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अशोक सिंह की पदोन्नति या कुछ….... !

ग्वालियर ग्रामीण में सिर्फ डबरा में होना है चुनाव

Update: 2020-05-11 01:59 GMT

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि। ग्वालियर चंबल ही नहीं अपितु प्रदेश कांग्रेस में अशोक सिंह का नाम कद्दावर नेताओं में लिया जाता है। वह लोकसभा का चार बार चुनाव लड़ चुके। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के साथ कमलनाथ सरकार द्वारा जब इस क्षेत्र से पहली राजनीतिक नियुक्ति की बात आई थी तो वह अशोक सिंह के नाम रही थी। किंतु अब जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं है और ग्वालियर चंबल में 16 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना हैं, ऐसे में अचानक प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा श्री सिंह को ग्रामीण कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया है, जो किसी की समझ नहीं आ रहा है। यद्यपि इस नियुक्ति को अतिरिक्त प्रभार बताया गया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि श्री सिंह की यह पदोन्नति है या ....। क्योंकि बात तो यहां तक उछली थी कि वे प्रदेश अध्यक्ष की कतार में भी हैं।

श्री सिंह का परिवार गांधीवादी विचारधारा से जुड़ा रहा है। उनके दादा कक्का डोंगर सिंह वर्षों तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और उनके पिता स्व श्री राजेंद्र सिंह मंत्री के साथ प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। राजनीति विरासत में मिलने के बाद श्री सिंह का स्वभाव कुछ हटकर है, वे मिलनसार और सबके बीच उठने बैठने वालों में से हैं और वक्त में काम भी आते हैं। यही कारण है कि उनकी दिल्ली और भोपाल तक अच्छी पैठ हैं।उन्हें इस क्षेत्र में अच्छा खासा दखल रखने वाले सिंधिया के विरोध के बावजूद चार बार लगातार लोकसभा का टिकट मिला। यह बात किसी से छिपी नहीं है। लोकसभा में सफलता नहीं मिलने पर जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेश स्तरीय अपेक्स बैंक के प्रशासक की कुर्सी भी उन्हें ही मिली। जिससे तत्कालीन प्रदेश सरकार में उनका कद बढ़ा। श्री सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद यह माना जा रहा था कि अब ग्वालियर चंबल संभाग का पावर सेंटर 19 गांधी रोड रहेगा। यानीकि उपचुनाव के 16 टिकट उनकी सहमति से बटेंगे। इसके लिए तमाम दावेदार उनके निवास पर चक्कर भी लगा रहे हैं और मोबाइल पर भी संपर्क में हैं। किंतु यकायक उन्हें ग्रामीण कांग्रेस का अध्यक्ष पद दिया गया है, जिसमें मात्र एक विधानसभा डबरा ही आती है। जबकि इस पद के दावेदार पूर्व सांसद रामसेवक बाबूजी, साहब सिंह गुर्जर, केदार सिंह किरार और रंगनाथ तिवारी थे। इनमें से यदि किसी को ग्रामीण अध्यक्ष बना दिया जाता तो भी श्री सिंह उपचुनाव में समूचा प्रबंधन संभाल सकते थे। क्योंकि उनके कौशल प्रबंधन को प्रदेश भर में सराहा जाता रहा है। इस नियुक्ति के बाद अब यह कहा जा रहा है कि उपचुनाव की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ऐसा किया गया है। लेकिन यह बात हर किसी को हजम नहीं हो पा रही। इसमें कहीं न कहीं उच्च स्तरीय राजनीति की बू दिखाई दे रही है, जिसमें एक खेमे ने कहीं न कहीं ऊपर से इस नियुक्ति को कराकर श्री सिंह को अलग-थलग करने का प्रयास किया गया है। वैसे भी जिस डबरा सीट पर उपचुनाव होना है, वहां पर कांग्रेस से लगातार तीन बार से विजयी हो रही पूर्व मंत्री इमरती देवी अब भाजपा से चुनाव लड़ने वाली हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास कोई दमदार चेहरा उनके चुनौती देने के लिए नहीं है। ऐसे में जो कुछ भी होगा उसका सारा ठीकरा अशोक सिंह के सिर फोड़ने की तैयारी दिख रही है।

एक विधायक सहित आधा दर्जन है संपर्क में

सिंधिया द्वारा कांग्रेस सरकार का तख्तापलट किए जाने के बाद अभी तक प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। गुटीय संघर्ष के चलते यहां भविष्य में किसे क्या मिलेगा यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु इतना जरूर पता लगा है कि अभी भी कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक सहित सात से आठ वरिष्ठ नेता भाजपा के संपर्क में हैं। इसलिए अभी भी कांग्रेस को भाजपा से कहीं अधिक अपने ही दल में संघर्ष की ज्यादा जरूरत पड़ रही है।

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