99 वर्ष बाद हाईटेक हुई गोरखपुर की गीताप्रेस, जर्मनी-जापान की मशीनें प्रतिदिन छाप रहीं हजारों पुस्तकें

Update: 2022-03-09 14:34 GMT

गोरखपुर। देश में 99 सालों से हिन्दू धर्मग्रंथो को छापने वाली गीता प्रेस का कायापलट हो गया है। पारंपरिक और पुरानी तकनीक के बल पर प्रकाशन करने वाली प्रेस अब हाईटेक हो गई है। जापान और जर्मनी की आधुनिक मशीनों से सुसज्जित होने के बाद अब16 भाषाओं में 1800 से भी अधिक पुस्तकों की 50,000 कॉपियों को प्रतिदिन प्रकाशित किया जा रहा है।


बता दें की ये प्रेस हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों और धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए विख्यात है। यहां प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण,रामचरितमानस, महाभारत, सभी पुराण, वेद आदि प्रमुख है।

सनातन धर्म के प्रचार के लिए स्थापना - 


इस प्रेस की स्थापना आजादी के लिए चल रहे संघर्ष के दौरान साल 1923 में हुई थी। 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका ने इस प्रेस की स्थापना सनातन धर्म के प्रचार के उद्देश्य से की थी। उन्होंने प्रेस की स्थापना ऐसे समय में की जब देश में धर्म परिवर्तन का दौर अपने चरम पर था। ऐसे सनातन धर्म की रक्षा और उससे लोगों को जोड़े रखने के लिए आमजनों तक हिन्दू साहित्य को पहुंचाना बेहद जरुरी हो गया था। इस आवश्यकता को महसूस करते हुए जय दयाल गोयनका ने प्रेस को स्थापित किया।

2023 में मनाएगी शताब्दी वर्ष - 

साल 1927 में प्रेस का दायरा बढ़ने पर पोद्दार ने कल्याण नाम की एक मैगज़ीन प्रकाशित की। जिसने ने गीता प्रेस को देशभर में एक नई पहचान दी। साल 2023 में ये प्रेस अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रही है। वर्तमान में प्रेस में लगभग 400 कर्मचारी का कर रहे हैं। इनके काम करने के तरीके से हर कोई प्रभावित हैं। वो बिना शोर मचाये शांति से अपना काम करते हैं।

फायदे के लिए काम नहीं किया - 


गीता प्रेस ट्रस्ट में ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने एक न्यूज एजेंसी को प्रेस के आधुनिकीकरण की जानकारी दी। देवी दयाल ने बताया की "अभी हम 15 भाषाओं में लगभग 1800 पुस्तकें रोज छाप रहे है। किताबों की माँग इस उत्पादन से काफी अधिक है। हम लोगों की डिमांड पूरी करने के सभी कदम उठा रहे हैं। हमारा ध्यान लोगों को कम दामों में अच्छी किताब दिलाने पर है। ऐसा करने का हमारा पहले का इतिहास रहा है। हमने कभी फायदे के लिए काम नहीं किया। लोग इस बात से आश्चर्य भी करते हैं कि हम कम दाम में ऐसा कैसे कर पाते हैं।"

71.77 करोड़ कॉपियाँ बेच चुके - 

देवी दयाल ने आगे कहा, "हम पुस्तकों के दाम काबू में इसलिए रख पाए क्योकि हम कच्चा माल इंडस्ट्री से नहीं खरीदते थे। गीता प्रेस को कोई डोनेशन नहीं मिलता। हम इसे अपने दम पर चला रहे हैं। हम किताबों को सरल भाषा में इसलिए अनुवाद करते हैं जिस से वो लोगों को आसानी से समझ में आ जाए। साथ ही हम प्रिंट की क्वालिटी भी अच्छी रखते हैं जिस से लोगों को पढ़ने में आसानी हो। आज गीता प्रेस की पहुँच हर घर तक है। तब तक हम 71.77 करोड़ कॉपियाँ बेच चुके हैं। इसमें 1 लाख श्रीमद भगवत गीता, 1139 लाख रामचरित मानस, 261 लाख पुराण उपनिषद, महिलाओं और बच्चों के लिए उपयोगी पुस्तकें 261 लाख, 1740 भक्ति चैत्र और भजन माला और अन्य पुस्तकें 1373 लाख शामिल हैं।"

प्रसिद्ध पुस्तकें - 


गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में सबसे प्रसिद्ध कल्याण है। इसके हिंदी संस्करण को करीब 245000 लोगों ने सब्स्क्राइब कर रखा है। वहीँ अंग्रेजी संस्करण के लगभग 100000 नियमित पाठक है। जिन्होंने इसका सब्सक्रिप्शन लिया है। इसके अलावा प्रेस वर्तमान में कुल 1830 पुस्तकों का प्रकाशन करती है। जिसमें से 765 हिंदी और संस्कृत भाषा में है। साथ ही अन्य पुस्तकें मलयालम, तेलगु, गुजरती, तमिल, उड़िया, मराठी, उर्दू, असमिया, बंगाली, पंजाबी और अंग्रजी में हैं। गीता प्रेस ने 16 वीं सदी में अवधी भाषा में लिखी गई रामचरित मानस को नेपाली अनुवाद के साथ भी प्रकाशित किया है।

धार्मिक स्वरूप में तैयार कार्यालय - 

गीता प्रेस के कार्यालय को भी धार्मिक स्वरूप में तैयार किया गया है। इसके प्रवेश द्वार पर एलोरा की गुफाओं के चित्रों के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन की तस्वीर सजाई गई है।  इसके आलावा अन्य द्वारों पर चार धामों के चित्र बाए गए है। साथ ही द्वार पर 'सत्य बोलो और धर्म का पालन करो' उपदेश अंकित है, जोकि कार्यालय परिसर में कार्य करने वाले कर्मचारियों और आगंतुकों को सत्य बोलने और धर्म का आचरण करने की प्रेरणा देते है। इस कार्यालय का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था।  

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