Indus Water Treaty: सिंधु जल संधि स्थागित होने से क्या पानी को तरसेगा पाकिस्तान, जानिए भारत की वॉटर स्ट्राइक का असर?

सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे की व्यवस्था। जानें संधि के प्रावधान और भारत के अधिकार।

Update: 2025-04-23 18:32 GMT

Indus Water Treaty

Indus Water Treaty : नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थागित कर दिया गया है। यह भारत द्वारा अब तक का सबसे कठोर कदम माना जा रहा है। 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इंडस रिवर वॉटर ट्रीटी सस्पेंड किया जाना पाकिस्तान के लिए चिंता की बात है। इस संधि के सस्पेंड होने से पाकिस्तान पर क्या असर होगा यह जानने के लिए पढ़िए यह एक्सप्लेनेर।

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल का बंटवारा करती है। इस संधि के तहत पाकिस्तान निचला तटवर्ती राज्य बन गया है और भारत ऊपरी तटवर्ती राज्य। निचला तटवर्ती राज्य होने का मतलब है जहां नदी समाप्त होती है। वहीं ऊपरी तटवर्ती राज्य का मतलब है जहां नदी का उद्गम होता है।

जल बंटवारे और अधिकारों का समझौता

India-Pakistan water sharing

इस संधि के अनुसार, भारत को तीन पूर्वी नदियों - रावी, सतलुज और ब्यास - पर विशेष अधिकार प्राप्त हुए। यह लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) या सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल का लगभग 20% है। पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - पर नियंत्रण मिला, जो लगभग 135 MAF या कुल जल का 80% प्राप्त करती हैं। संधि के तहत भारत पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग घरेलू, गैर-उपभोग्य और कृषि उद्देश्यों के लिए कर सकता है। भारत को रन-ऑफ-द-रिवर (आरओआर) परियोजनाओं के माध्यम से जलविद्युत उत्पन्न करने का भी अधिकार है, जो डिजाइन और संचालन के लिए विशिष्ट मानदंडों के अधीन है।

संधि के अनुच्छेद IX में विवाद समाधान तंत्र शामिल है। यह एक तीन-स्तरीय प्रक्रिया है, जिसमें सबसे पहले, विवादों को स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) के माध्यम से उठाया जाता है। दोनों देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल होते हैं। फिर विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के माध्यम से और अंतिम उपाय के रूप में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के माध्यम से होती है।

अब समझिये सिंधु नदी प्रणाली :

सिंधु नदी

सरल शब्दों में एक नदी, उसकी सहायक नदियों के साथ, एक नदी प्रणाली कहलाती है। सिंधु नदी प्रणाली में छह नदियां शामिल हैं- सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। सिंधु और सतलुज पूर्ववर्ती नदियां हैं, जिसका अर्थ है कि वे हिमालय के निर्माण से पहले भी मौजूद थीं और तिब्बत क्षेत्र में उत्पन्न होने के बाद गहरी घाटियां बनाती थीं। अन्य चार नदियां - झेलम, चिनाब, रावी और ब्यास - भारत में उत्पन्न होती हैं।

सिंधु बेसिन चार देशों में फैला हुआ है, इनमें चीन, भारत, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान शामिल है। भारत में बेसिन लद्दाख और जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में फैला हुआ है। बेसिन का कुल जल निकासी क्षेत्र लगभग 3,21,289 वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 9.8% है।

सिंधु की पूर्वी नदियां :

- रावी नदी (95 किमी) हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के पास कुल्लू पहाड़ियों से निकलती है और पाकिस्तान में सराय सिद्धू में चिनाब में मिल जाती है।

- ब्यास नदी (354 किमी) हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के पास ब्यास कुंड (समुद्र तल से ऊँचाई: 4,000 मीटर) से निकलती है। यह कुल्लू घाटी से होकर बहती है और भारत में पंजाब में हरिके के पास सतलुज से मिलती है। हरिके बैराज 1952 में बनाया गया था, जो इंदिरा गांधी नहर प्रणाली के लिए पानी को मोड़ता है।

- सतलुज नदी (676 किमी) तिब्बत में मानसरोवर के पास राकस ताल (समुद्र तल से ऊँचाई: 4,555 मीटर) से निकलने वाली एक पूर्ववर्ती नदी है। रोपड़ के पास भारत में प्रवेश करने से पहले इसे तिब्बत में लंगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है।

पूर्वी नदियों के पानी का उपयोग करने के लिए भारत ने रावी पर रंजीत सागर बांध, सतलुज पर भाखड़ा बांध और ब्यास पर पोंग और पंडोह बांध बनाए हैं। इन नदियों पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं में ब्यास-सतलुज लिंक, माधोपुर-ब्यास लिंक और इंदिरा गांधी नहर परियोजना शामिल हैं। इन परियोजनाओं की मदद से भारत पूर्वी नदियों के लगभग 95% पानी का उपयोग करता है।

बता दें कि, पश्चिमी नदियों पर भारत की कुछ परियोजनाएं हैं जिन पर पाकिस्तान ने समय-समय पर आपत्ति जताई है। पश्चिमी नदियों पर भारत की महत्वपूर्ण परियोजनाओं में सलाल बांध परियोजना, बगलिहार जलविद्युत परियोजना, पाकल दुल परियोजना और किरू परियोजना शामिल हैं, जो सभी चिनाब नदी पर हैं, जबकि तुलबुल परियोजना जम्मू और कश्मीर में झेलम नदी पर स्थित है।

अब जानिए भारत के फैसले का पाकिस्तान पर क्या होगा असर :

- पाकिस्तान की 80% खेती योग्य भूमि - लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर - सिंधु प्रणाली के पानी पर निर्भर है।

- इस पानी का 93% हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की कृषि रीढ़ को शक्ति प्रदान करता है।

- यह नदी प्रणाली 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण करती है, जिसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की 61% आबादी शामिल है।

- प्रमुख शहरी केंद्र - कराची, लाहौर, मुल्तान - इन नदियों से सीधे अपना पानी खींचते हैं।

- तरबेला और मंगला जैसे जलविद्युत संयंत्र भी निर्बाध प्रवाह पर निर्भर हैं।

इसका प्रभाव तत्काल और भी अधिक गंभीर होगा :

- खाद्य उत्पादन ध्वस्त हो सकता है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

- शहरी जल आपूर्ति सूख जाएगी, जिससे शहरों में अशांति फैल जाएगी।

- बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, जिससे उद्योग और घर ठप हो जाएंगे।

- ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण चूक, बेरोजगारी और पलायन बढ़ सकता है।

भारत का यह फैसला पाकिस्तान की पस्त जीडीपी को 25 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकती है। इसका कारण है कि, सिंधु नदी प्रणाली का पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 25% का योगदान देती है।

भारत के रुख में एक बड़ा बदलाव

सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करते हुए जवाहरलाल नेहरू

भारत का यह निर्णय पाकिस्तान के प्रति उसके रुख में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। नई दिल्ली ने पहले भी पिछले हमलों के बाद IWT पर "फिर से विचार" करने की बात कही थी। यह पहली बार है जब संधि को औपचारिक रूप से स्थागित किया गया है। यह कदम पाकिस्तान को वहीं चोट पहुंचाता है जहां उसे सबसे अधिक नुकसान होता है। इनमें - कृषि, खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा शामिल है।

भारत अपनी आवंटित नदियों से 33 MAF का उपयोग मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कृषि और जलविद्युत के लिए करता है लेकिन सामान्य संधि शर्तों के तहत पाकिस्तान के प्रवाह को प्रभावित करने की इसकी क्षमता सीमित है। इंडस वाटर ट्रीटी को निलंबित करने से वह सीमा हट जाती है और अब नियंत्रण फिर से भारत के हाथों में है।

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