फिल्मी गपशप : मध्यप्रदेश के कलाकारों को फिल्मों में मौके
-विवेक पाठक स्वतंत्र पत्रकार
मध्यप्रदेश में इससे पहले स्त्री, पान सिंह तोमर, टॉयलेट एक प्रेम कथा, पेडमैन जैसी कम बजट की फिल्मों की मुरैना, भोपाल, महेश्वर, चंदेरी सहित शहरों में शूटिंग हुई है। इन फिल्मों की वजह से मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्मारक पर्यटन स्थल से लेकर बीहड़ तक देश दुनिया में देखे गए हैं। प्रदेश की भाषा बोली से लेकर स्थानीय रहन सहन पहनावा, खानपान ऐसी फिल्मों से प्रचारित होता है।
शहर की वे प्रतिभाएं जो मुंबई की भागदौड़ में काम पाने से पीछे रह जाती हैं वे लोकल में शूटिंग के वक्त सबसे पहले मौका पाती हैं। फिल्मों की कहानियों में शहर विशेष की गहरी झलक के लिए अब स्थानीय कलाकार निर्देशक की पहली पसंद होते हैं। फिल्म अगर चंबल में फिल्माई जा रही है तो ब्रज भाषा के यादगार संवाद बनाने लोकल कलाकारों के खूब स्क्रीन टेस्ट होते हैं। ग्वालियर में पूर्व में हुई फिल्मों की शूटिंग ने कई शहरी कलाकारों को सिने जगत और सीरियल तक पहुंचाया है। नारायण सिंह भदौरिया, निशा शर्मा, प्रिया दुबे, प्रशांत चव्हाण, समेत कई वरिष्ठ व शहरी कलाकार हैं जिन्हें मुंबई सिने जगत ने ग्वालियर में ही काम का मौका दिया। ये बेहतर वातावरण मुंबई सिनेमा में रच रहे नए सिनेमा के कारण है। अब फिल्में दो तरह की बनाई जा रही हैं एक नामी कलाकारों के स्टारडम के भरोसे। दूसरी कहानी के भरोसे। कहानी के भरोसे वाली फिल्मों का बजट कम होता है मगर पिछले कुछ सालों में ऐसी फिल्में नामी निर्देशकों को भी पानी पिलाते नजर आ रही हैं। इन फिल्मों की असल नायक इनकी बेहतर तरीके से गढ़ी गई कहानी ही होती है। मध्यप्रदेश में इससे पहले स्त्री, पान सिंह तोमर, टॉयलेट एक प्रेम कथा, पेडमैन जैसी कम बजट की फिल्मों की मुरैना, भोपाल, महेश्वर, चंदेरी सहित शहरों में शूटिंग हुई है। इन फिल्मों की वजह से मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्मारक पर्यटन स्थल से लेकर बीहड़ तक देश दुनिया में देखे गए हैं। प्रदेश की भाषा बोली से लेकर स्थानीय रहन सहन पहनावा, खानपान ऐसी फिल्मों से प्रचारित होता है। सिनेमा का देश भर में विकेन्द्रीकरण पर्यटन और रोजगार की दिशा में अप्रत्यक्ष रुप में काफी योगदान दे सकता है। मध्यप्रदेश सरकार को न केवल मुंबई सिनेमा का प्रदेश में स्वागत करना चाहिए बल्कि प्रदेश के कलाकारों को उन फिल्मों में अधिक से अधिक मौका मिले इसके लिए संवाद भी करना चाहिए। सरकारें सिर्फ दफ्तरों में बाबू बनाकर ही रोजगार नहीं दे सकतीं। हर हुनर को उसके कद्रदान की नजर में लाकर भी रोजगार के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। हिन्दुस्तान के दिल में अदाकार भी रहते हैं और अब फिल्में भी हिन्दुस्तान के दिल में मध्यप्रदेश के शहरों की ओर आगाज कर रही हैं। ऐसे में फिल्मों के जरिए मध्यप्रदेश की नाट्य रंगमंच और अभिनय से जुड़ी प्रतिभाओंं को मौका मिलेगा ऐसी निश्चित ही आशा की जानी चाहिए।
पिछले दिनों कलंक फिल्म की शूटिंग मध्यप्रदेश में सबसे पहले चंदेरी से प्रारंभ हुई। किसी फिल्म की शूटिंग अपने प्रदेश और शहर में होने के कई फायदे हैं। जो बड़ा फायदा दिखता है वो तो असल में सबसे छोटा फायदा है। मतलब अपने शहर में शूटिंग देखने का। अरे भई भले ही अपने शहर में फिल्म की शूटिंग हो मगर अपने अति उतावले शहरवासियों के पिछले अनुभव उन्हें पुलिस की सख्ती का एहसास करा जाते हैं। शूटिंग के वक्त ज्यादा हलचल के कारण काम में दखल होता है सो पहरे में शूटिंग होती है। सब कुछ अखबारों और मीडिया तक सिमटा रहता है मगर बाकी फायदे शहर को गुलजार कर जाते हैं। 200 से 300 सदस्यीय यूनिट जब शहर में ठिया जमाती है तो पूरे शहर को तरह-तरह का कारोबार मिलता है। होटल, टैक्सी, रेस्टोरेंट गुलजार हो जाते हैं। निजी सिक्योरिटी एजेंसी से लेकर स्थानीय कलाकारों और एजेंटों को भरपूर काम मिलता है।
सिनेमा में करियर की चाहत रखने वालों के लिए प्रदेश की प्रतिभाओं के लिए इन दिनों संभावनाअें का वक्त है। मुंबई का सिनेमा हिन्दुस्तान के दिल मध्यप्रदेश के भी बार-बार लगातार चक्कर लगा रहा है। एक पूरी यूनिट इन दिनों कलंक की शूटिंग के लिए मध्यप्रदेश में आयी हुई है। ग्वालियर किले के मानमंदिर महल पर आलिया भट्ट पतंग उड़ाते हुए फिल्मायी गईं तो अब यूनिट ने अशोक नगर में जिले के कसीदाकारी के लिए भारत प्रसिद्ध चंदेरी में डेरा डाल दिया है। स्थानीय कलाकार मुंबई सिनेमा का हिस्सा अपने ही शहर में बन रहे हैं। वाह क्या बात है! सचमुच देखकर मजा आ गया!