नई दिल्ली: संविधान की कसौटी पर वक्फ और एक बार फिर कपिल सिब्बल की हिंदू विरोधी दलीलें...
नई दिल्ली: वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की दलीलें पूरी हो गईं हैं। अगली सुनवाई में अब केंद्र सरकार की तरफ से SG तुषार मेहता दलीलें रखेंगे।वक्फ कानून पर अंतरिम रोक लगाने वाली याचिकाओं में सुप्रीम सुनवाई के दौरान करीब पौने चार घंटे तक मैराथन सुनवाई हुई। इस दौरान पक्ष और विपक्ष में कई महत्वपूर्ण तर्क और दलीलें दी गईं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के सामने अपनी बातें रखीं। याचिकार्ताओं की ओर दलील दी गई है कि वक्फ कानून की जो सालों पुरानी रुपरेखा है, उसे यह कानून छीनने वाला है। संशोधित वक्फ कानून प्रॉपर्टी को हथियाने वाला है।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई है कि नए कानून में यह प्रावधान है कि अगर किसी संपत्ति को ASI संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है, तो उसका वक्फ प्रॉपटी स्टेटस छिन जाएगा । ऐसे में अगर नया कानून लागू होता है तो संभल की शाही जामा मस्जिद भी वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी और ऐसी अनेक वक्फ संपत्ति अपना स्टेटस खो देंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल के इस दलील पर पूछा कि अगर किसी मस्जिद को ASI संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है तो क्या वहां मुसलमानों के इबादत का अधिकार भी छिन जाएगा। इस पर सिब्बल ने दलील दी कि वक़्फ़ का मतलब ख़त्म हो जाएगा और नया कानून संविधान के आर्टिकल 14 जो समानता के अधिकार की बात करता है आर्टिकल 25 जो धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है और आर्टिकल 26 धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है उसका का हनन होगा ।
सिब्बल ने आगे दलील दी कि पहले वक्प बोर्ड में लोग चुन कर आते थे और वो सभी मुस्लिम होते थे । लेकिन अब सभी सदस्य मनोनीत होंगे, और अब सदस्यों की संख्या 11 हो गई है जिनमें 7 मुस्लिम और 4 गैर मुस्लिम हो सकते हैं । ऐसे में मुस्लिम समुदाय का वक्फ प्रॉपर्टी के प्रबंधन का अधिकार बाधित होता है।
चीफ जस्टिस ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा की अगर आपकी दलील सही है हम इसकी व्याख्या इस तरह कर सकते हैं कि पदेन के अलावा दो और भी गैर मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। तब सिब्बल ने कहा कि हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है।यदि आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं तो यहां क्यों नहीं?
बहस के दौरान एक बार फिर वरिष्ठ वकील और काँग्रेस नेता कपिल सिब्बल की दलीलें चौंकाने वाली रही । मामला वक़्फ़ का था और कपिल सिब्बल मंदिर को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिए । सिब्बल ने कोर्ट के एक सवाल के जवाब में कहा कि मस्जिद में मंदिरों की तरह हजारों करोड़ का चढ़ावा नहीं आता है । इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया कि मैं तो दरगाह, चर्च गया हूं और वहाँ वहां खूब चढ़ावा होता है। इस पर कपिल सिब्बल ने दलील दी कि दरगाह मस्जिद से अलग हैं। मैं मस्जिद की बात कर रहा हूं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर महत्वपूर्ण सुनवाई मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ की कोर्ट में शुरू हुई । इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए न्यायालय ने सुनवाई की रूपरेखा भी तय करने पर भी जोर दिया।मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को संविधान सम्मत माना जाता है । जब तक कि इसके खिलाफ कोई ठोस आधार सामने नहीं आ जाता । उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालतें तभी हस्तक्षेप करेंगी, जब कोई स्पष्ट और गंभीर संवैधानिक उल्लंघन उसमें दिखाई देगा।
कोर्ट के इस वक्तव्य के बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से आग्रह किया कि वक़्फ़ संशोधन क़ानून की सुनवाई को सिर्फ तीन बिंदुओं तक सीमित रखा जाए, जिनमें सबसे अहम बिंदु वक्फ बोर्ड द्वारा कोर्ट, यूजर और डीड के आधार पर घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का अधिकार है । मेहता ने कहा कि उन्होंने इन्हीं तीन मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल किया है।
लेकिन केंद्र द्वारा दाखिल तुषार मेहता के इस आग्रह को कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध करते हुए कहा कि इस कानून के ज़रिए एक ख़ास समुदाय की धार्मिक और संपत्ति संबंधी स्वतंत्रता पर कुठाराघात किया जा रहा है और यह सिर्फ संपत्ति का मामला नहीं है, बल्कि पूरी वक्फ संपत्ति पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश है।कपिल सिब्बल की इस दलील के बाद चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया गवाई और कपिल सिब्बल के बीच काफ़ी लंबी बहस चली।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में वक्फ काउंसिल के गठन पर अप्पति जताई और कहा कि मुस्लिम संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए, कानून की प्रक्रिया के बिना, लेकिन कानून को माध्यम बना कर एक खास मकसद के लिए इस कानून को लाने की कोशिश की जा रही है ।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तीनों प्राथमिक मुद्दों पर केंद्रित सुनवाई को लेकर फैसला लेगी, या याचिकाकर्ताओं के अनुसार सभी पहलुओं पर विचार करेगी यह अगली सुनवाई में तय होगा।