सुप्रीम कोर्ट: जस्टिस यशवंत वर्मा के कैश कांड मामले की रिपोर्ट मांगने वाली RTI याचिका खारिज

Update: 2025-05-26 09:31 GMT

Supreme Court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली आवास पर नकदी मिलने के आरोपों की इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। महाराष्ट्र के अधिवक्ता अमृतपाल सिंह खालसा ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत रिपोर्ट की प्रति मांगी थी। उन्होंने जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश करते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र की प्रति भी मांगी थी।

सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) हिमानी सरद ने 9 मई को प्रस्तुत आरटीआई आवेदन को 21 मई को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में निर्धारित मानदंडों के कारण मांगी गई जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता।

अतिरिक्त रजिस्ट्रार ने जवाब में कहा, "निर्णय में उल्लिखित परीक्षणों के मद्देनजर सूचना प्रदान नहीं की जा सकती है, जैसे कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, आनुपातिकता परीक्षण, प्रत्ययी संबंध, निजता के अधिकार का हनन और गोपनीयता के कर्तव्य का उल्लंघन आदि, आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(ई) और धारा 11(1) के प्रावधानों के संदर्भ में।"

14 मार्च की शाम को न्यायमूर्ति वर्मा के घर में आग लगने के बाद कथित तौर पर दमकलकर्मियों द्वारा बेहिसाब नकदी बरामद की गई थी। न्यायमूर्ति वर्मा और उनकी पत्नी उस समय दिल्ली में नहीं थे और मध्यप्रदेश में यात्रा कर रहे थे। आग लगने के समय घर पर केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां ही थीं। बाद में एक वीडियो सामने आया जिसमें आग में नकदी के बंडल जलते हुए दिखाई दे रहे थे।

इस घटना के बाद जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिन्होंने आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह उन्हें फंसाने की साजिश लगती है। इसके बाद सीजेआई ने आरोपों की आंतरिक जांच शुरू की और जांच के लिए 22 मार्च को तीन सदस्यीय समिति गठित की।

जस्टिस वर्मा की जांच करने वाली समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थीं।

इस समिति ने 25 मार्च को जांच शुरू की और 4 मई को सीजेआई खन्ना को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

सूत्रों के अनुसार, आंतरिक समिति की रिपोर्ट मिलने पर सीजेआई खन्ना ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने या महाभियोग की कार्यवाही का सामना करने को कहा।

हालांकि, चूंकि जस्टिस वर्मा ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया, इसलिए सीजेआई खन्ना ने जज को हटाने के लिए रिपोर्ट और उस पर जज के जवाब को भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया।

आरोपों के बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया है। उनसे न्यायिक कार्य छीन लिया गया है, जबकि आगे की कार्रवाई जारी है।

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