राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस: आज का अनुशासन, कल की राष्ट्रीय सुरक्षा

14 दिसंबर राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के विशेष संदर्भ में एक यूनिट बिजली बचाना, सवा यूनिट उत्पादन के बराबर है

Update: 2025-12-13 18:00 GMT

 ऊर्जा संरक्षण आज केवल पर्यावरण या घरेलू बिजली बिल का विषय नहीं रह गया है। यह अब राष्ट्र की आर्थिक स्थिरता, रणनीतिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता से जुड़ा हुआ प्रश्न बन चुका है। 14 दिसंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस हमें यह समझने का अवसर देता है कि ऊर्जा की बचत भी ऊर्जा उत्पादन का ही एक प्रभावी और जिम्मेदार स्वरूप है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में ऊर्जा संरक्षण भारत के लिए एक विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्य राष्ट्रीय नीति बन चुका है। ऊर्जा संरक्षण हम सब की जिम्मेदारी है याद रखिये - एक यूनिट बिजली बचाना, सवा यूनिट उत्पादन के बराबर है।

ऊर्जा संरक्षण का मूल मंत्र

सरल शब्दों में कहा जाए तो कम संसाधनों में अधिक उत्पादन और कम प्रदूषण में अधिक विकास” यही ऊर्जा संरक्षण का मूल दर्शन है। यह दर्शन हमें बताता है कि विकास और पर्यावरण परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि संतुलन के साथ आगे बढ़ने पर एक-दूसरे को सशक्त करते हैं। 

एक दूरदर्शी शुरुआत

भारत में ऊर्जा संरक्षण की संगठित शुरुआत वर्ष 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के लागू होने के साथ हुई। इसी अधिनियम के अंतर्गत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency - BEE) का गठन किया गया। 14 दिसंबर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के रूप में चिह्नित करने का उद्देश्य स्पष्ट था, सीमित ऊर्जा संसाधनों और निरंतर बढ़ती मांग के बीच संतुलन स्थापित करना। यह पहल उस दूरदर्शी सोच को दर्शाती है, जिसमें दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दी गई।

उद्देश्य: बचत से समृद्धि की ओर

ऊर्जा संरक्षण दिवस का उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना नहीं, बल्कि व्यवहार में परिवर्तन लाना है। इसके प्रमुख लक्ष्यों में उद्योगों, संस्थानों और आम नागरिकों में ऊर्जा साक्षरता बढ़ाना, कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित कर पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करना तथा आयातित ईंधन (Imported Fuel) पर निर्भरता कम कर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ना शामिल है। ऊर्जा की प्रत्येक बचाई गई इकाई आर्थिक संसाधनों की बचत के साथ-साथ पर्यावरणीय सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है।

वर्तमान उपलब्धियां: बदलाव की ठोस तस्वीर

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। उजाला योजना के अंतर्गत करोड़ों LED बल्बों के वितरण से बिजली की खपत में भारी कमी आई है, जिससे आम उपभोक्ता का बिजली बिल भी घटा है। वहीं, उद्योगों के लिए लागू की गई PAT योजना (Perform, Achieve, Trade) ने ऊर्जा दक्षता को प्रतिस्पर्धी और मापनीय बनाया है। इन प्रयासों ने यह सिद्ध किया है कि सही नीति और तकनीक मिलकर बड़े स्तर पर परिवर्तन ला सकती है।

शासकीय प्रयास: नीति से क्रियान्वयन तक

भारत सरकार ने ऊर्जा संरक्षण को केवल कागज़ी नीति तक सीमित नहीं रखा है। स्टार-रेटिंग प्रणाली, ऊर्जा दक्ष भवन संहिता (ECBC), राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन और राष्ट्रीय सौर मिशन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से ऊर्जा बचत को संस्थागत रूप दिया गया है। ये सभी प्रयास यह सुनिश्चित करते हैं कि ऊर्जा दक्षता विकास की मुख्यधारा का हिस्सा बने।

योजनाएं: भविष्य की तैयारी

सरकारी योजनाएँ केवल वर्तमान समस्याओं का समाधान नहीं हैं, बल्कि भविष्य की ठोस तैयारी भी हैं। सौर रूफटॉप योजना के माध्यम से अब आम नागरिक न केवल ऊर्जा उपभोक्ता, बल्कि ऊर्जा उत्पादक भी बन रहा है। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर नवीकरणीय ऊर्जा के निर्बाध वितरण को संभव बना रहा है। वहीं, FAME योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर पेट्रोल और डीज़ल पर निर्भरता कम की जा रही है।

जनभागीदारी: परिवर्तन की वास्तविक शक्ति

ऊर्जा संरक्षण की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण आधार जनभागीदारी है। सरकार नीतियाँ बना सकती है और संसाधन उपलब्ध करा सकती है, लेकिन वास्तविक परिवर्तन नागरिकों की दैनिक आदतों से आता है। पाँच-स्टार रेटिंग वाले उपकरणों का उपयोग, प्राकृतिक रोशनी को प्राथमिकता देना, निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन या कार-पूलिंग को अपनाना ये छोटे कदम मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा-संस्कृति का निर्माण करते हैं।

भविष्य का परिदृश्य: ऊर्जा-सुरक्षित भारत

आने वाला समय ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से निर्णायक होगा। बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिक विस्तार के बीच ऊर्जा संरक्षण ही स्थायी समाधान है। तकनीकी रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि एक यूनिट बिजली की बचत, ट्रांसमिशन और वितरण हानियों को घटाकर लगभग 1.3 यूनिट बिजली उत्पादन के बराबर योगदान देती है। यही कारण है कि ऊर्जा संरक्षण को आज महत्व दिया जा रहा है।

राष्ट्रधर्म के रूप में ऊर्जा संरक्षण

ऊर्जा संरक्षण किसी मजबूरी का परिणाम नहीं, बल्कि एक अनुशासित और जिम्मेदार नागरिक होने का प्रतीक है। जिस राष्ट्र के नागरिक ऊर्जा के प्रति सजग होते हैं, वही राष्ट्र दीर्घकाल में सशक्त और आत्मनिर्भर बनता है। याद रखना आवश्यक है ऊर्जा संरक्षण आज का अनुशासन है और कल की समृद्धि।


लेखक - प्रवीण कक्कड़ मध्यप्रदेश पुलिस सेवा के अधिकारी रहे हैं

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