इंद्रेश उपाध्याय किया वैदिक विवाह, जानें कौन सी यह है परंपरा कथावाचक की शादी के बाद हो रही चर्चा
वृंदावन के कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने यमुनानगर की शिप्रा शर्मा के साथ जयपुर में विवाह बंधन में बंध गए। उनकी शादी की चर्चा रही क्योंकि यह वैदिक विवाह था। जानिए कौन सी परंपरा है जो कथावाचक की शादी के बाद सुर्खियों में है।
Indresh Upadhyay Marriage: मथुरा जिले के वृंदावन के कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और हरियाणा के यमुनानगर शिप्रा शर्मा की शादी हो गई। उनकी शादी ने खूब सुर्खियां बटोरी। साधु-संधों के जमावड़े के अलावा इसके सुर्खियों की वजह रही कथावाचक का वैदिक विवाह करना। उनकी शादी के लिए छपी पत्रिका में भी जिक्र किया गया था- वैदिक विवाह।
जहां आजकल शादियां बहुत मॉडर्न और भव्यता का प्रदर्शन होती जा रही है। ऐसे में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने वैदिक विवाह अपनाया। उनकी पूरा विवाह वैदिक तरीकों, मंत्रों और पुरानी परंपराओं के अनुसार कराया गया। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आम शादियों में होने वाले मंत्रोच्चार और वैदिक विवाह में क्या अलग है? और वैदिक विवाह बाकी शादियों से कैसे अलग है।
जानिए आखिर क्या होता है वैदिक विवाह?
वैदिक विवाह को हिंदू धर्म का सबसे पुराना और पवित्र विवाह संस्कार माना जाता है। इस विवाह संस्कार की जड़े ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से जुड़ी हुई है। वैदिक विवाह आधुनिक या दिखावे वाली शादी नहीं होती है। इसमें मंत्रों, अग्नि और ऋषि-मुनियों की प्राचीन परंपराओं से जुड़ी हुई है। इस शादी में वर वधु के जीवन भर धर्म, सत्य,प्रेम और परिवार के प्रति जिम्मेदारियों को पूरा करने पर जोर दिया जाता है। वैदिक विवाह में शादी कोई उत्सव या समारोह नहीं है बल्कि एक संस्कार माना जाता है।
वैदिक विवाह की बात करें तो इसमें जो सबसे खास बातें होती है उसमें अग्नि के सामने मंत्रों का जाप, अग्नि के चारों ओर परिक्रमा (फेरे), और सप्तपदी, या सात वचन हैं। वैदिक शादी की सबसे खास बात यह है कि इसकी हर रस्म का एक गहरा मतलब होता है।
वैदिक शादी में चार फेरे और सप्तपदी
वैदिक विवाह की महत्वपूर्ण रस्मों की बात करें तो इसमें परिक्रमा और सप्तपदी हैं। परिक्रमा के दौरान वर वधु अग्नि के चारों ओर चार फेरे लेते हैं। हर परिक्रमा जीवन के चार महत्वपूर्ण पहलुओं धर्म (नेकी), अर्थ (धन/समृद्धि), काम (इच्छा/प्यार) और मोक्ष (मुक्ति) को दर्शाती है।
चार परिक्रमाएं
-पहली परिक्रमा की बात करें तो यह धर्म के लिए की जाती है। इसमें दूल्हा-दुल्हन मिलकर अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने का वचन लेते हैं।
-दूल्हा-दुल्हन दूसरी परिक्रमा अर्थ के लिए करते हैं। इसमें वह कड़ी मेहनत से जीवन में समृद्धि और तरक्की के लिए प्रयास करने का वादा करते हैं।
-तीसरी परिक्रमा काम के लिए की जाती है। इसमें वर वधु एक दूसरे से प्यार, खुशी भावनाओं का सम्मान करने का वचन लेते हैं।
-चौथी परिक्रमा करने के दौरान दोनों मोक्ष यानी मिलकर आध्यात्मिक विकास, दान धर्म, यज्ञ हवन में सहभागी और जीवन में शांति पाने का संकल्प लेते हैं।
चार परिक्रमा के बाद सप्तपदी
चार परिक्रमा करने के बाद सप्तपदी की बारी आती है। इसके अर्थ से समझ आता है सात कदम यानी परंपरा अनुसार दूल्हा-दुल्हन एक साथ सात कदम चलते हैं। उनके हर कदम के आगे चावल का ढेर होता है जिसमें दाहिने पैर रखकर आगे बढ़ते हैं। यहां हर कदम का मतलब होता है। इसमें एक-दूसरे का साथ देना, साथ मिलकर आगे बढ़ना, सुख-दुख में साथ रहना शामिल है। साथही परिवार की जिम्मेदारियां निभाना और आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन के बीच बैलेंस बनाए रखना।