रेलवे की जमीन पर कब्जा कर बना लिए "घर और इबादतगाह", हटाने गए तो "शाहीन बाग" जैसा मचाया उपद्रव
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने फैसले में बेहद साफ कहा है कि अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर रेलवे की जमीन खाली कराई जाए
हल्द्वानी। शहर की गफूर बस्ती में अतिक्रमण का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर लगभग 4365 मकान बना लिए है। जिनमें से अधिकांश मकान मुस्लिम समुदाय के लोगों के है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस अतिक्रमण को हटाने का आदेश दे दिया है। जिसका यहां रहने वाले लोग कड़ा विरोध कर रहे है। जब पुलिस प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पहुंची तो इन्होने अपने बच्चों और घर की महिलाओं को आगे कर दिया। यहां का प्रदर्शन और विरोध दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ हुए आंदोलन की याद दिला रहे है।
दरअसल, बीते सप्ताह मंगलवार 27 दिसंबर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने फैसले में बेहद साफ कहा है कि अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर रेलवे की जमीन खाली कराई जाए। इसके बाद लोगों ने हाईकोर्ट से अपील की, कि पहले उनकी रहने की व्यवस्था की जाए उसके बाद उन्हें वहां से हटाया जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने इस अपील को अस्वीकार करते हुए साफ कर दिया कि पहले अतिक्रमण हटाया जाए उसके बाद पुनर्वास पर विचार किया जाएगा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने यहां अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी। इसके बाद यहां रहने वाला मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतर आया और विरोध शुरू कर दिया। विरोध बढ़ता देख प्रशासन ने यहां रहने वाले लोगों को 10 जनवरी 2023 तक का समय दे दिया है।
शाहीन बाग जैसा प्रदर्शन -
इस प्रदर्शन की ख़ास बात ये है कि यहां विरोध का तरीका दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संसोधन कानून के विरोध में हुए आंदोलन के जैसा है। यहां भी मुस्लिम समुदाय के पुरुषों ने अपनी महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया है। वे पर्दे के पीछे रहकर सोशल मीडिया पर अतिक्रमण ना हटाने के पक्ष में एजेंडा चलाने में जुटे हुए है। वह सभी विक्टिम कार्ड खेलकर प्रदेश की सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे है। जिसे हवा देने का काम कांग्रेस नेता और विधायक कर रहे है। कांग्रेस नेता और दिल्ली की प्रमुख वकील आरफा खानम ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए यहां आकर फेसबुक पर लाइव किया था। उन्होंने कहा कि प्रशासन जानबूझकर इस क्षेत्र को निशाना बना रहा है क्योंकि इलाके की बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है।
कांग्रेस पहुंची सुप्रीम कोर्ट -
इसके अलावा स्थानीय कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश, राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, समाजवादी पार्टी के प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी और महासचिव शोएब अहमद प्रदर्शन का लगातार समर्थन कर रहे है। उन्होंने दिल्ली में पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। जिसमें 5 जनवरी 2023 को सुनवाई होनी है। कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
सोनिया गांधी के नारे करो या मरो से शुरू हुआ था शाहीन बाग -
खैर कांग्रेस नेताओं द्वारा हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में अतिक्रमणकारियों का समर्थन हैरान करने वाला नहीं है। साल 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों को भी कांग्रेस का समर्थ प्राप्त था। यहां सबसे गौरतलब है कि सोनिया गांधी ने 14 दिसंबर 2019 को एक रैली की थी जिसमें उन्होंने मंच से "करो या मरो" का आह्वान किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि यह सुनिश्चित करने के लिए बलिदान देना होगा कि सीएए लागू न हो। – जो नैरेटिव फैलाया जा रहा था, वह यह था कि सीएए एक तरह से मुस्लिम विरोधी था जबकि वास्तव में इसका मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं था, भारतीय मुसलमानों की तो बात ही छोड़ दें। ऐसे में हल्द्वानी में कांग्रेस नेताओं द्वारा आंदोलन को समर्थन देना एक बार फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी की विचारधारा पर सवाल खड़े कर रही है।
राहुल गांधी बताएं कैसा भारत जोड़ रहे -
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जो इस समय भारत जोड़ो यात्रा कर रहे है, उन्हें इस मुद्दे पर अपने नेताओं से प्रश्न जरूर पूछना चाहिए की आखिर वे हाईकोर्ट के आदेश का विरोध क्यों कर रहे है ? लेकिन उनका मौन उनकी सोच और आंतरिक सहमति बताने के लिए काफी है। जबकि रेलवे इस मामले में स्पष्ट कर चुका है की ये जमीन उसके लिए काफी महत्वपूर्ण है। रेलवे की सुविधाओं के विस्तार के लिहाज से इस जमीन की उसे जरुरत है। वर्तमान सरकार पर देश में विकास के नाम पर लोगों को धोखा देने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर वे हल्द्वानी में क्यों विकास के क्रम में रोड़ा बन रहे है?क्या उनके लिए देश के विकास से ज्यादा जरुरी देश में हिंदू-मुसलमान की राजनीति कर अपना वोट बैंक बनाना जरुरी है?
मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति
इन सवालों का जवाब साल 2022 के विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी सीट पर नजर आया था। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सुमित हृदयेश ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ. जोगेंदर पाल सिंह रौतेला को 7814 वोटों के मार्जिन से हराया था। इस चुनाव की ख़ास बात ये थी कि डॉ जोगेंद्र पाल कुल 14 राउंड की मतगणना में से पहले आठ राउंड तक कांग्रेस उम्मीदवार से आगे रहे थे। इसके बाद मुस्लिम बहुल इलाका शुरू होने के साथ ही यहां बाजी 360 डिग्री पलट गई थी और कांग्रेस उम्मीदवार सुमित हृदयेश भाजपा प्रत्याशी से आगे निकलते चले गए थे। जो अंतर उनकी जीत में तब्दील हुआ। बता दें की कांग्रेस को उम्मीदवार को निर्णायक बढ़त गफूर बस्ती और बनभूलपुरा क्षेत्र से मिली थी। ये वहीँ क्षेत्र है जिसे रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर लोगों को बसाया गया है। इसलिए कांग्रेस यहां मुस्लिमों की हमदर्द बनी हुई है क्योंकि वह अच्छे से जानती है कि चुनाव जीतना है तो मुस्लिम जरुरी है।
ऐसे हुआ जमीन पर अतिक्रमण -
बता दें की साल साल 1975 में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण की शुरुआत हुई थी। पहले यहां कच्चे मकान और झुग्गियां बनाई गई, जो बाद में समय के साथ पक्के मकानों में बदल गई। बाद में यहां मकानों की जगह इबादतगाहों ने ले ली। रेलवे इस जमीन को वापिस पाने के लिए लगातार प्रशासन से गुहार लगाता रहा लेकिन सपा और कांग्रेस की सरकारों ने कोई सुनवाई नहीं की। साल 2016 में रेलवे सुरक्षा बल ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ पहला केस दर्ज करवाया, लेकिन तब तक लगभग 50 हजार लोग अवैध तौर पर वहाँ रहना शुरू कर चुके थे। लंबे समय तक चले इस मुकदमे में कब्जेदार जमीन पर कब्जे का कोई वैधानिक सबूत नहीं दे सके। इसके बाद हाईकोर्ट ने पूरी जमीन खाली कराने के निर्देश दे दिए है।