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संघ की प्रेरणा से अलख जगाते सेवा कार्य

Update: 2017-05-09 00:00 GMT

तेरा वैभव अमर रहे मां......



राष्ट्रोत्थान और व्यक्ति निर्माण के लिए समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने सेवा भावी कार्यों के चलते समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को अपने साथ खड़ा कर रहा है, वहीं सम्पूर्ण समाज को प्रेरणा देने का काम कर रहा है। इस प्रेरणा को अंगीकार करने वाले लोगों ने सत्य का साक्षात्कार किया और इसके बाद या तो सीधे संघ के माध्यम से सामाजिक उत्थान के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया या फिर संघ कार्यों से प्रेरणा प्राप्त कर नवोत्थान की दिशा में अग्रसर हो गए। वास्तव में भारत की जनता इस बात को भली भांति जानती है कि संघ के कार्य राष्ट्र के प्रति समर्पित होते हैं। एक विद्वान ने तो यहां तक कहा है कि अगर भारत का प्रत्येक नागरिक संघ के कार्य को करने लगे तो देश में किसी प्रकार की कोई समस्या ही नहीं रहेगी। संघ का विरोध केवल वही लोग करते हैं जो भारत को मजबूती के रुप में देखना नहीं चाहते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिसने भी समीप से देखा है, उसने फिर संघ का साथ कभी नहीं छोड़ा।

संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य को यज्ञ कुंड की समिद्या की तरह से करते हैं। देश भर में चाहे वह रेल दुर्घटना हो, भूकंप हो या फिर बाढ़ के हालात हों, सभी स्थानों पर संघ के स्वयंसेवकों ने अपने आपको समिद्या की भांति ही प्रस्तुत किया है। संघ की सेवा में किसी के प्रति कोई भेद भाव नहीं, सबको अपना मानकर ही सर्व समर्पण का भाव ही प्रधान पक्ष होता है।

सेवा भारती के माध्यम से संघ ने उपेक्षित बस्तियों में रहने वाले नागरिकों का जीवन स्तर ऊपर उठाया है। वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। सार्वजनिक तौर पर भले ही संघ के इन कार्याें की चर्चा नहीं होती होगी, पर संघ का स्वयंसेवक और सेवा कार्यों से लाभान्वित हुआ समाज इसके बारे में चर्चा अवश्य ही करता है। संघ के ऐसे राष्ट्र हितैषी कार्य जिनकी चर्चा बहुत कम होती है। ऐसा संगठन जो सर्वे भवन्तु सुखिन: की बात करता है। जो धरती को माँ मानता है। उसके प्रमुख उद्घोषों में यह भी है कि....

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।


अगर इतिहास में झांक कर देखा जाए तो यही ज्ञात होता है कि शायद वामपंथी विचारधारा के समर्थकों की कांग्रेस सरकार के साथ एक मौन सहमति थी कि तुम सत्ता की तरफ मत देखना, हम संस्था की तरफ नहीं देखेंगे। इन्होंने संस्थाओं में बने रहने के लिए क्या-क्या नहीं किया, उन्होंने देश के सबसे ईमानदार और हितैषी संगठन को आतंकी तक कहा, वामपंथी वर्ग अपने स्वहित के लिए अनर्गल आरोप लगाता आया है। जबकि संघ हमेशा कार्य करने में विश्वास करता है न कि ढिंढोरा पीटने में। पूरा देश यह जानता है कि देश में कहीं भी आपदा-विपदा आये तो नि:स्वार्थ सेवा के लिए संघ सबसे पहले हाजिर रहता है। लेकिन, संघ की देशभक्ति को देश के तथाकथित सेकुलरों और वाम विचारधारा के पोषकों द्वारा अपने दुष्प्रचार की धुंध में छिपाने का ही यत्न किया जाता रहा है। संघ द्वारा कई ऐसे राष्ट्र हितैषी कार्य हैं जिनकी उपेक्षा की जाती रही है।

चित्रकूट का कायाकल्प

भगवान श्रीराम के पावन चरणों का सानिध्य प्राप्त करने वाला चित्रकूट भारतीय समाज के लिए वंदन की भूमि है। इसी भूमि पर भगवान राम ने जंगल में घूमकर अपने दिन व्यतीत किए और वनवासी समाज के बीच नव चेतना का संचार किया। भगवान राम के इसी काम को करने के लिए राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख ने अपने आपको प्रस्तुत कर दिया। नानाजी देशमुख ने आसपास के क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों को जागृत कर जो आलोक बिखेरा है, उसकी चमक अब स्पष्ट रुप से दिखाई देने लगी है। सांस्कृतिक भारत में जिस आदर्श गांव की कल्पना की गई है, उसका साक्षात्कार हमें चित्रकूट की धरा पर हो रहा है।

चित्रकूट ऐसी जगह है, जिसके बारे में तुलसी दास जी ने लिखा है कि जा पर विपदा परत है, वह आवत यहि देश। ऐसे चित्रकूट को वास्तव में चित्रकूट बनाने के लिए राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की शरणस्थली, महाकवि तुलसी की प्रेरणास्थली चित्रकूट, भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक जगत का आदिस्थल है।

दीनदयाल शोध संस्थान ने चित्रकूट के आस-पास के 500 गांवों का सामाजिक पुनर्रचना एवं समय के अनुरूप नवरचना के लिए चयन किया। दीनदयाल शोध संस्थान ने सन 2009 तक सभी 500 गांवों को स्वावलम्बी बनाने का पांच सूत्रीय लक्ष्य रखा था-

(1) कोई बेकार न रहे
(2) कोई गरीब न रहे
(3) कोई बीमार न रहे
(4) कोई अशिक्षित न रहे
(5) हरा-भरा और विवादमुक्त गांव हो।

ग्राम विकास की इस नवरचना का आधार है समाजशिल्पी दम्पत्ति, जो पांच वर्ष तक गांव में रहकर इस पांच सूत्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम करते हैं। इनका कार्य करने का तरीका इतना प्रेरणादायी है कि पूरे देश को सीखना चाहिए। ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के अभिनव प्रयोग के लिए नानाजी ने 1996 में स्नातक युवा दम्पत्तियों से पांच वर्ष का समय देने का आह्वान किया। पति-पत्नी दोनों कम से कम स्नातक हों, आयु 35 वर्ष से कम हो तथा दो से अधिक बच्चे न हों।

इस आह्वान पर दूर-दूर के प्रदेशों से प्रतिवर्ष ऐसे दम्पत्ति चित्रकूट पहुंचने लगे। चयनित दम्पत्तियों को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान नानाजी का मार्गदर्शन मिलता रहा। नानाजी उनसे कहते थे- राजा की बेटी सीता उस समय की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में 11 वर्ष तक रह सकती है, तो आज इतने प्रकार के संसाधनों के सहारे तुम लोग पांच वर्ष क्यों नहीं रह सकती? इस तरह के स्फूर्तिदायक वचनों ने वहां की जनता में उत्साह का संचार किया और आज जो चित्रकूट है, वह सबके सामने है। इसी तरह गोंडा भी।

- संस्कृत भारती

संस्कृत के उत्थान हेतु संघ का यह प्रकल्प पूरी निष्ठा से प्रयासरत रहा और अब भी है। दिल्ली जैसी जगह में जहां 500 रुपये में कोई 15 दिनों की चाय भी नहीं पिलाता है, वहां पर यदि कोई आपको रहने, खाने, नहाने, चाय-नाश्ते आदि हर चीज की व्यवस्था कर दे तो उसे आप क्या कहेंगे! वह भी आपकी पढ़ाई के लिए। संस्कृत भारती महीने की हर पहली तारीख से 15 तक और 16 से 30/31 तक संस्कृत सिखाने का काम करती है। यह शाखा न सिर्फ दिल्ली में बल्कि बेंगलोर आदि कई शहरों में चलती है, जहाँ किसी भी जाति, धर्म, समुदाय का व्यक्ति सरल संस्कृत सीख सकता है। इस संस्थान की प्रशंसा 2012 में यूपीएससी की परीक्षा में 8वीं रैंक पाने वाली आईएएस कुमारी वंदना सिंह चौहान ने भी की थी।

-वनवासी कल्याण आश्रम

भारत के वनों व पर्वतों में रहने वाले हिन्दुओं को अंग्रेजों ने आदिवासी कहकर शेष हिन्दू समाज से अलग करने का षड्यन्त्र किया। दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी यही गलत शब्द प्रयोग जारी है। ये वही वीर लोग हैं, जिन्होंने विदेशी मुगलों तथा अंग्रेजों से टक्कर ली है, पर वन-पर्वतों में रहने के कारण वे विकास की धारा से दूर रहे गये। इनके बीच संघ के स्वयंसेवक वनवासी कल्याण आश्रम नामक संस्था बनाकर काम करते हैं। इसकी 29 प्रान्तों में 216 से अधिक इकाइयां हैं।  इनके द्वारा शिक्षा, चिकित्सा, खेलकूद और हस्तशिल्प प्रशिक्षण आदि के काम चलाये जाते हैं। ज्ञातव्य है कि दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स-2010 में ट्रैक फील्ड में पहला पदक और एशियन खेलों में 10,000 मीटर में रजत पदक, 5,000 मीटर में कांस्य पदक जीतने वाली कविता राऊत वनवासी कल्याण आश्रम संस्था से ही निकली हैं। आंकड़ों के अनुसार संघ की यह संस्था फिलहाल देश के लगभग 8 करोड़ वनवासी लोगों के लिए कार्य कर रही है।

 सेवा भारती

- सेवा भारती जैसी संस्था के रूप में संघ स्वास्थ्य के क्षेत्र में सक्रिय रूप से देश के दूर-दराज के उन क्षेत्रों तक पहुंच के कार्य कर रहा है, जहां सरकारी मिशनरी भी ठीक ढंग से नहीं पहुंची है।

- भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ के द्वारा मजदूरों और किसानों के लिए भी संघ सदैव संघर्ष करता रहा है।

इनके अलावा संघ के और भी तमाम प्रकल्प हैं, जिनके माध्यम से वो देश के कोने-कोने तक न केवल मौजूद है, बल्कि देशवासियों के लिए अथक रूप से कार्य भी कर रहा है। निस्वार्थ भाव एवं लगन के द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों ने उसे सेवा क्षेत्र में अपनी एक अलग व अग्रणी पहचान दिलाई है। पूरी दुनिया को पांच क्षेत्रों (अमरीका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा एशिया) में बांटकर, जिन देशों में हिन्दू हैं, वहां साप्ताहिक, मासिक या उत्सवों में मिलन के माध्यम से उनके हित की दिशा में काम हो रहा है।

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