अहिंसा की नई और सार्थक परिभाषा गढ़ते डॉ मोहन भागवत

प्रसंगवश - अतुल तारे

Update: 2025-04-28 06:21 GMT

Photo - Dr Mohan Bhagwat Ji 

निसिचर हीन करहु महि, भुज उठाई पन कीन्ह।

यह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का संकल्प है। श्रीराम, स्वयं ही धर्म का प्रतीक हैं। एक प्रसंग है, वाल्मीकि से एक बार मुनियों ने पूछा, हम धर्म की ही पूजा करना चाहते हैं। हमको बताइए धर्म की मूर्ति कैसी होगी? वाल्मीकि दो क्षण विचार करके कहते हैं, रामो विग्रहवान धर्म:। राम की पूजा कीजिए, वही धर्म हैं। राम का ही प्रण था असुरों का समूल नाश। यही धर्म त्रेता में श्रीराम का था, यही द्वापर में श्री कृष्ण का। वह भी जय घोष करते हैं-यदा-यदा ही धर्मस्य।

कलियुग में यही धर्म शिवाजी का, वीर महाराणा प्रताप का और स्वाधीनता सेनानियों का था। शनिवार को दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत की भी यही ऋषि वाणी थी। समय आ गया है, बल्कि यूं कहें कि काफी विलंब हो चुका है कि दे दी हमें आजादी, बिना खड्ग बिना ढाल के गीत को हम विस्मृत करें। स्वयं साबरमती के संत ने भी यह कभी नहीं कहा। हमने एक कायर, रीढ़ विहीन पीढ़ी तैयार की। परिणाम सामने है।

‘हिंदू मैनिफेस्टो’ पुस्तक के विमोचन के अवसर पर डॉटर मोहन भागवत के एक-एक शद को न केवल भारत की प्रज्ञा को, अपितु विश्व को रेखांकित कर पढऩा चाहिए। डॉटर भागवत ने विकास के मॉडल का उल्लेख करते हुए कहा है कि समझ सब रहे हैं, बस कहने का साहस नहीं है। पूँजीवादी मॉडल का प्रतीक अमेरिका 9/11 के बाद कांप रहा है। सोवियत संघ अब इतिहास है। रशिया, यूक्रेन जैसे छोटे से देश के साथ संघर्षरत है। यूरोप की अपनी व्यथा है। खाड़ी के देश उबल रहे हैं। निगाह, भारत की ओर है। ऐसे में भारत को ही नेतृत्व करना है इसलिए उसे और सबल और समर्थ होना पड़ेगा। इसीलिए डॉटर भागवत ने वो कहा जो परशुराम ने सुदर्शन चक्र देते हुए कृष्ण से कहा था, या समर्थ ने शिवाजी से, कि आततायी का समूल नाश हो, इस समय यही एकमात्र धर्म है।

पहलगाम की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से देश के अंदर भी जो कीटाणु बम है, उनकी भनभनाहट भी सामने आई है। यह पाकिस्तानी परमाणु बम से भी अधिक खतरनाक है। डॉटर भागवत ने एक तरह से राज धर्म का संकेत देश के नेतृत्व को दिया है। अहिंसा की एक सार्थक और सही परिभाषा दी है। उपद्रवियों को, असुरों को मारने और कुचल डालने में ही विश्व का कल्याण है और उनका स्वयं का भी। रावण की मुति का मार्ग भी उसके वध में ही था। यही राम ने त्रेता में किया और आज यही देश के नेतृत्व को करना है। और जब अपेक्षा नेतृत्व से हो तो गिलहरी का भी योगदान है और वानर का भी। भालू का भी। यह सब प्रतीक हैं। राम ने जो सज्जन शति वन में थी, बिखरी हुईं थी, उनको एकत्र किया, हम यह भी देखते हैं। वृद्ध जटायु ने तो संघर्ष भी किया, पर ऋष्यमूक पर्वत पर बैठी सज्जन शतियों (सुग्रीव समूह) ने आकाश मार्ग से जाते रावण का प्रतिकार नहीं किया। बस, सीता के आभूषण संभाल कर रख लिए और बाद में राम को दिए। जब-जब शति का विस्मरण होगा, तब-तब रावण सीता का हरण ही करेगा।

आज यही हो रहा है। अत: सरकार को तो निर्णय करना ही होगा। आइए, हम भी अपनी तैयारी का मूल्यांकन करें। न कि धर्म युद्ध की घड़ी में बलराम की तरह पलायन कर तटस्थता का अपराध करें। यह समय दुर्योधन की जंघा पर प्रहार का भी है और मेघनाथ की माया के संहार का भी

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