर बचाया ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आर्थिक चिंतन दिया ,अटल जी ने देश को जो नयी दिशा दी उसी सोच को मोदी जी आगे बढ़ा रहे हैं। अब विश्राम करने का समय नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत साकार होते देखने का समय है। बस जरूरत है चलते रहने की। चरैवेति चरैवेति।

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