देश की पहचान को आकार देने में राज दरभंगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

Update: 2025-09-01 11:52 GMT

वेब डेस्क। दिल्ली में राजदरभंगा के इतिहास और राष्ट्र निर्माण में राजघराने के योगदान को लेकर एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में राज दरभंगा के योगदान को रेखांकित करते हुए दिल्ली में आयोजित इस संगोष्ठी में राष्ट्र निर्माण में राज दरभंगा के योगदान’ पर चर्चा हुई। इस संगोष्ठी में देश के प्रख्यात चिंतकों, नीति-निर्माताओं और सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज उपस्थित रहे। 

इस कार्यक्रम में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव मुख्य अतिथि के तौर ओर उपस्थित रहे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने दरभंगा राजघराने द्वारा सदियों से कला, संस्कृति, आध्यात्म और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय योगदान की सराहना की और इसके महत्व पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम का आयोजन राजदरभंगा के वर्तमान कुंवर , कुंवर कपिलेश्वर सिंह के द्वारा किया गया था और “राज दरभंगा धर्म संरक्षण से लेकर लोक कल्याण तक” नाम से प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक बिहार के जाने माने इतिहासकार तेजकर झा हैं।


उल्लेखनीय है कि भारत के स्वर्णिम इतिहास में राज दरभंगा का अपना एक अलग स्थान रहा है। सिर्फ़ बिहार ही नहीं देश की पहचान को आकार देने में राज दरभंगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । स्वतंत्रता के बाद, जब राज दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने बिहार भूमि सुधार कानून को न्यायालय में चुनौती दी, तो पटना हाईकोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया । इसके परिणामस्वरूप, जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 1951 में पहला संविधान संशोधन पारित किया, ताकि भूमि सुधार जैसे कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण मिल सके । कामेश्वर सिंह ने ‘संपत्ति के अधिकार’ की रक्षा के लिए इस कानून को चुनौती दी थी, जो भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना रही।

इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखकऔर इतिहासकार तेजाकर झा द्वारा रचित पुस्तक “राज दरभंगा : धर्म संरक्षण से लोक कल्याण” का विमोचन दत्तात्रेय होसबोले ने किया। यह पुस्तक राज दरभंगा वंश की राष्ट्र और सांस्कृतिक जीवन में ऐतिहासिक भूमिका को विस्तार से दर्शाती है। पुस्तक विमोचन का यह कार्यक्रम इसलिए भी खास रहा क्योंकि इसका आयोजन राज दरभंगा वंश के सबसे युवा उत्तराधिकारी कुमार अरिहंत सिंह के 18वें जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दत्तात्रेय होसबोले ने राज दरभंगा के महाराजाओं की दूरदर्शिता की सराहना की, जिन्होंने औपनिवेशिक काल के दौरान मंदिरों के पुनर्निर्माण एवं संरक्षण, उच्च शिक्षा और भारत की शास्त्रीय एवं सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में निरंतर योगदान दिया । उन्होंने लोगो से आह्वान किया कि वे दरभंगा राज की नीतियों और सुधारों से प्रेरणा लें, ताकि बिहार की ऐतिहासिक महत्ता को फिर से स्थापित किया जा सके। उन्होंने कहा, कि यूरोप में जहाँ यह धारणा रही है कि राजा केवल ऐश्वर्य और वैभव में जीते हुए प्रजा का शोषण करते रहे, वहीं भारत में राजा विष्णु का रूप माने गए हैं। कारण यह रहा कि भारत के राजाओं ने, जिनमें राज दरभंगा भी शामिल है, भगवान राम, राजा जनक और हरिश्चंद्र जैसे आदर्शों से प्रेरित होकर सदैव जनता के जीवन को समृद्ध करने के लिए विकास कार्य किए।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने सरकार की प्रतिबद्धता भी दोहराई कि मिथिला और बिहार की सांस्कृतिक एवं शैक्षिक गरिमा को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार प्रस्तर है और आगे भी ठोस प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस क्षेत्र की गौरवगाथा को सतत विकास और सांस्कृतिक पुनरुद्धार के माध्यम से जीवित रखना आवश्यक है । उन्होंने कहा, मिथिला प्राचीन काल से ही विद्या और अध्यात्म का केंद्र रहा है। राजा जनक से लेकर दरभंगा राज तक सभी ने इस परंपरा का संरक्षण, पोषण और प्रसार किया है। मिथिला ने न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरे भारत के सांस्कृतिक और दार्शनिक चिंतन को गहराई से प्रभावित किया है।

सभा को संबोधित करते हुए कुमार कपिलेश्वर सिंह ने दरभंगा परिवार के ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहीं जनकल्याणकारी एवं सांस्कृतिक योजनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि परिवार की प्राथमिकता सदैव परोपकार रही है और आने वाले समय में भी यह सेवा परंपरा जारी रहेगी।

उल्लेखनीय है कि 15वी शताब्दी में स्थापित दरभंगा राज ब्रिटिशकाल के दौरान सबसे बड़े राजघरानों में से एक रहा । दरभंगा राज, भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन के एक सशक्त संरक्षक के रूप में कार्य करता रहा । बाक़ी राजा युद्ध से अपनी शक्ति का प्रदर्शन किये लेकिन दरभंगा राज की हर पीढ़ी ने अपनी भुजाओं के साथ -साथ शिक्षा और संस्कृति से भी अपनी ख्याति प्राप्त की । इस राज घराने ने सनातन धर्म के संरक्षण, मैथिली भाषा के पुनरुद्धार, मंदिरों के जीर्णोद्धार और स्कूलों-कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और परंपरा और आधुनिक राष्ट्र-निर्माण के बीच एक सेतु का काम किया है।

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