Supreme Court: पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - हम पर अतिक्रमण करने का आरोप

Update: 2025-04-21 05:56 GMT

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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, उस पर कार्यपालिका के मामलों में अतिक्रमण का आरोप है। बीते कुछ दिनों से कोर्ट के द्वार दिए गए निर्णय को लेकर काफी विवाद हुआ था। पहले उपराष्ट्रपति ने अदालत के अनुच्छेद 142 तहत दिए गए निर्णय को लेकर नाराजगी जताई थी उसके बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की थी। इन्हीं मामलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की है।

दरअसल, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 के अधिनियमन के बाद हाल ही में हुई हिंसा के मद्देनजर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग करने वाली एक रिट याचिका से संबंधित मामले का उल्लेख किया। वकील विष्णु शंकर जैन ने न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष पेश होकर मामले का उल्लेख किया था। इस मामले की सुनवाई कल (22 अप्रैल) के लिए सूचीबद्ध है।

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पश्चिम बंगाल में आपातकाल लागू करने की बात पर कहा कि, "अर्धसैनिक बलों की तत्काल तैनाती की आवश्यकता है। यह मामला कल सूचीबद्ध है। मैंने एक अतिरिक्त आवेदन दायर किया है। इस पर न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा - 'आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को परमादेश जारी करें? वैसे भी हम पर कार्यपालिका में अतिक्रमण करने का आरोप है।'

उप राष्ट्रपति ने ये क्या कहा था :

राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उप राष्ट्रपति ने चिंता जताई थी। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे और "सुपर संसद" के रूप में कार्य करेंगे।

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार निर्धारित किया था कि, राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर ऐसे संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।

धनखड़ ने यहां कहा था कि, "हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई समीक्षा दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो वह कानून बन जाता है।"

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