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'मतभेद होते थे मनभेद नहीं'

Update: 2019-03-14 06:40 GMT

अब पहले जैसे नहीं रहे चुनाव

ग्वालियर, न.सं.

समय बदलने के साथ-साथ अब चुनावी तौर-तरीका भी बदलता जा रहा है। एक जमाना था, जब चुनाव का रंग बच्चों से लेकर बूढ़ों तक पर चढ़ जाता था और लोग बड़े उत्साह के साथ चुनाव का हिस्सा बनते थे। पहले के चुनाव भले ही आज की तरह खर्चीले नहीं होते थे, लेकिन उस समय राजनीतिक दलोंं के कार्यकर्ता पूरे जोश के साथ चुनाव में पार्टी के प्रचार-प्रसार में अपनी जी जान लगा देते थे। गांव की चौपाल हो या शहर के चौराहे सभी जगह चुनावी चर्चा के ठिए बन जाते थे, लेकिन आज टीवी पर ही चुनावी चर्चा सिमटने लगी है। लोग हार-जीत के कयास भी फेसबुक और वॉट्सएप पर लगाने लगे हैं। आजादी के बाद देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव मेंं जो माहौल था, आज सब उसके विपरीत नजर आ रहा है। पिछले चार दशकों में चुनावी माहौल में जो बदलाव आया है, उसे देखकर अब उम्र दराज लोग भी हैरान हैं। कई चुनाव देख चुके पंडित रामबाबू कटारे का कहना है कि पहले चुनाव में लोगों में बैर भाव नहीं होता था। विचारों में भले ही मतभेद होता था, लेकिन मनभेद नहीं होता था। आज चुनावी रंंजिश होने लगी है। चुनाव आयोग की सख्ती से भी चुनाव के स्वरूप में बदलाव आया है।

पंडित कटारे बताते हैं कि 1976 के चुनाव में मतदान का एक अलग ही आनंद था। आज जैसी व्यवस्था भी नहीं थी। पहले इस तरह का प्रचार-प्रसार कहां होता था। प्रत्याशी घर-घर जाते थे। अपने लिए वोट की अपील करते थे। एक अच्छी बात थी कि नेता लगभग लोगों को नाम और चेहरे से पहचानते थे। उनके साथ कोई लाव लश्कर नहीं होता था। बड़े नेताओं के दर्शन बहुत नहीं हो पाते थे, पर उनकी बातों का असर होता था। लोगों तक वे बातें पहुंचती थीं। आज की तरह इतने दल भी नहीं हुआ करते थे। शांतिपूर्ण तरीके से मतदान होता था। अब तो चुनाव के मायने ही बदल गए हैं।

नारे बनाने के लिए होती थी प्रतियोगिता

पंडित कटारे बताते हैं कि एक समय वह भी था, जब लोगों में नारे बनाने की प्रतियोगिता थी। जिस पर पार्टी को जब नारा पसंद आता था तो उसी नारे के दम पर रैलियों में नारेबजी की जाती थी। ढोलक बजाकर भी प्रचार होता था। किसी भी दल के उम्मीदवार एक-दूसरे पर कीचड़ नहीं उछालते थे। 

पहले थी पूरी स्वतंत्रता

पंडित कटारे ने स्वदेश से चर्चा के दौरान बताया कि पहले पूरी स्वतंत्रता थी। कपड़ों के बैनर बनाए जाते थे, साथ ही टीन के स्टीकर दीवारों पर टांगकर उन पर गेरू से पुताई की जाती थी। पहले कोई सम्पत्तिकर विरूपण जैसे कोई नियम नहीं थे। वर्तमान में चुनाव आयोग ने कई नियम बना रखे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने खुद झंडे और पोस्टर बनाने का कार्य किया है, साथ ही झंडे व पोस्टरों को गांव तक पहुंचाया जाता था।

राजमाता ने तांगे पर की थी सभा

पंडित कटारे बताते हैं कि एक समय वह भी था, जब तांगे पर माइक लगाकर जोर-शोर से प्रचार किया जाता था। एक बार राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तांगे पर ही माइक थामकर लोगों को संबोधित किया था, साथ ही शहर में जगह-जगह नुकक्ड़ सभाएं भी होती थीं।

बच्चों को मिलती थी शाम को टॉफियां

पहले जब चुनाव प्रचार शुरू होता था तो रैलियों में बच्चों को झंडे व पोस्टर दिए जाते थे। शाम को सभी बच्चों को एकत्रित कर उन्हें उपहार स्वरूप टॉफियां वितरित की जाती थीं।

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