अरावली विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञानः 100 मीटर वाली परिभाषा पर कल सुनवाई
अरावली को 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों तक सीमित करने पर विवाद। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया, कल होगी अहम सुनवाई।
रावली पर्वतमाला को लेकर छिड़ा विवाद एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया है. जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली मानने की नई परिभाषा पर सवाल उठ रहे हैं और इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अब स्वतः संज्ञान लिया है। मामले की सुनवाई सोमवार को होगी, चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली वैकेशन बेंच इस पर विचार करेगी। बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल होंगे।
वैकेशन बेंच में पांचवें नंबर पर सूचीबद्ध मामला
सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन कोर्ट में यह केस पांचवें नंबर पर सूचीबद्ध है. पर्यावरण से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर कोर्ट केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों से जवाब मांग सकता है । ऐसे संकेत हैं कि सुनवाई के दौरान नए अंतरिम निर्देश भी जारी हो सकते हैं । राजस्थान-हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में फैली अरावली पर्वतमाला को लेकर इस फैसले के बाद से ही राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस तेज है।
क्या है पूरा अरावली विवाद
20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति की सिफारिश को स्वीकार किया था. इस सिफारिश में कहा गया था कि केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला माना जाए।इससे पहले 1985 से चले आ रहे गोदावर्मन केस और एमसी मेहता मामले में अरावली को व्यापक संरक्षण मिला हुआ था नए फैसले के बाद आशंका जताई जा रही है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन और निर्माण का रास्ता खुल सकता है।
पर्यावरणविद क्यों नाराज़ हैं?
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि अरावली रेंज में कई ऐसी पहाड़ियां हैं. जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से कम है लेकिन वे पारिस्थितिकी संतुलन के लिए बेहद अहम हैं । अगर इन इलाकों में खनन की इजाजत दी गई. तो पूरी पर्वतमाला का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है । इसी वजह से राजस्थान हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं।
मामले के तूल पकड़ने के बाद केंद्र सरकार ने अरावली रेंज में नए खनन पट्टों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. 24 दिसंबर को केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साफ किया कि पूरी अरावली श्रृंखला में कोई नया माइनिंग लीज नहीं दिया जाएगा।राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए गए हैं कि अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह के नए खनन पट्टे जारी न किए जाएं। अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं जहां यह तय हो सकता है कि अरावली की परिभाषा बदलेगी या पर्यावरण संरक्षण को लेकर पुरानी व्याख्या ही कायम रहेगी।