उन्मुक्तता के तटों से परे होकर भी देखें गोवा

विवेक कुमार पाठक

Update: 2025-12-06 11:18 GMT

भारत के पश्चिमी किनारे पर बसा है गोवा। अंजुना बीच, बाघा, मिरामार, मोरझीम और सिंघम फिल्म में दिखे डोनाफोला बीच पर चले जाइए। सब तरफ उन्मुक्तता का जीवन। शेष भारत से एकदम अलग मनमाना पहनावा, हजारों आकांक्षाओं की पूर्ति करता भांति भांति का निरामिश भोजन। मदिरा भी इतनी कि जाने क्या क्या और क्या नहीं। शाम ढलते ही समंदर की लहरों पर इतराते विशाल जहाज और फिर वही बिना रुके थके नाच गाना, दिन रात का अंतर तोड़ते पर्यटक और बहुत कुछ अनकहा अनसुना। 19 दिसंबर 1961 के दिन पुर्तगालियों से आजादी भी आराम से पाने वाला गोवा सिर्फ इतना ही नहीं है। गोवा इससे भी आगे बहुत कुछ है। हम देख नहीं पा रहे ये हमारी दृष्टि और पूवाग्रहों का दोष समझ लीजिए।

गोवा को खाली होकर देखें। यहां संस्कृति है, भाषा सौन्दर्य है, रीति हैं, रिवाज हैं, राष्ट्रवाद है और राम भी हैं। वे ही राम जो अयोध्या में बालक हैं और गोवा में राजा रुप में। 22 जनवरी 2024 के दिन अयोध्या से पूरी दुनिया को चहुंदिशा संदेश गया कि राम को जानना क्यों जरुरी है। राम अकेले आर्यावर्त और भारत के राम नहीं है। राम असहिष्णु होते विश्व की आवश्यकता हैं। रामराज्य सिर्फ एक अवधारणा है। यह लोकमंगल की अवधारणा है और लोकमंगल हर राष्ट्र अपना लक्ष्य तो मानता ही है। ऐसा न होता तो न्यूयार्क में यूएनओ की सालाना बैठकों में दुनिया की शांति के लिए राष्ट्राध्यक्ष बैठकें न करते। राम से भारत को भी बहुत कुछ सीखना है और विश्व को भी।

दुनिया पर नियंत्रण रखने वाले यूरोप से निकले लोग अगर उन्मुक्त रहकर धूप सेकने गोवा के तटों पर जमे हैं तो क्यूं न उनको भी एक नयी दिशा में देखने का मौका दिया जाए। गोवा के पार्टागली मठ के 550 स्थापना दिवस महोत्सव में पिछले दिनों मर्यादा पुरषोत्तम राम की विशालकाय 77 फीट उंची कास्य प्रतिमा स्थापना ऐसा ही अवसर है। कुशावती नदी के तट पर श्रीसंस्थान गोकरण पार्टागली जीवोत्तम मठ गौड़ सारस्वत ब्राहमण समुदाय की यह प्रमुख वैष्णव पीठ है। श्रीराम प्रतिमा की स्थापना से पूर्व भी गोवा के मंदिर और आध्यात्मिक स्थान पूजे जाते रहे हैं मगर प्रतीकों का अपना महत्व है। अमेरिका में स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी स्वतंत्रता और गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी भारत के एकीकरण का प्रतीक है। गोवा में श्रीराम प्रतिमा का अनावरण भी गोवा की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, मठ मंदिरों और इतिहास के सम्मान जैसा है।

हमारे पूर्वाग्रह हमें सत्य को देखने नहीं देखते। गोवा के तटों से आप लहरों की दिशा भी देखिए। वे लहरें जो चट्टानों से टकराकर बिखर जाती हैं मगर उनकी दिशा गोवा की मिट्टी और भारतभूमि की ओर होती है। इन लहरों का स्वर सुनेंगे तो आपको मध्यरात्रि तक जागने वाला गोवा स्वतंत्रता के लिए लड़ता हुआ दिखेगा। आपको पुर्तगाली उपनिवेश के अवशेष दिखेंगे तो उसके खिलाफ गोवा मुक्ति आंदोलन के किरदार भी दिखेंगे। आपको वो गोवा भी दिखेगा जिसने अपनी कोंकणी भाषा के स्वाभिमान के लिए निरंतर संघर्ष किया। पुर्तगाली शासन के समय गोवा की स्त्रियों पर हुआ बर्बर अत्याचार भी गोवा के मौन में सोया हुआ है। गोवा के मठ मंदिरों ने भी राम की तरह धर्मयुद्ध लड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा कि पार्तगाली मठ ने समय के साथ कितने चक्रवात झेले लेकिन बदलते युग और चुनौतियों के बीच मठ ने अपनी दिशा नहीं खोई। गोवा का यह मठ भारत और विश्व को अन्याय के प्रतिकार की राम की प्रतिझा से भी परिचित कराएगा।

गोवा में अन्याय का प्रतिकार 1946 में भारत की आजादी से ठीक पहले डॉ. राममनोहर लोहिया ने जेल जाकर किया मगर गोवा की पुकार तत्कालीन निर्णायकों ने अनसुनी कर दी। उसे महात्मा गांधी का तो साथ मिला मगर तत्कालीन राजनीति का साथ नहीं मिल सका। खैर गोवा को करीब 14 साल की परतंत्रता के बाद भारत से आए मछुआरों के पकड़े जाने के बाद पुर्तगाल से आजादी मिली। भारत सरकार ने यूरोपीय देश पुर्तगाल को खदेड़कर आखिर गोवा का मान सम्मान वापिस दिलाया। तब से हमने पुर्तगाल के प्रभाव वाला गोवा ही हमने देखा और सनातन के लिए लड़ने वाला गोवा और कोंकणीभाषी नेपथ्य में चले गए। बस मुद्रा लाते पर्यटकों का उन्मुक्तता का विचार ही गोवा का विचार समझ लिया गया।

सत्य है कि पश्चिमी देशों के समुद्र तटों की तरह गोवा के तट खूबसूरत हैं और मन की सुनने वाली दुनिया गोवा के तटों पर पसरी हुई दिखती है। उन्मुक्तता की आस में भारतीय भी गोवा के तटों पर अटखेलियां करते हैं परंतु गोवा में इस स्वछंद जीवन के अभिलाषियों को शायद अब गोवा कुछ अपनी कहने भी बुलाए। श्रीराम प्रतिमा की स्थापना इसकी प्रतीकात्मक शुरुआत है। वेदों में वाक्य है नेति नेति। मतलब आगे भी कुछ है, बहुत कुछ है। गोवा भी अपने सुंदर समुद्र तटों के आगे भी बहुत कुछ है। वहां पुर्तगाल से सनातन और कांकणी का संघर्ष है। मठ मंदिरों की अलग अलग और अनकही कथाएं है। निश्चित ही अब गोवा के मौन को सुनने का समय है।

(विवेक कुमार पाठक स्वतंत्र लेखक हैं)

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