दलित और महिला वर्ग के लोगों का मंत्री बनना कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा : प्रधानमंत्री

संसद की कार्यवाही दो बजे तक स्थगित

Update: 2021-07-19 08:21 GMT

नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में विपक्ष के हंगामें के बीच कहा कि कुछ लोगों को केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में दलित, महिलाओं और पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व रास नहीं आ रहा है। यह बात उन्होंने तब कही, जब वह अपनी नई मंत्रिपरिषद का परिचय करा रहे थे। हंगामें के चलते उन्होंने लिखित में इसे सदन के पटल पर रखा।

लोकसभा की कार्यवाही सोमवार सुबह 11 बजे नए सांसदों के शपथ ग्रहण से शुरु हुई। इसके बाद प्रधानमंत्री ने संसद का मंत्रिपरिषद से परिचय कराना चाहा तो विपक्ष की ओर से हंगामा शुरू हो गया। हंगामे के बीच प्रधानमंत्री ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि उन्हें नई मंत्रिपरिषद का परिचय नहीं कराने दिया जा रहा। उन्होंने कहा कि नई मंत्रिपरिषद में दलित, महिला, और अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वालों को बड़ा प्रतिनिधित्व मिला है। विपक्ष को इसपर उत्साह जताते हुए इसकी प्रशंसा करनी चाहिए थी। हालांकि विपक्ष इसपर हंगामा कर यह साबित कर रहा है कि उसे पिछड़ों, किसानों और ग्रामीण परिवेश से आने वालों का मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व रास नहीं आ रहा है।

संसद की स्वस्थ परंपरा के खिलाफ -

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने इसे संसद की स्वस्थ परंपरा के खिलाफ बताया। लोकसभा अध्यक्ष ने यहां तक कहा कि विपक्ष भारतीय लोकतंत्र और संसद की गरिमा गिरा रहा है। बाद में उन्होंने पिछले सत्र और इस सत्र के बीच इस दुनिया में नहीं रहे 40 विशिष्ट लोगों का विषय रखा। इसमें उन्होंने दिवंगत फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और ओलंपिक खिलाड़ी रहे मिल्खा सिंह का भी जिक्र किया। निधन संबंधित विषय रखे जाने के दौरान भी हंगामा जारी रखने पर बिरला ने कड़ी आपत्ती जताई, जिसके बाद महौल थोड़ी देर के लिए शांत हुआ। इसके बाद प्रश्नकाल में हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।

कांग्रेस को दोषी ठहराया -

प्रश्नकाल से पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री के मंत्रिपरिषद परिचय के दौरान हंगामे के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि नियम और पंरपरा के तहत मंत्रिपरिषद में होने वाले हर छोटे-बड़े फेर बदल की जानकारी सदन को दी जाती है। उनके सदन में रहते हुए पिछले 24 वर्षों में कभी इस परंपरा को तोड़ा नहीं गया। यह बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है और स्वस्थ संसदीय परंपरा के खिलाफ है।

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